सुबह सुबह मीठी आवाज में आरती की गूंज से पूरा वातावरण निर्मल हो रहा था। उनकी आवाज में साक्षात सरस्वती का वास था। यह आरती की आवाज सुधाकर जी के घर से आ रही थी। उनकी पत्नी सुनीता जी रोज सुबह 5 बजे ही भगवान की भक्ति में लग जाती थी। सुधाकर जी के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा उनकी मां और दो प्यारी बेटियां थीं। घर में बहुत ही हंसी खुशी का माहौल था।
सुधाकर जी हमेशा अपनी पत्नी सुनीता जी से कहते, तुमने मेरे जीवन में आकर मेरा जीवन सफल बना दिया।
"तुम्हारी जैसी संस्कारी, गुणी और सकारात्मक सोच बाली पत्नी पाकर मैं धन्य हो गया| तुमने मुझे हमेशा दिया ही है, कभी कुछ मांगा नहीं। प्यार, इज्जत, दो प्यारी बेटियां, सब कुछ। सच तुमने मेरा घर खुशियों से भर दिया। मैं चाहता हूं कि आज तुम कुछ मांगो।"
"मैं क्या मांगू! भगवान ने तो मुझे बिन मांगे सब कुछ दे दिया। आपके जैसा प्यार करने वाला जीवनसाथी, दो प्यारी बेटियां, सासु मां के रूप में मां, और भला क्या मांगू? भगवान ने तो पहले ही मेरी झोली खुशियों से भर दी है। वैसे मैं उतनी भी महान नहीं जितना आप मुझे समझते हैं। यह तो आपका बड़प्पन है, इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं। आपने जो मुझे मान सम्मान दिया है। एक औरत होने के नाते यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। हमेशा मुझे अपनी बराबरी का दर्जा दिया, हर छोटे बड़े फैसले में मेरी राय ली। कभी भी यह अहम नहीं दिखाया कि मैं एक मर्द हूं और तुम एक औरत हो, मेरे हर फैसले में मेरा साथ दिया"|
सुनीता जी की बात कंपलीट हुई नहीं थी, उससे पहले उनकी दोनों प्यारी बेटियां सुधा और प्रिया आ गईं और कहने लगी "मां पापा बचपन से आपको एक दूसरे की तारीफ करते सुनते आ रहे हैं। आप लोगों को यह एक दूसरे को बताने की जरूरत नहीं है कि आप दोनों कितने अच्छे पति पत्नी और संसार के बेस्ट मम्मी पापा हो। अगर आप लोगों की बातें खत्म हो गई हों तो ब्रेकफास्ट टेबल पर लगा दिया है, ठंडा हो रहा है। दादी आप की पूजा हो गई हो तो आप भी आ जाइए।"
"हां हां बेटा" कहकर सब ब्रेकफास्ट के लिए बैठ गए। सुधा ओर प्रिया बहुत तेजी से नाश्ता कर रही थीं। तब दादी ने टोकते हुए कहा "लड़कियों आराम से खाओ, नाश्ता कहीं भागे नहीं जा रहा|"
"अरे दादी आप नहीं जानती आज हमारे कॉलेज में एनुअल डे का फंक्शन है। जिसके लिए कॉलेज जल्दी पहुंचना है और फिर रिहर्सल भी तो करनी है" कहते कहते दोनों सब को जय श्री कृष्णा कर के भाग गई। इसी तरह बाकी सभी भी अपने अपने काम में लग गए।
सुधाकर जी जाने-माने रहीस थे।,घर में धन धान्य की कोई कमी नहीं थी।,"बस एक ही चिंता उन्हें दिन रात खाए जा रही थी।," की वह अपनी बेटियों को विदा कैसे करेंगे।" बह उनकी जुदाई 1 दिन भी बर्दाश्त नहीं कर पाते थे।, सुमित्रा जी कहती थी।," अगर आप इसी तरह कमजोर होंगे तो बेटियों को विदा कैसे करेंगे ।," सुधाकर जी हंस के बोलते! हम अपनी बेटियों के लिए घर जमाई ले आएंगे, उन्हें अपने पास ही रख लेंगे। "जी आप हद करते हैं।, बेटियों को तो भगवान भी अपने पास नहीं रख पाए, तो हम किस खेत की मूली है। सीता जी राजा जनक की इकलौती बेटी थी।" लेकिन फिर भी दिल पर पत्थर रख कर ही सही राजा जनक को सीता जी को राम जी को ब्याहना ही पड़ा। " दुनिया के दस्तूर को हमें भी निभाना ही पड़ेगा।
