आज सुजाता जी को गए हुए 12 दिन भी नहीं हुए थे...... घर में शोक का माहौल चल रहा था....... " तभी उनकी दोनों बहूंए पिंकी और पूजा अपने अपने पतियों अजय और विजय से कह रही थी.... " अब तो मम्मी जी रही नहीं पापा जी को अलग कमरे की क्या जरूरत है..... वैसे भी मम्मी जी का कमरा इस घर में सबसे बड़ा और हवादार है....कमरे की अटैच बालकनी से बाहर का नजारा कितना मनमोहक और सुंदर नजर आता है.... इत्तेफाक से यह बातें सुधाकर जी( सुजाता जी के पति) के कानों में पड़ गई. .... " यह सुनकर उन्हें बहुत खराब लगा.... एक तो पहले ही सुजाता जी के गम में उनकी आंखें नम हुए जा रही थी..... यह सब सुनकर फिर एकदम से भर आई. ...
" लेकिन फिर भी दिल पर पत्थर रखकर व सारी बातें सुनने के लिए वही खड़े हो गए. .,..
" दोनों बहुएं बार-बार अपने-अपने पतियों से कह रही थी ...कि देखो जी अब आप ही पापा जी से बात कर लेना कि वह अब यह कमरा खाली कर दें..... " उनका क्या है अब तो वह वैसे भी अकेले हैं मम्मी जी तो रही नहीं.... कहीं भी रह लेंगे.....
हम तो कहते हैं कि उनका पलंग हम स्टोर रूम साफ करवा कर वहां लगवा देते हैं..... और रही बात गर्मी की तो एक पंखा भी लगवा देंगे.... " क्यों सही कहा ना दोनों बहुओं ने अपने-अपने पतियों से पूछा? ?? " तब सुधाकर जी के दोनों बेटे अजय और विजय ने कहा कि शर्म आती है हमें आपकी सोच पर. ... कैसी है आप लोगों की सोच....
अभी हमारी मां को गुजरे 12 दिन भी नहीं भी हुए और पापा के लिए आप लोगों के यह विचार..... हमसे तो नहीं होगा....
" लगातार बहस होने के कारण प्रीति सुधाकर जी की बेटी के कानों में भी कुछ आवाज पड़ी तो वह भी आ गई और उसने कहा सही कहा मेरे भाइयों ने शर्म आनी चाहिए भाभी आप लोगों को.. ... इतनी घटिया बात आप दोनों सोच भी कैसे सकती हैं..... " मुझे तो शर्म आती है आप दोनों को अपनी भाभी कहते हुए....
आप दोनों जिसे कमरा कह रही है वह महज सिर्फ कमरा नहीं है.... मेरी मां की यादों का बसेरा है.... उस कमरे से उनकी यादें जुड़ी हुई है..... सुख दुख के हर पल मां पापा ने एक साथ उस कमरे में बिताये हैं.... " कमरे से अटैच जो बालकनी है जहां 2 चेयर पड़ी रहती है.... जिस पर बैठकर मां पापा ने सुबह शाम की चाय पीते पीते घंटो बातें की है.....
" उस कमरे में उन्होंने जवानी से लेकर बुढ़ापे तक का सफर एक साथ बिताया नहीं बल्कि जिया है.... " जिस तरह पापा ने हम बच्चों को फूलों की तरह पाला है उसी तरह अपने कमरे की बागवानी में जो पौधे लगाये है...."उन्हें अपने बच्चों की तरह सींचा हैं..... " उस कमरे में लगी हुई मम्मी की ड्रेसिंग टेबल, अलमारी और कमरे का एक-एक कोना मेरी मां की यादों से भरा हुआ है.... " इतना ही नहीं पापा के दोस्तों का आना और घंटों कमरे में बैठकर गप्पे लड़ाना भी उनकी यादों का ही हिस्सा है... इसलिए भाभी मैं तो इतना ही कहना चाहुंगी की पापा को उस कमरे से जुदा करना उनको जीते जी मारने के समान है.....
