Title माता - पिता सर पर छत की तरह होते है।

Value of parents

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Manisha Bhartia
Manisha Bhartia 01 Jun, 2020 | 1 min read
Varsha sharma Vinita dhiman Radha patwari vrindawani

रूचिका बहुत ही सुलझी हुई और समझदार लड़की थी और वह अपने नाना नानी के यहां ही बचपन से रहती थी। क्योंकि रुचिका की मां अपने माता पिता की इकलौती संतान थी| इसलिए उसकी शादी के बाद उसके माता-पिता बिल्कुल अकेले हो गए थे। यह सोच कर रुचिका की मां ने अपनी दूसरी बेटी (रुचिका) को जन्म देते ही अपने माता-पिता को सौंप दिया! जिससे कि उनका अकेलापन दूर हो जाए और बुढ़ापा भी आसानी से कट जाए।

रुचिका के घर में उसकी बड़ी बहन के अलावा दो भाई और पिताजी थे। रुचिका ने बचपन से अपनी शादी को लेकर कोई बहुत ज्यादा सपने नहीं संजोए थे। बस चाहा था कि उसका पति उसकी भावनाओं की कद्र करे और समझदार हो! उसने जैसा सोचा था उससे बेहतर ही ससुराल उसे मिला।

जतिन बहुत ही अच्छा और संस्कारी लड़का था। उसके घर में चार बहनें, मां और पिताजी थे। जिसमें से दो बहनों की शादी हो चुकी थी और दो उससे छोटी कुंवारी थीं। रुचिका का व्यवहार सबसे बहुत ही अच्छा था। वह सभी से बहुत मनुहार करती फिर चाहे वो पड़ोसी हो या रिश्तेदार! उसकी ननदें भी उसके व्यवहार से बहुत खुश रहती थीं क्योंकि जब भी नंनदें घर पर आती वह तरह तरह के पकवान बनाती और खिलाती, पर कभी उनसे एक काम भी ना करवाती|

जितनी भी जिद करो हर-बार एक ही बात कहती "दीदी आप जाइए मम्मी जी से बातें कीजिए, यह आपका मायका है| यहां भी क्या आप काम ही करेंगीं? मैं सब कर लूगीं! आप निश्चिंत रहिए।"

इतना ही नहीं ननदोंई भी सब बहुत खुश रहते और अपनी-अपनी पत्नियों से कहते कि भई वाह! तुम्हारी भाभी के हाथों में तो जादू है, इतना अच्छा खाना बनाती है| और मनुहार करने में तो उनका जवाब ही नहीं, जब भी जाओ हाजिर ही खड़ी रहती है। मम्मी जी की तो लॉटरी लग गई इतनी अच्छी बहू जो मिल गई। और साले साहब से तो हमें कभी कभी जलन होती है कि काश हमारी पत्नियों को भी इतना ही अच्छा खाना बनाना आता। ननदें भी अपनी भाभी की तारीफ सुनकर फूली नहीं समाती, ये नहीं कि बुरा मान जाएं और लड़ने झगड़ने लग जाएं|

रुचिका भी अपने ससुराल में बहुत खुश थी। सभी उसके साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते। उसकी कुवारीं नंनदें भी उसे भाभी कम और दोस्ता ज्यादा समझती थी।, बस समस्या एक ही थी की उसके ससुर जी को बहुत चिल्ला कर बात करने की आदत थी।,वे अगर नॉर्मल भी बात करते तो भी ऐसा प्रतीत होता कि लड़ रहे हैं।," यह सब उसे एकदम अच्छा नहीं लगता था।" क्योंकि वह एकदम शान्त माहौल से आई थी।," उसने अपने नाना- नानीजी को कभी तेज आवाज में बात करते भी नहीं देखा था। पर धीरे-धीरे उसने अपने आप को उस माहोल में ढाल लिया। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था, इसी बीच उसकी तीन नंबर ननद की शादी तय हो गई। परिवार के नाम पर ससुराल में कोई नहीं था।, सिर्फ भाई बहन थे। , बहन बड़ी थी।" उसकी शादी हो चुकी थी। ," लड़के के माता पिता बहन की शादी करके चल बसे। सबकुछ लड़के का ही था। ,नैना को ससुराल में कोई रोकने टोकने वाला नहीं था। ,सुरज भी नैना को बहुत प्यार करता था,उसकी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश को पूरी करता क्योंकि उसकी भी पूरी दुनिया नैना ही थी।,एक बहन थी जिसकी भी शादी हो चुकी थी। वो कभी कभी आती और चली जाती

