निर्मला जी पौधों में पानी दे रही थी| जितने सूखे पीले पत्ते आ गए थे उन्हें सही तरीके से काटकर सुंदर बना रही थी...... और मन ही मन सोचते-2 अपने बीते दिनों में खो गई जब वो 28 साल पहले शादी होकर आई थी| तब भी उन्हें हरियाली से बहुत प्यार था| पेड़-पौंधे भी उन्हें बहुत पसंद थे लेकिन वह कभी उन्हें समय दे ही नहीं पाई| ये बात नहीं थी कि उन्हें इसका ज्ञान नहीं था| पेड़-पौधों पर उन्होंने रिसर्च किया था| उनका लॉन बहुत बड़ा था और उसमें बहुत ज्यादा मात्रा में पेड़ पौधे थे, जिनकी देखभाल करना उनके बस में नहीं था| हालांकि घर में दो-दो नौकर थे, फिर भी वह घर की बहू थी| इसलिए कई छोटे-मोटे काम करते-करते सुबह से कब रात हो जाती पता ही नहीं चलता था| और जो थोड़ा बहुत समय बचता वह पति और बच्चों में ही निकल जाता|
इसलिए पेड़ पौधों की देखभाल के लिए एक माली रखा हुआ था.. ..वही उसकी देखभाल करता था...... यही सब सवाल मन में आ रहे थे ...."तभी निर्मला के पति नितेश जी बाहर से आ गए ....."और कहा की दुनिया इधर से उधर हो जाए लेकिन हर शनिवार को पौधों को ठीक-ठाक कर उनकी देखभाल करना तुम नहीं भूलती| " और पानी देना तो आपको रोज का काम हैं|
एक बार के लिए दवाई लेना भूल सकती हैं,....... " अरे दवाई से याद आया....."आपने अपनी बी पी और शुगर की गोली ली...... " ओफ: हो! "माफ कीजिएगा मैं तो दवाई लेना भूल ही गई..... यह कोई नई बात नहीं हैं......"मुझे पता था.....
" इसलिए मैं दवा हाथ में लेकर ही आया हूंँ......यह लीजिए दवा और पानी|.... " मुझे तो ज्ञान दे दिया पर क्या आपने अपनी आंखों में दवा डाली....."और पैरों में तेल की मालिश करवाई....... क्या हुआ अब आप चुप क्यों हो गये???? "आइये बैठिये, " मैं आपकी आंखों में दवा डाल देती हूँ...... और पैरों में तेल की मालिश भी कर देती हूँ|
जैसे ही निर्मला जी ने तेल की मालिश की तो नितेश जी ने कहा कि अगर आप नहीं होती निर्मो तो मेरा क्या होता,..... "तो निर्मला जी ने शरमाते हुये नजरें नीची करके कहा! " अगर आप नहीं होते तो मेरा भी क्या होता| "आप मेरा कितना ख्याल रखते हो! " उम्र के इस पड़ाव में जब हमें सही मायने में एक दूसरे की जरूरत है, .... " हम दोनों पूरी तरह से एक दूसरे पर निर्भर हैं,.... " हर छोटी से छोटी जरूरत में एक दूसरे का साथ और वक्त ये एहसास दिलाता हैं..... "कि जवानी तो सिर्फ अल्हड़पन, मस्ती, भौतिक सुख और जिम्मेदारियों को उठाने में ही निकल गयी|
उस समय हम कंहा एक दूसरे को अटेंशन दे पाते थे..... वो प्यार तो सिर्फ हमारे शरीर की जरूरत थी| " मन से तो हम सही मायने में आज जुड़े हैं| "आपको सुबह आंफिस जल्दी जाने की जद्दोजहद में भी इशारे से दस बार मम्मी जी- पापाजी के सामने सबसे नजरें बचाकर मुझे अपने पास बुलाकर बांहों में भरकर माथे को चुमकर जाना, और मेरा हर बार शरमाते हुये ना कहकर लौन में छुप जाना| ..... " फिर दिन -भर एक- दुसरे का इतंजार करना...."कि कब दीदार हो.... और रात होते ही एक- दुसरे को आगोश में भर लेना....... " एक भी दिन किसी का भी ये कहना की मैं आज बहुत थक गयी हूँ...... या मैं बहुत थक गया हूँ...... तो आपस में मुंह फुलाकर हां भरवा लेना| ..... " हर समय एक दुसरे की प्यास रहना...... एक भी दिन अगर छेड़खानी न हो तो चिड़चिड़ापन होना| , अगर किसी कारणवश बच्चों के कारण भी हम नहीं मिल पाते तो गुस्सा आना,..."क्यूं जी मैं सही कह रही हूँ,.... ना??
हाँ, " निर्मो तुम बिल्कुल सही कह रही हो! " किस की तो कोई गिनती ही नहीं थी...."एक दिन में सौ-2 करने के बाद भी मन नहीं भरता था| , " फिर थोड़े बडे़ हुये तो बच्चों का लालन- पालन, और जिम्मेदारी उठाने में बाकी की जवानी निकल गयी......
कभी एक - दुसरे का ख्याल रखने का तो वक्त ही नहीं मिला..". वो रिश्ता सही मायने में एक- दुसरे से मतलब का ही रिश्ता था..... या यूँ भी कह सकते हैं.... कि एक- दुसरे के प्रति आकर्षण भर था|
अब हमारे बच्चों की शादी हो गयी हैं..... "हमारे नाती- पोती हो गये हैं,.... " हम दादा- दादी और नाना- नानी बन गये हैं,...... " वो अपनी ग्रहस्थी में रच बस गये| , बेटे सुबह अपने काम के लिए निकल जाते हैं,..... बहुंए अपने काम में लग जाती हैं,...... बेटी की अपनी ग्रहस्थी हैं, वो दामाद जी के साथ खुश हैं,.....और हमे इस बुढा़पे में क्या चाहिए....... सुख- सुबिधा के सारे प्रबंध हमारे बेटों ने कर रखे हैं,..... " रामू काका नाश्ता, खाना सब कमरे में ही ले आते हैं...... बाकी के काम मुन्नी (कामवाली) कर लेती है,..... "हमारे ऊपर किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं हैं...... " सिवाय एक- दुसरे का ख्याल रखने के......
वो भी हम चाहे तो हमारे बेटे हमारे लिए एक चौबिस घण्टे का आदमी रख देंगे, लेकिन वो हम चाहते नहीं| क्योंकि जो सुकून हमें एक-दूसरे का ख्याल रखने में मिलता है, हम उसे अपने हाथों से गंवाना नहीं चाहते| क्योंकि हमने सही मायने में प्यार का अर्थ तो बुढ़ापे में ही जाना है|
क्यूँ, निर्मो ठीक कहा ना मैंने?
जी बिलकुल ठीक कहा आपने.....
कहानी का मर्म तो आप समझ ही गये होंगे|
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आपकी
@मनीषा भरतीया
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