मां आप भी बिदेश आ जाती# सुनहरी यादें

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Manisha Bhartia
Manisha Bhartia 19 Sep, 2020 | 1 min read

सुधा जी बहुत ही सरल स्वभाव की औरत थी|,उनका छोटा सा परिवार था|, वह अपने पति सुशील श्रीवास्तव और बेटा सूरज के साथ गवर्नमेंट क्वार्टर में रहती थी|, पति सुशील इन्जीनियर के पद पर कार्यरत थे और वो सरकारी स्कूल में बच्चों को हिंदी पढ़ाती थी बेटा अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ रहा था |,परिवार में हंसी खुशी का माहौल था जब भी पूरा परिवार साथ बैठता तो हंसी ठहाके और चहलकदमी होती|, पूरा परिवार प्यार के सूत्र में बंधा था |, इसी तरह वक्त गुजरता गया और बेटा 25 साल का जवान हो गया और इधर सुशील जी हार्ट अटैक से असमय चल बसे |, सूरज की पढ़ाई भी अब तक कंप्लीट हो चुकी थी उसने केमिकल इंजीनियरिंग का कोर्स किया था , उसे नौकरी के अच्छे ऑफर आ रहे थे |,लेकिन वो उसकी उम्मीद से कम थे |, उसकी उम्मीद लाखों की थी इसलिए वह विदेश जाकर अपना भाग्य आजमाना चाहता था |, इसलिए उसने अपनी मां ( सुधा जी) से इस बारे में बात की तो, पहले तो सुधा जी ने सूरज को बहुत समझाया की बेटा चार पैसे ज्यादा के लालच में अपने देश अपनी मिट्टी को छोड़कर मत जाआे|, जो सुख सुविधा, अपनापन यंहा अपने देश में हैं, वो पराये देश में कहाँ???हम यहाँ अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं, जो बात यहाँ की मिट्टी में है, वो विदेश में कहाँ?? तो सूरज ने कहाँ आप रहने दीजिये | आप का संस्कृति के प्रति प्यार और मिट्टी की खुशबू  के चलते आपने अपनी आधी से ज्यादा जिन्दगी गवर्नमेंट क्वार्टर में गुजार दी|, लेकिन मुझे बहुत आगे जाना है, मेरा दायरा यही तक सीमित नही है|, यह सब सुनकर और बेटे की जिद के आगे मजबूर होकर सुधा जी ने हां कर दी|,वैसे भी घर का खर्चा चलने में कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि सुधा जी तो पहले से ही आत्मनिर्भर थी इसलिए उन्होंने सोचा कि बेटे को अपना भाग्य आजमाने दें|,माँ की मजूंरी मिलते ही सूरज ने पासपोर्ट और वीज़ा के लिए एप्लाई कर दिया |, 1 महीने के अंदर ही पासपोर्ट और वीज़ा बनकर आ गया |, फिर तुरंत सूरज ने फ्लाइट की टिकट निकाली और चल पड़ा अपना भाग्य आजमाने अपना रिज्यूम लेकर 1 महीने तो मारा मारा फिरता रहा! लेकिन कुछ नहीं हुआ |, लेकिन उसने हार नहीं मानी डेढ़ महीने की कड़ी मशक्कत के बाद उसे उसकी उम्मीद के मुताबिक 1 लाख रुपये सैलरी की जांब आफंर हुई |उसने मां सुधा जी को फोन पर खुशखबरी दी और अगले दिन नौकरी ज्वाइन कर ली|,, फिर मां से आग्रह किया कि मां आप भी यहां चली आइए वैसे भी अब हमारा वहां है ही कौन??? बाबूजी भी चल बसे| आप अकेली वहां कैसे रहोगी?? बेटा मेरी 70% जिंदगी यहां गुजरी है, मुझे यहां बच्चों को अपनी मातृभाषा हिंदी पढ़ाकर बहुत सुकून मिलता है , इन बच्चों के हंसते मुस्कुराते चेहरे देखकर मेरी सारी थकान मिट जाती है|, मुझे भारतीय संस्कृति से अजीब सा लगाव हो गया है यहां की मिट्टी की खुशबू मुझे अपनी और खींचती है  और फिर यहां इस घर के कोने कोने में तुम्हारे बाबूजी की यादें बसी है, मेरा मन तो यही लगता है|, मैं अगर वहां आ भी गई तो ज्यादा दिन नहीं रह पाऊंगी| क्योंकि वहां कौन मुझे हिंदी में टीचर नियुक्त करेगा?? वहाँ तो सिर्फ अंग्रेजी भाषा ही चलती है, और वह भी यहां के अंग्रेजी से बिल्कुल अलग जो कि मेरे पल्ले तो पड़ने से रही|, मैं तो बेटा यही ठीक हूं, और तू मेरी चिंता मत कर|,यहां गोवर्धन जी है, जो फौज से रिटायर हो चुके है, और उनकी पत्नी निर्मला जी|,सुबह शाम स्कूल में चाय देने वाला श्यामू, स्कूल की सफाई करने वाली रत्ना| सब मेरी बहुत इज्जत करते है, और मेरा ख्याल भी रखते हैं|, बस एक फोन करने की जरूरत है सब हाजिर हो जाएंगे | मैं अकेली कहां हूं? ?? फिर भी मां अगर आप विदेश आ जाती तो अच्छा होता कम से कम मेरी आंखों के सामने तो रहती |, कोई बात नहीं बेटा कभी कभी छुट्टी लेकर मुझे देखने और मिलने आ जाना और हो सके तो त्योहरों पर भी| कभी कभी मैं भी आ जाया करूंगी | और हां अपना ध्यान रखना बेटा वह अनजान शहर है |

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@ मनीषा भरतीया


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