संयुक्त परिवार में दादा दादी, चाचा चाची , मां पापा, सब के लाडं प्यार में पली बड़ी होने के बावजूद शीला बहुत ही संस्कारी और सुलझी हुई लड़की थी।,' बड़ों को मान और छोटो को प्यार देने में वह कभी नहीं चूकती थी।, पढ़ाई से लेकर बाकी सभी दूसरे कामों में निपुण थी। ,' सबको चिंता थी ।,तो बस एक बात की उसे एक अच्छा ससुराल मिले , लड़का होशियार और काबिल हो, उसमें कोई किस्म का अवगुण ना हो, जिस तरह हमारी बेटी सर्वगुण संपन्न है वह भी उसके बराबरी का हो।, ताकि बेटी ससुराल में राज कर सकें। , पर वह सब से एक ही बात कहती ," आप सब इतनी चिंता क्यों करते हो! किस्मत से ज्यादा और वक्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता है।, मेरे भाग्य में जो होगा मुझे वही मिलेगा, लेकिन सब हैरान थे।," उसकी सोच पर!
सब उससे यही कहते बेटा तुम कौन से जमाने में जी रही हो, आजकल की लड़की होकर भाग्य और दुर्भाग्य मानती हो । , लेकिन वह अपनी बात पर अडिग रहती। वक्त अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था। शीला के लिए रिश्ते भी आने शुरू हो गए।, कई रिश्ते आए। लड़का कोई मोटा ,तो कोई नाटा, कोई छोटा ,तो कोई लंबा और देखने में भी ऐसा कोई खास नहीं लगा।," किसी भी लिहाज से कोई भी रिश्ता शीला के लायक नहीं मिला।
देखते-देखते आखिर इंतजार की घड़ियां खत्म हुई।, और आखिरकार एक रिश्ता मिला, लड़का का लंबा चौड़ा कद, बड़ी बड़ी आंखें, तीखी नाक, एकदम सजीला नौजवान , साथ ही साथ पढ़ा लिखा जो देखते ही पसंद आ जाए। खानदान भी देखने में बहुत ही भद्र लग रहा था।, ना करने की तो कोई गुंजाइश ही नहीं थी।,"
- दोनों परिवारों में बातचीत हुई ,लड़का लड़की ने एक दूसरे को पसंद किया, और फिर क्या बस अच्छा मुहूर्त देखकर दोनो की सगाई कर दी गई। शादी में अभी 4 महीने शेष थे। , सब बड़ों ने मिलकर तय किया कि शीला और रमन को घूमने फिरने की इजाजत दे दी जाए, ताकि दोनों बच्चे एक दूसरे को और अच्छी तरह समझ सके, और साथ में शीला का छोटा भाई चला जाएगा। , फलस्वरूप दोनों परिवारों की रजामंदी से शीला अपने छोटे भाई को साथ लेकर रमन के साथ घूमने फिरने लगी। शीला को सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था।," यह सोच कर कि उसकी किस्मत वाकई में बहुत अच्छी है, रमन जैसा हैंडसम और संस्कारी लड़का उसका जीवन साथी बनने वाला है।,"नए-नए सपने उम्मीद बनकर आंखों में जन्म ले रहे थे।," सपने बुनते बुनते पता ही नहीं चला कब डोली चढ़ने का वक्त आ गया। अतत: शीला की शादी रमन के साथ हो गई। " सुहाग की सेज पर शरमाती और सकुचाती हुई सी अपने पति का इंतजार कर रही थी। हालांकि दोनों एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते थे।," लेकिन फिर भी नए घर, नए माहौल में, एक बार तो मन में डर समाये ही रहता है, हर लड़की के मन में, कि वह एडजस्ट कर पाएगी या नहीं।, यही सब सोच रही थी, कि तभी रमन कमरे में आया, ना कोई बात की, और ना सुनी, बस बत्ती बंद की और शीला को अपनी आगोश में ले लिया, और उसके साथ जबरदस्ती करने लगा," शीला चिल्लाई, छोड़ दो मुझे !मुझे बहुत दर्द हो रहा है! वह बार-बार कह रही थी ,रमन आराम से! लेकिन उसने उसकी एक न सुनी, और लगातार रात भर कहर बरसाते रहा। सुबह जब शीला नींद से जागी! तो सासु मां ने बहुत पूछने की कोशिश की उसका उदास चेहरा देखकर, क्या हुआ बेटा? नई नवेली दुल्हन के मुंह पर जो रौनक रहती है तुम्हारे मुंह पर क्यों नहीं है? लेकिन शीला ने यह सोचकर नहीं बताया कि सासू मां परेशान होगी ! शादी की थकान है यह कहकर डाल दिया।