अगर मैं डॉक्टर होती तो दीन-दुखियों की मदद करती।,मैं ये तो नहीं कहती की मैं सबका इलाज मुफ्त करती,पर दीन दुखियों से अपनी फीस का चौथा हिस्सा लेती,जिसे देने में उन्हें भी कोई दिक्कत नही होती,जिससे उन्हें मेरा इलाज एहसान भी नही लगता।,धनी और पूंजीपतियों से पूरी फीस बसूलती और जो फीस के चौथाई पैसे या ऑपरेशन के पैसे देने में सक्षम नही होते,वो पैसों से मैं उनका इलाज करती।, अपनी डिग्री का कभी भी दुरुपयोग नहीं करती।, अपना अस्पताल छोटे-मोटे गांव में ही खोलती।, ज्यादा पैसे कमाने की लालच में शहर में अस्पताल कभी नहीं खोलती।, परोपकार ,सेवा ,दया को अपना पहला धर्म मानती।,मरीज का मर्ज समझ में आता तभी उनका इलाज करती, ना कि उन्हें उलझाती।,नहीं समझ में आता तो उन्हें दूसरे डॉक्टर के पास भेज देती ।,रोते हुए के चेहरे पर मुस्कुराहट लाना मेरा पहला कर्तव्य मानती।, अपने पैशे से हमेशा ईमानदारी बरतती।
स्वरचित
@मनीषा भरतीया
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut achhe vichar
Many many thanks 🙏🙏
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