खैर आप दोनों को कुछ भी बोलने का क्या फायदा.... आप दोनों के मन में तो अपने पिता समान ससुर के लिए इज्जत और प्रेम का भाव ही नही है.... आप दोनों ने सिर्फ पापा का कमरा छीनना ही नहीं चाहा.... उन्हें स्टोर रूम में सिफ्ट करने की बात की.... जैसे पापा कोई इंसान नहीं बल्कि टुटा- फुटा फर्नीचर हो.... बस बस ननद जी आप अब इस घर की सदस्य नहीं है.... आप हमारे मामले में दखल ना दें तो ही अच्छा है.... दोनों भाइयों से बहन की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं हुई .... इसलिए दोनों ने अपनी अपनी पत्नी को डांटा और कहा की शादी हो गयी है.... इसका मतलब ये नहीं की उसका इस घर पे कोई हक नहीं है.... अगर इस घर में कुछ भी गलत होगा... तो हमारी बहन जरूर बोलेगी.... इतने में सुधाकर जी भी वंहा आ गये....
सुधाकर जी ने अपने दोंनो बेटे ओर बेटी को गले से लगा लिया..... और अपनी दोनों बहुओं से कहा बेटा तुमलोगों से मैं एक बात पूछना चाहुंगा की क्या मैंने या तुम्हारी सास ने कभी प्रीति या तुमलोगों में कोई फर्क किया... तो दोनों बहुओं ने शर्मिंदा होते हुए नजरें नीची करके कहा नहीं पापा.... तब भी तुम दोनों के मन में मेरे लिए ये विचार सुनकर आज मेरे दिल को बहुत ठेस पहुंची है... अरे तुम दोनों को कमरा ही चाहिए था.... तो एक बार बस मुझे बोलती.. मैं वो कमरा तुम्हें खुशी खुशी दे देता.... लेकिन तुम्हारा ये तरीका ठीक नही था... कि माता पिता जब बूढ़े हो जाए और इस्तेमाल के लायक नही हो तो टूटे फूटे फर्नीचर की तरह कबाड़ के साथ उन्हें फेंक दो.... आज मैं तुम दोनों से पूछता हूँ... कि कल को जब तुम्हारी भाभी तुम्हारे माता पिता के साथ ऐसा व्यवहार करें तो क्या तुम्हें बुरा नही लगेगा और तुम दोनों अपनी भाभी के बीच में नहीं बोलोगी क्या??? इसलिए प्रीति को भी बोलने का पूरा हक है.... तुम दोनों इसके लिए उसे बेइज्जत नहीं कर सकती....एक बात और कहना चाहुंगा कि हम जैसा बीज होते हैं.... वैसा ही काटते हैं... आज जो तुम करोगी.... कल तुम्हारे साथ भी वैसा ही होगा.... जो आज हमारा है... कल तुम्हारा होगा...
मैं खुश्नशीव हूँ....कि मेरे बेटे लायक है.... मैंने उन्हें अच्छे संस्कार दिए है.... लेकिन तुम्हारे तो वैसे संस्कार भी नहीं... तुम्हारे बच्चे जो देखेगें वही तो सीखेगें....
प्रकृति का नियम है.. जो तुम जिन्दगी को दोगे जिन्दगी तुम्हें वही बापस देगी....
सुधाकर जी की बातें सुनकर दोनों बहुओं को अपनी गलती का अहसास हुआ और दोनों ने अपने ससुर से अपने किए के लिए माफी मांगी.....और कहा पापा हम दोनों अपने स्वार्थ में अंधे हो गये थे....आपने हमें जीवन का आइना दिखा दिया...प्लीज हमें माफ कर दीजिये.. "सुधाकर जी ने उनकी आंखो में पछतावा देखते हुए तहे दिल से उन्हें माफ कर दिया....
दोस्तों ये कड़वी मगर सच्चाई है... कि जब माता पिता बूढ़े हो जाते है.... और इस्तेमाल के लायक नहीं रहते तो उन्हें टूटे फुटे फर्नीचर के समान कबाड़ में फेंक दिया जाता है... लेकिन वो बच्चे ये नहीं समझते की जो हम आज कर रहे है.. कल हमारे साथ भी वही होगा... हम भी बूढ़े होगें....
आपको कैसी लगी मेरी स्वरचित रचना पढ़कर अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत जरूर कराईयेगा....
अच्छी लगे तो कहानी को लाइक, कमेंट और शेयर जरूर कीजिये... और प्लीज मुझे फालो करना मत भूलिए....
आपकी ब्लागर दोस्त
@ मनीषा भरतीया
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