, और फिर वह अपनी रसोई में लग गई। यह सोच कर कि रमन वक्त रहते सुधर जाएगा" लेकिन यह सिलसिला 15 दिनों तक यूं ही चलता रहा। " शीला की हालत बहुत खराब हो गई थी उसे चलने फिरने में भी दिक्कत हो रही थी। अंदर से बहुत कमजोर हो चुकी थी । आखिर कब तक घुटती। सासु मां को समझते भी देर ना लगी उसने उसे अपनी कसम देकर सारी बात पूछी , तो उसके सब्र का बांण टूट गया , छोटे बच्चे की तरह बिलख पड़ी, और सासु मां के गले लग कर सारी बात बताई ।" उसकी सास ने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा और बोला! इतने दिनों तक यह सब कुछ क्यों सहती रही!बेटा कम से कम मुझे तो बता दिया होता। तुम्हारे साथ इतना कुछ अनैतिक हो गया, तुम चुपचाप सबकुछ सह गई, मम्मी जी आप चिंता मत कीजिए, बस अब और नहीं। "रात में जब रमन ऑफिस से वापस आया! और उसे खींच कर कमरे में ले जाने लगा।तब उसके अंदर की सोई हुई औरत जाग गई। उसने कहा बस! अब और नहीं। तुम्हारी ज्यादातिया मैं अब और बर्दाश्त नहीं करूंगी!, तुम समझते क्या हो अपने आपको औरत हू तो क्या कमजोर हूं। तुम मर्द हो तो क्या औरत से खेलने का लाइसेंस मिल गया तुम्हें।, तुम जब चाहोगे जितना चाहोगे खेलोगे, तुम्हारे शरीर की भूख मिटाने का सामान नहीं हूं,, तुम तो इंसान की खाल मेंं छुपे हुये भेड़िए हो! जो औरत को सिर्फ भोग विलास की वस्तु समझता हो , मैं तुम्हारे शरीर की भूख मिटाने के लिए खुद को बली नहींं चढ़ाऊगी। मैं आज अभी इसी वक्त तुमसे रिश्ता तोड़ती हूं। ठीक कहा बेटी सासु मां ने कहा! मुझे तुम पर गर्व है! तुम्हें तो इस हैवान को शादी वाली रात ही छोड़ देना चाहिए था।, यह तो तुम्हारे संस्कार ही थे ।,जो तुमनेे इसका अनैतिक व्यवहार इतने दिनों तक बर्दाश्त किया। मुझे तो आज अपनी कोख पर शर्म आ रही है, कि मैंनेेेेेे इस वासना के पुजारी को जन्म दिया है। मैं तेरे फैसले में तेरे साथ हूं बेटा! हो सकेे तो मुझेेेे माफ कर देना। अगर मुझेेेेे पहले पता होता तो तुम्हारी जिंदगी यू बर्बाद ना होती! नहींं मम्मी जी आप माफी मत मांगिए ! इसमें आपकी कोई गलती नहीं है, बड़े तो बस आशीर्वाद देते हुए अच्छे लगते हैं माफी मांगते हुए नहीं। आप मुझे आशीर्वाद दीजिए ताकि मैंं अपनी नई जिंदगी शुरु कर सकूं। मेरा आशीर्वाद बेटा हमेशा तुम्हारे साथ है। ठीक है कहकर शीला अपने घर की तरफ चल पड़ी।
- आज शीला की कही बातें घरवालों को समझ में आ गई। जो भाग्य में होता है वही मिलता है।
दोस्तों यह कहानी नहीं हकीकत है। न जाने दुनिया में शीला जैसी कई औरते है। जो रमन जैसे मर्दौ की जायाद्तियां बर्दाश्त कर रही है। , लेकिन यह गलत है, अन्याय करने से ज्यादा पाप है अन्याय को सहना। हर लड़की को शीला की तरह रमन जैसे मर्दों के खिलाफ कडां कदम उठाना चाहिए। ," उन्हें यह दिखा देना चाहिए कि हम नारी हैं इसका मतलब ये नहीं की हम कमजोर है, हम आज की नारी है।, स्वावलंबी है, आत्मनिर्भर है।, मोहताज नहीं है।दोस्तों मुझे तो लगता है शीला ने जो कदम उठाया वह बिल्कुल सही था।, आपकी क्या प्रतिक्रिया है उससे जरूर अवगत कराइए गा।
नई उम्मीद के साथ मेरी ये नई कहानी आशा करती हूं कि आपको अच्छी लगेगी। अगर आपको कहानी अच्छी लगे तो प्लीज कहानी को लाइक और मुझे फॉलो कीजिए
स्वरचित व मौलिक
आपकी
मनीषा भरतीया
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बेहद संदेशपरक कथा
Thank u sandeepji🙏🙏
Please Login or Create a free account to comment.