पवन एक रहीस खानदान से ताल्लुक रखता था।, सुंदर- सजीला, हैंडसम नौजवान, जो छूने से भी मैला हो जाए।, अभी ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था।," और साथ ही साथ अपना फैमिली बिजनेस भी सभांल रहा था।, वैसे तो उसमें सब कुछ ठीक-ठाक था ,लेकिन उसमें एक खराबी थी।, उसे सुंदर से सुंदर लड़की भी पसंद नहीं आती थी।," उसके कॉलेज में एक से बढ़कर एक सुंदर लड़कियां थी।," जिनमें रंभा ,मेनका , और उर्वशी जैसी खूबसूरती थी।," लेकिन वह किसी की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखता था।, पता नहीं उसे ऐसा क्या चाहिए था, अपनी होने वाली बीबी में, उसे किस तरह की सुंदरता पसंद थी।, वह बस कॉलेज में पढ़ाई करता, दोस्तों के साथ कैंटीन में अड्डा मारता, और जो समय बचता उसमें अपना फैमिली बिजनेस संभालता।, पवन के पिताजी का इलेक्ट्रॉनिक चीजों का शोरूम था, जैसे टीवी ,फ्रिज, एसी ,वांशिग मशीन इत्यादि।,घर में पवन के अलावा उसके माता- पिता और उसकी दो छोटी बहनें थी।,"दोंनों स्कूल में पढती थी।, एक बारहवीं में और दूसरी दसवीं में थी।, चूंकि बहने दोनों छोटी थी।, तो शादी पहले पवन की होनी थी।," पवन का ये कॉलेज का लास्ट ईयर था।, और पवन के पापा का व्यापार भी अच्छा चल रहा था, साथ ही साथ पवन उसे चलाने में भी निपुण था।," सों घरवालों ने साफ-साफ कह दिया कि तुम्हें कौन सी नौकरी करनी है, कि पहले स्टैंड होगा उसके बाद शादी करेगा।,"हमारा तो अपना जमा जमाया व्यापार है, तुम्हें तो बस उसी को आगे बढ़ाना है।," सों अगले साल हम तुम्हारी शादी कर देंगे।,"और रही बात और पढ़ाई की अगर तुम्हारी इच्छा है ,तो तुम शादी के बाद भी कर सकते हो। ," सों जितनी जल्दी हो सके अपने लिए लड़की पसंद कर लो! हमें तो अब इस घर में बस बहू चाहिए।," प्यारी सी बहु पायल छनकाती आंगन में आ जाए बस और कुछ नहीं चाहिए।," भगवान का दिया हमारे पास सब कुछ है।, यह सब सुनकर पवन भी सोच में पड़ गया की इतनी जल्दी यह सब कैसे होगा? पवन के माता -पिता ने पवन को लड़कियां दिखाना शुरू कर दिया।, हर लड़की में कोई न कोई नुक्स निकालकर पवन रिश्ते के लिए मना कर देता।, घर वाले भी यह सोच कर परेशान थे, की आखिर पवन को किस तरह की लड़की पसंद है , लेकिन कहते हैं ना कि जहां चाह है, वहां राह है, आखिरकर देखते देखते मिस्टर भटनागर की बेटी आस्था पवन को भा गई।, लाल रंग की चुनरी की साड़ी, बालों में गजरा,लम्बें खुले हुए रेशमी चमकदार बाल, और हल्के मेकअप में सजी हुई बिल्कुल अप्सरा लग रही थी।, बराबरी में भी खानदान टक्कर का था।," दोनों परिवारों में बातचीत हुई, लड़का लड़की ने एक दूसरे को पसंद किया।, बस फिर क्या था।, पंडित जी से अच्छा मुहूर्त निकलवा कर दोनों की सगाई कर दी गई।, शादी 3 महीने बाद थी। , अब तक पवन ने भी ग्रेजुएशन कंप्लीट कर ली थी।," दोनों परिवारों में शादी की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थी।," देखते- देखते वक्त बीतता गया ।,"और शादी का दिन भी आ गया।, आस्था बहू बनकर घर आ गई और सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था।, आस्था ने भी आते ही अपने मधुर स्वभाव से सब का मन जीत लिया था।, दोनों नंदों को भी वह अपनी छोटी बहन ही समझती।, नंदें भी अपनी भाभी को बहुत मान और प्यार देती।,वैसे तो सारा काम नौकर -चाकर ही करते थे।