कविता उठ कब तक सोती रहेगी!" रोज़ सुबह-सुबह कविता की मां उसे चिल्ला चिल्लाकर उठाती। "जा उठ टहल कर आ, एक्सरसाइज कर, जिससे कि तेरा थोड़ा वजन कम हो सके।"
लेकिन कविता के सर पर तो जैसे जूं तक नहीं रेंगती! वह रोज रात को अपनी मां से यही कह कर सोती "मां मुझे सुबह भोर तड़के 5 बजे उठा देना, मेरा वजन बहुत बढ़ गया है।"
लेकिन कब नौ मन तेल होगा और कब राधा नाचेगी, अरे उठेगी तभी तो जाएगी। कविता की मां जब रिश्ते की बात करती तो उसका यही कहना था कि वह मोटे लड़के से शादी नहीं करेगी, जबकि वह खुद मोटी थी। उसकी मां हंसकर उससे कहती कि बेटा तू खुद मोटी होकर मोटे लड़के से शादी नहीं करना चाहती, तो तेरे से पतला लडका कैसे ब्याह करेगा? पतला लडका भी तो पतली दुल्हनिया ही पसंद करेगा, वह तेरे जैसी मोटी को क्यो पसंद करेगा!
कविता बहुत ही प्यार से अपनी मां को समझाती, मां कोई तो ऐसा होगा जो मेरे मोटापे को नजरअंदाज करके मेरी सुदंरता देखकर मुझे पसंद करेगा। लेकिन उसकी मां उसकी इस बात से सहमत नहीं थी। वह निरंतर उससे यही कहती "बेटा अगर तुझे मनचाहा जीवनसाथी चाहिए तो तुम्हें भी कुछ परिश्रम करना होगा। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। तुझे अपनी नींद को त्यागना होगा, तला हुआ खाना, जंक फूड, इन सब चीजों से परहेज करना पड़ेगा। डाइटिंग करनी पड़ेगी। तुम्हें सारे दिन में चार रोटी, जूस, ज्यादा मात्रा में सलाद का सेवन करना पड़ेगा। मैं मानती हूं कि तुम खूबसूरत हो, लंबी हो, तुम्हारी आंखें बड़ी बड़ी और कजरारी हैं, लेकिन एक ऐब तो है ना बेटा जिसे तुम झूठला नहीं सकती और वो है तुम्हारा मोटापा! "मोर नाचे ही नाचे लेकिन पैरों को देखे तो रोए! कभी तुमने ध्यान से मोर को देखा है,वो देखने में तो बहुत खूबसूरत है लेकिन उसके पैर!
इन सारी बातों का कविता के ऊपर कुछ खास असर नहीं पड़ता था| उसके मन में कहीं ना कहीं विश्वास था कि उसे अपना मनचाहा जीवनसाथी मिलेगा।, " और वह अपनी मां को लगातार इसी बात पर ढांढस बधांती रहती की मां तुम चिंता मत करो। कोई तो होगा जो मेरी सुंदरता को देखेगा मेरे मोटापे को नहीं। मां भी क्या करती उसके भोलेपन पर हंसने के अलावा उसके पास और कोई विकल्प नहीं था। हंस तो देती थी, लेकिन उसकी मां के मन में भी कहीं ना कहीं उसको लेकर चिंता समाई थी, वह कविता के बाबूजी से कहती है इसकी बेतुकी जिद से मैं तंग आ गई हूं, इसे मोटा लड़का पसंद नहीं आता और पतला इससे शादी नहीं करेगा| जब भी कहती हूं बेटा आगे बढ़ कोई फैसला कर, तब एक ही गाना गाना शुरु कर देती है| मनचाहा लड़का कहीं कोई मिल जाए तो अपना भी इस साल शादी का इरादा है। अब आप ही बताओ जी इस लड़की का क्या होगा?
