हवाओं में दुपट्टे का लहराना इश्क़ है
फिज़ाओं में गुल का खिल जाना इश्क़ है
हो कर खफ़ा जब देने लगे दिल सज़ा
प्रेम गीतों से दिल को बहलाना इश्क़ है
हर गली कूचों में इश्क़ एक नयी कहानी कहता है
ग़र हो सच्चे दिल से तो वो इश्क़ रुहानी लगता है
एहसासों को दिल में दबाना इश्क़ है
ज़िंदा रह कर किसी पर मर जाना इश्क़ है
उठाकर पलकें एक झलक देखना उनको
फिर धीरे से नज़रों को झुकाना इश्क़ है
करने लगी सज़दे मैं, ऐ इश्क़ तेरी ख़ातिर
देखने लगी तुझमें ख़ुदा मुझ जैसी क़ाफ़िर
आँखों से दिल में उतर जाना इश्क़ है
रूह में किसी को बसाना इश्क़ है
न हो ख्वाहिशें जहाँ जन्नत की
यार की बाहों में सुकून पाना इश्क़ है।
©®मनीषा दुबे 'मुक्ता'
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