, बस आस्था खाना बनाती थी।,पवन भी आस्था का बहुत ख्याल रखता शादी के तुरंत बाद हनीमून के लिए उसे पेरिस ले गया।, आस्था भी जैसा पवन को पसंद था , उसी के अनुरूप हमेशा सजी-धजी रहती थी।, देखते -देखते 2 साल गुजर गए और आस्था प्रेगनेंट हो गई।, फिर उसने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया।," लेकिन बच्चे के जन्म लेते ही वह बच्चें को संभालने में इतना मशगुल हो गई की सारी सुध बुध ही खो बैठी।, ना कभी जुल्फों को सवारंती , न सलीके से कपड़े पहनती।, बस जब देखो एक साधारण सा सूट डाल लेती।, जबकि पवन की मां ने बच्चे के पैदा होते ही खाना बनाने के लिए महाराज रख लिया था।, एक दो महीने तक तो पवन चुप रहा उसने कुछ नहीं कहा!" लेकिन एक दिन वह आस्था को आईने के पास ले गया।,और कहा! देखो तुमने अपने क्या हाल बना लिया है? माना कि तुम अब एक मां बन गई हो तुम्हारी जिम्मेदारी बच्चे के प्रति ज्यादा है, लेकिन मां के साथ-साथ तुम एक पत्नी भी हो। क्यां हमारे आरव को सभांलना में इतना वक्त लग जाता है कि तुम अपनी देखभाल नहीं कर सको? अभी तो तुम्हें खाना भी नहीं बनाना पड़ता है सिर्फ आरव को संभालने के अलावा कोई भी जिम्मेदारी नहीं है। , मुझे मेरी पहली वाली आस्था लौटा दो जिसे मैं ब्यांह कर लाया था।,मुझे आज भी याद है तुम्हारी सादगी में लिपटी हुई सुंदरता को देखकर पहली नजर में ही मैं तुम्हारा कायल हो गया था।, जरा साज सिंगार कर के रहा करो मुझे तुम सजी-धजी अच्छी लगती हो।
पवन की बात सुनकर आस्था ने कहा! वो पवन आरव के कारण मैं रात को ठीक से सो नही पाती। , कभी उसे फिड करना पड़ता है ,तो कभी उसकी नैप्पी चेंज करनी पड़ती है, जिसके कारण सुबह उठने के साथ मेरा सर दर्द हो जाता है।," और मुझे कुछ भी करने की इच्छा नहीं होती ।, तय्यार होने की भी इच्छा नहीं करती।, लेकिन अब मैं अपनी गलती सुधार लूंगी मैं अब से दिन में टीबी न देखकर सो जाया करुगीं।, और वापस से सज धज कर तुम्हारी आस्था बन जाऊंगी। चलो कोई बात नहीं देर आए दुरूश्त आए।,और तुम्हें मेरी भी मदद की जरूरत हो तो प्लीज बोल देना।,अच्छा जाओ जल्दी से तैयार होकर आ जाओ।,आरव को मां को दे दो। मां उसे संभाल लेगीं।चलो हम थोड़ी देर के लिए कहीं घूम कर आते है।, आस्था ठीक है कहकर कर तैयार होने चली जाती है।, जैसे ही वह तैयार होकर आती है, पवन कहता है, यह है मेरी आस्था! बहुत सुन्दर लग रही हो।,तो आस्था कहती है, पवन मैं हमेशा इसी तरह सजीं- धजीं रहुंगी! और आपको शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी।
दोस्तों यह कहानी नहीं हकीकत है,अकसर औरतें बच्चा पैदा होने की बाद बच्चे में इतनी ब्यस्त हो जाती है, की अपने बारे में सोचना ही भूल जाती है।," लेकिन बच्चे की परवरिश के साथ-साथ अपनी देखभाल करना भी बहुत जरूरी है।, क्योंकि पति की नजर अपने ऊपर टिका कर रखनी है ,तो सज- धज के तो रहना ही पड़ेगा।
आपको क्या लगता है पवन ने अपनी पत्नी को सज- धज कर रहने के लिए कहा तो क्या गलत कहा? आपको जो भी लगे कमेंट करके जरूर बताएं। , मुझे तो लगता है कि पवन ने सही कहा।
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पढ़ने के लिए धन्यवाद🙏🙏
स्वरचित व मौलिक
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मनीषा भरतीया
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