मेरी पहचान !!!

मेरी पहचान जिसे मैने खुद बनाया।

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Manisha Dubey
Manisha Dubey 06 Mar, 2020 | 1 min read

मैं उस नन्ही चिड़िया की तरह हूँ

जिसे ना तो फुदकने से रोका गया

ना ही पंख किसी बंधनों में बाँधे गये

ना ही पिंज़रे में कैद कर के रखा गया।


पूरी आजादी मिली 

खुल कर साँस लेने की

ज़ोर ज़ोर से चहचहाने की

सखी सहेलियों से मिलने की

बातें मुलाकातें करने की।


फिर एक दिन उस चिड़िया को

रवाना कर दिया गया परदेश

अलग से थे लोग जहाँ

अलग था जहाँ का वेश।


जीना था उस चिड़िया को

वहीं के नियमों में बँध कर

सहना था सब कुछ वहाँ

चुपचाप खामोश रह कर।


पर कब तक....??

कब तक वो उलझी रहती

रिश्तों के मायाजाल में

कब तक वो ज़िंदा रहती

बिन प्राण के कंकाल में।


याद आई उसे बाबा की बात

जब कोई न दे बच्चे, तेरा साथ

तब तू खुद में जोश भरना

देख बहुत देर न करना।


अपने आँसूओं को ही अस्त्र बनाना

अपनी जुबां को ही शस्त्र बनाना

खामोशी से सब ना सहना

जो दिल मे हो सब कहना।


लिखना पन्नों पर अपने जज्बात

कराना खुद से अपनी मुलाकात

बंधे पंखों को आज़ाद करना

तुम ऊँची एक उड़ान भरना।


दूर आसमां तक पंख फैलाना

नाम गगन में लिख कर आना,


और आज....

आज मैने उस निष्प्राण कंकाल में 

अपने शब्दों से प्राण भरा है

गुमनाम था जो मेरा नाम कहीं

एक नाम उसे मैने दिया है

तोड़ दिए सब बंधन झूठे

नही फर्क कोई माने या रुठे

किया आजाद खुद को बंधन से

मुक्त हो 'मुक्ता' नाम लिखा है ।।


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