रितू की शादी जिस घराने में हुई थी।,वह किसी जमाने में जाने माने रहीसों की गिनती में आता था।," लेकिन बिजनेस में भारी घाटा लगने की बजह से वे इन दिनों फाइनेनशीअलीं थोड़े कमजोर हो गये थे। ,पहले वो जिस बगलें में रह रहे थे, उसे बेचना पड़ा क्योंकि कर्जदारों का कर्ज़ चुकाना था।,इतना ही नही तीन गाड़ी ,और फैक्टरी भी। परिस्थिती को देखते हुये उन्होंने एक छोटे से काम्पलेक्स में घर ले लिया था।घर में चार नौकर की जगह अब सिर्फ एक छुट्टा नौकर था ।, जो कि कपड़े, बर्तन ,और घर की साफ सफाई करके चला जाता था।, अभी भी खाने,पहनने की कोई तकलीफ नहीं थी।, पर पहले जैसी शान ओ शौकत अब नहीं बची थी।, रितु के ऊपर इन सब चीजों का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि वह मिडिल क्लास फैमिली से ही आई थी।,रितु घर के सारे काम खुशी खुशी कर लेती जैसे खाना बनाना, बाजार से सब्जी लाना इत्यादि। उसके सास ससुर भी उसके व्यवहार और गुणों से बहुत प्रभावित थे।, सब उसे अपनी बेटी की तरह मानते, और रितू भी अपने ससुराल में बहुत खुश थी।," लेकिन रितु को एक बहुत बड़ी परेशानी थी।," वो ये के उनके पड़ोस में एक शर्मा जी रहते थे।, जिनकी आदत थी, राह चलते आदमी को पिन करने की बस यही रितु को पसंद नहीं थी। वह जब भी सब्जी लाने या मार्केट जा रही होती! इत्तफाक से वह भी उसी समय निकलते अपनी गाड़ी लेकर और शुरू कर देते अपनी फुटानी भरी बातें," अरे रितु बेटा इतनी गर्मी में तुम सब्जी मार्केट जा रही हो वो भी ऑटो से," हमारी बहु तो सब्जी लेने भी गाड़ी से जाती है।," और तो और तुम तो फेरी वाले से , या मंडी से सब्जी लाती हो। , वो तो सब्जियां भी मॉल से लाती है। , बेटा एक बात बोलूं! तुम नहीं जानती हो इन सब्जी वालों को, यह लोग बाशरूम जाते हैं, नाक सिड़कते है , और हाथ तक नहीं धोते! वही गंदे हाथों से सब्जियों को तौल तौल कर ग्राहक को दे देते है।, जो कि हमारे स्वास्थ्य की दृष्टि के लिए बिल्कुल भी हाइजीनिक नहीं होता। उनके हाथों के कीटाणु भी सब्जियों में लग जाते हैं ,मॉल वाले सब्जियां कितनी साफ-सुथरी, और सुंदर तरीके से बास्केट में रखते हैं।, और तो और वो लोग स्वच्छता का भी पूरा ध्यान रखते है। आप अपने हाथों से सब्जी लो और काउंटर पर जाकर बिल बनवा लो। हमारे यहां तो सारे काम हाई क्लास के ही होते हैं! क्या तो हम बाहर जाते ही नही और जाते हैं, तो सीधे प्लेन से ही जाते है! होटल भी फाइव स्टार होता है और घूमते भी है तो प्राइवेट गाड़ी लेकर! हमारे मिसैज को भी 19:20 चीजे पसंद नहीं आती। " घर में पूजा हो ,जन्मदिन हो या किसी की एनिवर्सरी सब कुछ हाईक्लास होना चाहिए! , जब तक बड़ा सा हॉल नहीं लिया जाए, खाने का जिम्मा कैटरीगं वाले को नहीं दिया जाए। 400-500 आदमी को नहीं बुलाया जाए तब तक उसे कुछ पसंद ही नहीं आता। " अब तुम लोगों का क्या है, एक रसौये को बुला लिया! घर घर के 20-25 लोगों को को आमंत्रण दे दिया ।, बस हो गई पूजा ,और पार्टी। ऐसे थोड़े ही होता है यह तो बस रात काटने की बात है। यह सब सुनकर रितु का गुस्सा सातवें आसमान पर चला जाता फिर भी वह अपने गुस्से पर नियंत्रण रखकर मीठा बोल कर यही कहती! अंकल क्या करें इंसान की चद्दर जितनी है पैर उतने ही पसारने चाहिए! क्योंकि अगर पैर ज्यादा पसारे और चद्दर छोटी पड़ गई तो हम मुसीबत में पड़ सकते है।" आपको आपके हाईक्लास के काम मुबारक हो हमारे काम लो क्लास के ही सही। वैसे अंकल बुरा नहीं माने तो एक बार जरूर कहना चाहूंगी छोटा मुंह बड़ी बात ! अंकल आप के हाईक्लास के काम एक दिन आप पर ही भारी ना पड़ जाए।क्योंकि मेरी आपकी बहू से बात होती रहती है और उसने मुझे बताया की हमारा घर ,गाड़ी ,सब कुछ लोन पर है।, यह सब सुनकर शर्मा जी चुप हो गए और अपनी गाड़ी में बैठ गए।, रस्सी जल गई पर बल नहीं गया! जाते-जाते उन्होंने रितु से कहा चलो मैं तुम्हें मार्केट छोड़ दूं।, तो रितु ने साफ मना कर दिया और कहा कि मेरे लिए ऑटो ही ठीक है! आपकी गाड़ी आपको मुबारक हो! झूठे दिखावे में कोई आना जानी नहीं है।आखिरकार रितु की बात सही साबित हुई और और शर्मा जी के पोते के सातवे जन्मदिन की पार्टी में बेंक वाले आ धमके और कहा की हमें आपके घर को सीज करना पड़ेगा।," और हां आपकी गाड़ी की चाबी भी दीजिये वो हम अपने साथ लेकर जायेंगें। ,आज सारे मेहमानो के सामने शर्मा जी की इज्जत मिट्टी में मिल चुकी थी। जिस इस्टेटस को मेन्टेंन करने के लिये,और चमक- दमक की जिदंगी जीने के लिये अपने आपको कर्ज़ में डुबो लिया था।,आज एक मिनट भी नही लगी! और उनकी इज्जत का फालुदा हो गया। आज रितु ने भी अपने मन की भनास निकाल ली।,यह कहकर की अकंल मैंनें कहा था।," की चद्दर जितनी हो पैर उतने ही पसारने चाहिये। आज शर्मा जी को रितु की बात समझ में आ गई थी।,की दिखावे के स्टेटस का कोई बजुद नही होता है।, चद्दर जितनी हो पैर उतने ही पसारने चाहिए। उन्होंनें रितु से अपने किये की माफी भी मांगी।
दोस्तों ये कहानी नही हकीकत है। लोग अपना हाई क्लास मैन्टेंन करने के लिये लौन पर लौन लेते जाते है लेकिन पैसों की किल्लत की बज़ह से किश्त समय पर चुका नही पाते । इसलिये हमें चाहिए की हमारी चद्दर जितनी है पैर उतने ही पसारने चाहिए।,और अपने खच्चों पर नियत्तृंणं रखना चाहिए
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आपकी
@मनीषा भरतीया
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