राधा मेरी मानो तो एक बार समझा-बुझाकर दिवाकर जी को यहां बुला लो! सीमा बिटिया की शादी पक्की हो गई है और 2 महीने बाद शादी है। दुनिया का दस्तूर है, कन् मेरीयादान अकेली स्त्री नहीं कर सकती, सदियों से यह परंपरा चली आ रही है
यह रस्म जोड़े से ही होती है।," पड़ोसन सविता जब राधा से यह सब कह रही थी, कभी कॉलेज से उसकी बेटी सीमा आ गई, उसने उसकी सारी बातें सुन ली
सीमा ने लाल पीली होकर कहा!
कोई जरूरत नहीं है मां को जी हजूरी करने की ," आप किस दस्तूर की बात कर रही आंटी! वह क्या दस्तूर था ,जब पिताजी मां को और मुझे 10 दिन की छोड़कर चले गए थे। , एक लड़की के प्यार के चक्कर में आकर ।" उन्होंने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं गलत कर रहा हूं या सही!
जाने के बाद पलट कर एक बार भी जानना नहीं चाहा कि हम जिंदा है या नहीं। उन्होंने एक पति और पिता होने का कोई भी फर्ज नहीं निभाया।, न हीं वह एक अच्छे पति , और न हीं अच्छे पिता बन पाए।
वैसे भी उनके जाने से हमारी जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ा है, ना ही आर्थिक और ना ही सांसरिक!
मेरी मां पढ़ी-लिखी और जिम्मेदार है किसी पर आश्रित नहीं है। उन्होंने बचपन से ही मेरे मां और बाप दोनों होने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है।, कभी भी एहसास नहीं होने दिया कि मेरे पिता मुझे छोड़कर चले गए।
मेरी हर ख्वाहिश को पूरा किया, उच्च शिक्षा से नवाजा,इस काबिल बनाया कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकू।
जब सारी जिम्मेदारी मेरी मां ने दोनों बनकर उठाई, तो कन्यादान क्यों नहीं कर सकती।
रही बात समाज की, यह समाज कहां था जब मेरे पिताजी हमें छोड़ कर चले गए।
कहानी का मर्म आप समझ गए होंगे।
दोस्तों मुझे लगता है कि समाज में कुछ बदलाव की जरूरत है, रिश्ते में अगर सच्ची बराबरी लानी है, सबको बराबर का हक देना होगा, फिर चाहे स्त्री हो या पुरुष।
आशा करती हूं आपको मेरी कहानी अच्छी लगी होगी।
#कॉपीराइट#
आपकी
मनीषा भर तीया
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