" वो तो ठीक है पर तुम्हें तो पता ही है सुनीता, हमने अपनी बेटियों को कितने नाजो से पाला है, अपनी पलकों पर बिठा कर रखा है, उनकी हर ख्वाहिश को पूरा किया है।,और करे भी क्यों नहीं हमारी बेटियां है ही इस काबिल,, मुझे चिंता है तो बस इस बात की कि कि इन्हें कैसा ससुराल मिलेगा, वहां के लोग कैसे होंगे, खुश तो रहेंगी ना अपने ससुराल में, यही सब सवाल मुझे झकझोर कर रख देते हैं। " फिजूल की चिंता करते हो जी," हमने अपनी बेटियों को इतने अच्छे संस्कार दिए हैं कि, वो जिस घर में भी जाएगी, अपने गुणों और संस्कारों से पत्थर से पत्थर दिल आदमी को दिल जीत लेगी।
" वैसे भी अभी सुधा की शादी में2 साल, और प्रिया की शादी में 4 साल की देरी है। " सुधा जब 2 साल बाद वकील बन जाएगी तभी तो उसकी शादी करोगे " । अरे सुनीता सुधा के रिश्ते तो अभी से आने शुरू हो गए, बस इसीलिए दिल में हलचल सी होने लगी,की मेरी जिंदगी में भी वह दिन आने वाला है,जब मुझे अपने कलेजे के टुकड़ों को अपने से अलग करना पड़ेगा।
" जी हम अपनी बेटियों की शादी करें इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा उन पर कोई हक नहीं रहेगा। " हमारा जब दिल करेगा हम उनसे मिलने चले जाएंगे, कभी वो हमसे मिलने आ जाएगी। " सुनीता जी की बातों ने सुधाकर जी को संतोष प्रदान किया।
धीरे-धीरे वक्त का पहिया अपनी रफ्तार से चलने लगा सुधा भी अब वकील बन गई थी।," और उसकी शादी लायक उम्र भी हो गई । " रिश्ते तो पहले से ही आ रहे थे।," लेकिन सुधाकर जी की मन में सवाल यह था कि रिश्ता टक्कर का भी तो होना चाहिए।, बेटी वकील है तो, किसी भी ऐरे गैरे कम-लिखे लड़के से तो शादी नहीं कर सकते, यही सब सोच रहे थे ।,कि अचानक एक दिन उनके बचपन के दोस्त गुप्ता जी का फोन आया," तो कहने लगे आपने बताया नहीं कि हमारी बेटी वकील बन गई है, इस बात पर मिठाई तो बनती है, तब सुधाकर जी बोले! अरे गुप्ता मिठाई क्या? मैं तो कहूंगा तुम्हारी भाभी के हाथ का लजीज खाना भी हो जाए।, वैसे भी एक जमाना हो गया मिले हुए। " गुप्ता जी ने कहा नेकी और पूछ पूछ," मैं और मेरा परिवार है अभी दिल्ली भ्रमण के लिए आए हुए हैं," कल रात को ही तुम्हारे घर डिनर पर मिलते हैं।, ठीक है कह कर सुधाकर जी ने फोन रख दिया। " दूसरे दिन गुप्ता जी अपने परिवार के साथ डिनर के लिए आ गए " बातों बातों में उन्होंने बताया कि उनका बेटा भी आईएएस ऑफिसर बन चुका है। "अगर तुम उचित समझो तो, सुधा और राजेश का रिश्ता कर देते हैं।, बचपन की दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाएगी।, मुझे तो सुधा बेटी बचपन से ही बहुत पसंद है। हां लेकिन एक बार सुधा बेटी से पूछ लो अगर उसे कोई एतराज ना हो हो तो। सुधाकर जी बोले! हर बाप अपनी बेटी का रिश्ता अच्छे घराने में करना चाहते हैं, मेरी बेटी के लिए तुमसे घर से बेहतर घराना और क्या होगा। " हां लेकिन तुम्हारी बात भी अपनी जगह सही है," बच्चों की मर्जी एक बार जान लेना भी जरूरी है।
सुधा, राजेश बेटा तुम दोनों आपस में बात कर लो, यह कहकर सब ने उन्हें अकेला छोड़ दिया। जब दोनों बात करके वापस आए तो सब ने पूछा तो दोनों ने हां कर दी।
आखिर वह दिन आ ही गया जब सुधाकर जी को अपने एक कलेजे के टुकड़े को विदा करना था।, " एक तरफ मिलन की खुशी तो दूसरी तरफ जुदाई का गम था।, शादी में कोई कसर नहीं रही, दोनों परिवारों ने बहुत धूमधाम से शादी की।"