लेकिन उनकी गृहस्थी में कोई दखलअदांजी नहीं करती। बस नैना और सुरज का मनुहार करती,उनके लिए ढेर सारे गिफ्ट लाती और दे देती। नैना और सुरज भी उसको बहुत प्यार करते ! कभी भी ये एहसास नहीं होने देती की मायके में मां बाबुजी नहीं है।" नैना को भी कभी एहसास ही नहीं हुआ की वो अपने ससुराल में है ,क्योंकि उसे ननद के रूप में एक और बड़ी बहन मिल गयी थी।,नैना की तो ऐश ही ऐश थी।,महीने में दो बार तो सुरज उसे मूवी दिखाने और बाहर डिनर के लिये लेकर जाता ही था,और साथ ही साथ साल में चार वार आऊटींग के लिये। ये सब देखकर

और नैना की लाइफ स्टाइल से अब रूचिका को उससे थोड़ी जलन होने लगी!यही सोचकर एक दिन उसने मौका देखकर जतिन से बात करनी चाही और कहा जतिन मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूं।,अगर आप बुरा न मानों तो जतिन ने कहा ऐसी क्या बात है बोलो। वो , वो नैना दीदी।,हां तो क्या हुआ नैना को,नहीं हुआ कुछ नही। मैं ये सोच रही थी,की नैना दीदी की लाइफ स्टाइल कितनी अच्छी है,कोई चीज की रोक टोक नही!जब मर्जी उठो,किचन में भी नहाकर जाना नहीं पड़ता है।,जब मन चाहे घुमने निकल जाओ,बाहर से खाकर आ ज़ाओ।जिम्मेदारी बोल के तो कुछ

है ही नही! मुझे तो रोज सुबह जल्दी उठना पड़ता है,किचन में भी नहाकर ही जाना पड़ता है,गाउन भी रात 11 बजे कमरे में पहनों और सुबह 6 बजे मम्मीजी - पापाजी के उठने से पहले ही चेंज करना पड़ता है,और तो और बाहर भी जाओ डिनर के लिये तो जितना भी थके हो आकर खाना बनाना पड़ता है।क्योंकि मम्मीजी- पापाजी बाहर का खाना नहीं खाते है। ,यह सब सुनकर जतिन ने कहा तुम कहना क्या चाहती हो! तो रूचिका सहमी हुई सी बोली हम अगर अलग रहे तो,यह सुनते ही जतिन आग बबुला हो गया! और बोला तुमने सोचा भी कैसे! माता- पिता सर पर छत की तरह होते है। तुम्हें शर्म नहीं आयी ये बात बोलते हुए। किस्मत वाले होते हैं वह बच्चे जिनके मां बाप होते है।

माता - पिता वो सुरक्षा रुपी कवच है, जो अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाते हैं। कितनी भी मुसीबत क्यों ना हो लेकिन वह अपने बच्चों पर खरोच तक नहीं आने देते। हर दुख, हर तकलीफ हंसते-हंसते सह लेते है।,और तुम्हें नैना की जिदंगी बहुत अच्छी लग रही है ना, लेकिन कल तुम खुद कहोगी की क्योंकि अभी नैना की कोई संतान नहीं है ,उस समय देखना जब उसकी सतांन होगी उसे न चाहते हुये भी अपने बच्चे को खुद ही सभांलना पड़ेगा।" क्योंकि उसके पास उसके वच्चे को दुलार करने वाले चार हाथ नहीं होगें! बच्चे दादा दादी के प्यार से वंचित रहेंगें।बच्चे में अनुशाशन का संचार करने वाला कोई नहीं होगा । सुरज़ जी को कभी भी काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ता है, तो वो यही आती है,क्योंकि अकेले घर उसे काटने को दोंड़ता है।,क्योंकि उसके पास सास- ससुर के रूप में माता - पिता नहीं है।, लेकिन तुम्हें भगवान ने ये सौभाग्य दिया है, तुम अपने आप को इस सुख से वंचित मत रखो। उनकी सेवा करों और उनका आशीर्वाद लो।

और हां एक बात और ध्यान में रखना आज जैसा हम करेंगे कल हमारा बेटा भी हमारे साथ वैसा ही करेगा क्योंकि बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं। मैं अपने माता-पिता को इस उम्र में दर बदर की ठोकरे खाने के लिए नहीं छोड़ सकता। तुम्हें अगर रहना है तो उनके साथ ही रहना होगा नहीं तो तुम जा सकती हो। और एक बात बताओ, तुम क्या माता पिता उस दिन के लिए बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करते हैं कि जब बुढ़ापे में उन्हें उन बच्चों की सबसे ज्यादा जरूरत हो उस समय उनका हाथ छोड़ दें? जबकि उनकी कोई गलती भी न हो।

यह सब सुनकर रुचिका को अपनी गलती का एहसास हो गया। उसने जतिन से माफी मांगी और कहा "जतिन ठीक कहा आपने, मैं बहुत बड़ा पाप करने जा रही थी| क्षणिक सुख पाने के लिए स्वार्थ में अंधी हो गई थी। लेकिन आपने मेरी आंखें खोल दी, मुझे माफ कर दीजिए।"

दोस्तों यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है। बस पात्र के नाम बदल दिये गये है।

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आपकी

मनीषा भरतीया

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Manisha Bhartia

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