मैं उस नन्ही चिड़िया की तरह हूँ
जिसे ना तो फुदकने से रोका गया
ना ही पंख किसी बंधनों में बाँधे गये
ना ही पिंज़रे में कैद कर के रखा गया।
पूरी आजादी मिली
खुल कर साँस लेने की
ज़ोर ज़ोर से चहचहाने की
सखी सहेलियों से मिलने की
बातें मुलाकातें करने की।
फिर एक दिन उस चिड़िया को
रवाना कर दिया गया परदेश
अलग से थे लोग जहाँ
अलग था जहाँ का वेश।
जीना था उस चिड़िया को
वहीं के नियमों में बँध कर
सहना था सब कुछ वहाँ
चुपचाप खामोश रह कर।
पर कब तक....??
कब तक वो उलझी रहती
रिश्तों के मायाजाल में
कब तक वो ज़िंदा रहती
बिन प्राण के कंकाल में।
याद आई उसे बाबा की बात
जब कोई न दे बच्चे, तेरा साथ
तब तू खुद में जोश भरना
देख बहुत देर न करना।
अपने आँसूओं को ही अस्त्र बनाना
अपनी जुबां को ही शस्त्र बनाना
खामोशी से सब ना सहना
जो दिल मे हो सब कहना।
लिखना पन्नों पर अपने जज्बात
कराना खुद से अपनी मुलाकात
बंधे पंखों को आज़ाद करना
तुम ऊँची एक उड़ान भरना।
दूर आसमां तक पंख फैलाना
नाम गगन में लिख कर आना,
और आज....
आज मैने उस निष्प्राण कंकाल में
अपने शब्दों से प्राण भरा है
गुमनाम था जो मेरा नाम कहीं
एक नाम उसे मैने दिया है
तोड़ दिए सब बंधन झूठे
नही फर्क कोई माने या रुठे
किया आजाद खुद को बंधन से
मुक्त हो 'मुक्ता' नाम लिखा है ।।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.