इज़हार कीजिये।

प्यार और इज़हार।

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Manisha Dubey
Manisha Dubey 17 Feb, 2020 | 1 min read

है अगर प्यार, इज़हार कीजिये।

इंतज़ार है,अब इक़रार कीजिये।।

बसने लगे मुझमें

आरज़ू की तरह

घुल रहें साँसों में

खुशबू की तरह

थम न जाए कहीं सांसे हमारी

दिल को यूं न बेकरार कीजिये।।

छोड़ कर राहों में

हम न कहीं जाएंगे

थामा है हाथ जो

साथ भी निभाएंगे

न छूटेगा हाथों से ये हाथ कभी

इक दफ़ा हमारा ऐतबार कीजिये ।।

परिंदा दिल का

यहीं रुक सा गया है

भटकते- भटकते

कुछ थक सा गया है

कैद ही भाए इसे क्या हम करें

निगाहों में इसे गिरफ़्तार कीजिये।।

आँखों को चेहरा कोई

अब जँचता ही नहीं

समझाया भी बहुत

पर समझता ही नहीं

बस जाईये रोम- रोम में हमारे

जुबां पर नाम बरकरार कीजिये।।

मुद्दतों बाद यूं

हम मिल रहे हैं

बातें हैं बहुत

और.....

लब सिल रहे हैं

खामोशियाँ जान भी ले लेती हैं

कहिए कुछ न तकरार कीजिये।।

है अगर प्यार, इज़हार कीजिये।

इंतज़ार है,अब इक़रार कीजिये।।

©मनीषा दुबे 'मुक्ता'

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