विदाई के वक्त सुधाकर जी और सुनीता जी की आंखें नम हो रही थी। ", और सुधा को भी बाबुल का घर छोड़ना गवारा नहीं था।" लेकिन समाज की रीत को तो निभाना ही था।
" गुप्ता जी ने सबकी आंखें नम देखकर कहां, हम बहु नहीं बेटी ले जा रहे हैं," सुधा अपने एक बाबुल को छोड़कर दूसरे बाबुल के घर ही जा रही है।
आपका जब दिल करे आप मिलने आ जाना,, चाहो तो सुधा बेटी को बुला लेना। सुधाकर जी और सुनीता जी भी अब निश्चिंत हो गए बेटी की शादी एक अच्छे घराने में हो गई। सुधाकर जी जिस बात को लेकर इतने चिंतित हो रहे थे।, आज उन्हें इस बात का एहसास भी नहीं हो रहा था, की उन्होंने अपनी बेटी विदा भी की है। सुधा अपने ससुराल में बहुत मजे से थी। कभी सुधाकर जी अपने परिवार के साथ मिलने चले जाते तो कवि सुधा आ जाती।
देखते-देखते सुधा की शादी को 4 साल बीत गए। , और प्रिया को भी ब्याहने का वक्त भी आ गया। प्रिया की पढ़ाई भी कंप्लीट हो चुकी थी, बस एक फॉर्मल सर्टिफिकेट आनी बाकी थी।," इसी बीच दादी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई, डॉक्टर ने कहा कि कुछ दिन की मेहमान है, ज्यादा से ज्यादा दिन महीने,इनकी अगर कोई भी ख्वाहिश है तो प्लीज उसे पूरी कीजिए।" दादी की इच्छा थी ।, की वो अपनी दूसरी पोती की शादी देखकर इस दुनिया को अलविदा कहें।
रिश्ते तो कई आए लेकिन शिक्षा की दृष्टिकोण से कोई भी रिश्ता प्रिया के लायक नहीं था।," लेकिन दादी की इच्छा को ध्यान में रखते हुए संजय नाम के एक लड़के को, जिसका अपना बिजनेस था।, प्रिया ने उस रिश्ते के लिए मंजूरी दे दी।," लड़का और खानदान देखने सुनने में बहुत ही सुलझा हुआ लग रहा था।," अच्छा मुहूर्त देख कर दोनों की सगाई कर दी गई।," लेकिन सगाई के एक हफ्ते बाद ही लड़के वाले घर आए और कहने लगे हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है।
" सुधाकर जी अवाक रह गए, और पूछा!
अचानक ऐसा क्या हुआ कि आप सगाई तोड़ना चाहते हैं?
यह तो आप अपनी बेटी से ही पूछिए।," यह लड़कों के साथ गुलचर्रे उड़ आती है, हंस-हंसकर बातें करती है।
हमारे घर में इस तरह लड़कियों का लड़कों से बातें करना हमें पसंद नहीं है।," आप बेटियों वाले हैं थोड़ा मर्यादा में रहना चाहिए।" जबान संभाल कर बोलिए समधी जी!,
बेटियों वाले हुए तो क्या हुआ?
"मुझे नहीं पता कि इस आधुनिक युग में भी आप लड़कियों का लड़कों से बातें करना बुरा समझते है।,"
मेरी बेटी डॉक्टर है, उसका प्रोफेशन ही ऐसा है कि उसे अपने कलीग से पेशेंट की केस हिस्ट्री को लेकर डिस्कशन करना ही पड़ता है। और हां रही बात हंसी मजाक की तो कभी-कभी जब दोस्त साथ में बैठते हैं तो हंसी मजाक हो ही जाता है। माफ कीजिएगा मेरी बेटियां मेरा गौरव हैं।" उनके संस्कारों पर कीचड़ उछालने का हक मैंने किसी को नहीं दिया है। और ना ही उनके चरित्र की सर्टिफिकेट मुझे किसी और से लेने की जरूरत है। आप तो मेरी बेटी को सिर्फ एक हफ्ते से जानते हैं, मैं 26 साल से जानता हूं। अच्छा हुआ वक्त रहते आपकी छोटी सोच सामने आ गई। आप क्या ये रिश्ता तोड़ेंगे, मैं यह रिश्ता तोड़ता हूं। वैसे भी आपका बेटा किसी भी लिहाज से मेरी बेटी के काबिल है ही नहीं।
दोस्तों, आपको क्या लगता है सुधाकर जी ने रिश्ता तोड़ कर सही किया? अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें।
#कॉपीराइट
मनीषा भरतीया
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