कविता के बाबूजी कहते अरे भागवान तुम इतनी चिंता क्यों करती हो, हमारी बेटी अभी 20 साल की हुई है, हो सकता है उसे कोई पतला लड़का मिल जाए| इंसान की अपनी किस्मत भी होती है, तुम बस देखती रहो। बाकी सब किस्मत पर छोड़ दो।
पंडित जी भी परेशान थे, जितने भी रिश्ते लेकर आए कुछ कविता ने मना कर दिए कुछ को लड़के वालों ने मना कर दिए। लेकिन कहते हैं ना अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात लग जाती है आपको उससे मिलाने के लिए| बस ठीक ऐसा ही कुछ कविता के साथ हुआ। खोजते खोजते पंडित जी को एक रिश्ता मिला जो बिल्कुल कविता के लायक ही था| हां लड़की वाले कविता के पिता की तरह धनवान नहीं थे| लड़का मध्यमवर्गीय परिवार से था, लड़के के घर में तीन बहनें, मां और पिताजी थे, तीनों बहनों की शादी हो चुकी थी। लड़के और उसके खानदान को कविता पसंद आ चुकी थी| बस फिर क्या था, पंडित जी लड़के वाले को घर लेकर आ गए। फोटो में तो लड़के वालों ने कविता को पसंद कर ही लिया था, लेकिन फिर भी कविता की मां के मन में कुछ सवाल थे, तो उन्होंने लड़के से पूछा बेटा एक बात पूछूं अगर तुम बुरा नहीं मानो तो|
नहीं आंटी आप बेझिझक पूछ सकते हैं, आप अपने जिगर का टुकड़ा सौंपने जा रही हैं, एक नहीं आप जितने चाहे सवाल पूछ सकती हैं|
ठीक है बेटा कहकर कविता की मां ने पूछा-
बेटा तुम्हें तो एक से एक पतली लड़की मिल जाएगी, फिर तुम मेरी कविता को क्यों पसंद कर रहे हो? कहीं ऐसा तो नहीं तुम किसी के दबाव में आ कर हां कर रहे हो?
लड़के ने हंसकर जवाब दिया नहीं आंटी ऐसा कुछ भी नहीं है| वो बात यह है कि मुझे मोटी लड़की से कोई परहेज नहीं है क्योंकि मेरी तीनों बहनें भी मोटी हैं और कविता की तरह ही खूबसूरत हैं| लड़की मोटी या पतली से कुछ फर्क नहीं पड़ता| मान लीजिए आज मैं पतली लडकी से शादी करूं कल वो मोटी हो जाएगी तो मैं क्या कर लूंगा? आप चाहें तो मुझ पर भरोसा कर सकते हैं और अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में दे सकते हो| मैं उसे जिंदगी भर खुश रखूंगा।
लड़के के मां-बाप ने भी सहमति में सर हिलाया और कहा हमारा बेटा कमलेश बिल्कुल ठीक कह रहा है| समधी, समधन जी, बस एक बात की दिक्कत है, आपकी बेटी जिस ऐशो आराम में पली है, वौ ऐशो आराम उसे हम नहीं दे पायेगें। हमारे घर पर हम सारे काम मिलजुल कर हाथ से ही करते हैं, आपके तरह नौकर-चाकर नहीं हैं| अगर कविता बेटी एडजस्ट कर ले|
यह सुनकर कविता तपाक से बोली, आंटी मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, मैं सारे काम कर लूगीं, आप निश्चिंत रहिए।
यह सब सुनकर कविता की मां बोली! "कविता हमारी इकलौती बेटी है, हमारा जो भी कुछ है, वो इसी का है।"
"नहीं समधन जी, आप सोचियेग भी मत| हमारा बेटा बहुत स्वाभिमानी है, अपनी भुजा पर भरोसा रखता है| अगर आप उसे कुछ भी देंगे तो उसे लगेगा की आप उस पर तरस खा रहे हैं। इसी वजह से इसने कितने रिश्ते ठुकरा दिये। आप तो बस शादी की तैयारियां करो।"
यह सब सुनकर कविता की मां की आँखों में खुशी के आंसु आ गये। यह सोचकर की लालच से भरे हुए युग में इतने नेक विचार! ये चाहता तो हमारी मजबूरी का फायदा उठाकर पूरी जायदाद अपने नाम लिखवा सकता था।
इस कहानी का मर्म आप समझ ही गए होंगे। दोस्तों, यह कहानी हमारे आसपास की घटनाओं आधारित है जो हमारे आसपास घटती रहती है| कविता जैसे कई लड़के लड़कियों के माता-पिता अपने बच्चों की खुशियों को पैसों से खरीदना चाहते हैं, जो एक बार भी यह नहीं सोचते हम खुशियों के बदले गम को खरीद रहे हैं। एक बार भी नहीं सोचते बस रिश्ता आया, दौलत के दम पर खरीद लिया| उन्हें एक बार मन में सोचना चाहिए, इसका खामियाजा हमारी सतांन को भुगतना पड़ सकता है। जिस तरह कविता की मां ने कविता की अंधी जिद पर एकदम से हां नहीं की| पहले सोचा, समझा, परखा और पूरी तसल्ली के बाद हां की| उसी तरह हर मां बाप को चाहिए कि अपने बच्चों की अंधी जिद को पूरी करने की होड़ में खुशियों के बदले गम न खरीद लें|
धनय्वाद, मेरी कहानी पढ़ने के लिये। आशा करती हूं आपको मेरी स्वरचित व मौलिक कहानी पसंद आयेगी। अगर पसंद आए तो प्लीज लाइक, कमेंट और शेयर कीजिए|
आपकी
मनीषा भरतीया
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