सुजाता एक बहुत ही संस्कारी सुलझी हुई और समझदार लड़की थी..... अमीर घराने में पली-बढ़ी होने के बावजूद भी उसमें जरा सा भी अहम नहीं था....,. " बड़ों का आदर और छोटो से प्यार जताना उसे खूब आता था..... दीन- दुखियों के लिए भी उसके मन में दया और करुणा कूट-कूट कर भरी हुई थी |
वह हर शनिवार के दिन रामू काका के साथ जाकर दीन-दुखियों और असहाय को कचौड़ी जलेबी बांटती और उनकी दुआ बटोरती..... घर में सब उससे बहुत प्यार करते थे...... दादा- दादी ,मम्मी- पापा सब की चहेती थी.....
जबकि उसका छोटा भाई सुरेश स्वभाव में उससे बिल्कुल ऑपोजिट था...... उसका मानना था कि गरीब लोग गंदी नाली के कीड़े मकोड़ों की तरह होते हैं...... जो कि अमीरों की झूठी प्रशंसा करके उनसे जोंक की तरह सटे रहते हैं |
जहां एक तरफ सुजाता को गरीबों के दुख कम करके खुशी मिलती थी....,. वहीं दूसरी और उसके भाई सुरेश को यह सब फिजूलखर्ची लगता था......
सुजाता के पिताजी सूर्यनारायण जी किशनगढ़ नामक एक छोटे से गांव में रहते थे.... "और वहाँ के ठेकेदार थे |.... जाने- माने रहींसों में उनकी गिनती होती थी |
गाँव के मजदूर और किसान छोटे- मोटे आयोजन करते तो ठेकेदार ( सुजाता के पिता) सूर्यनारायण जी को सपरिवार आमंत्रित करते..... " जिसमें सुजाता सपरिवार जाती ही नहीं थी..... " बल्कि उनके नृत्य- नाटक कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लेती थी..... इससे उसे एक अजीब सी खुशी मिलती थी |
जब वह मजदूरों और किसानों की खुशी से दमकते हुए चेहरे देखती तो उसकी खुशी और दुगनी हो जाती |.....
बह समय-समय पर अपने पिता से पैसे लेकर उनकी आड़े वक्त में मदद भी करती रहती .....
जबकि उसका भाई सुरेश उनके किसी भी आयोजन में जाता भी नहीं था और अपनी बहन को भी मना करता और कहते कि दीदी तुम्हें कब अक्ल आएगी....., हमारा अपना भी स्टेटस हैं......"इन छोटे-मोटे लोगों से इतना तालमेल अच्छा नहीं है..... आपका |
सुरेश की बात सुनकर सुजाता कहती कि देख सुरेश मैं तो कहूंगी कि हम सब भगवान की बनाई हुई मूरत है..... " हम सब बराबर हैं कोई छोटा या बड़ा नहीं होता |
तुम्हें इनसे घृणा नहीं बल्कि प्यार करना चाहिए |
" फिर भी अगर तू नहीं करना चाहता तो मत कर |"पर मुझे मत रोक!
मुझे इनके खुशी से दमकते हुए चेहरे देखकर बहुत खुशी मिलती है..,... मैं जब भी इनकी परेशानी बांटती हूं .."तो मुझे लगता है कि मुझे दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल गई|
सबकी खुशी की अपने-२ मायने होते हैं...." जिस तरह तुझे अपने दोस्तों के साथ समय बिता कर और अपने पैसे उन पर लुटाकर खुशी मिलती है...... " उसी तरह मुझे इनसे अपनापन जताकर खुशी मिलती हैं|
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