Mamta Gupta
Mamta Gupta 15 Dec, 2020
मुसाफिर हूँ यारो
जिंदगी की राहो में,ऊंची नीच डगर में न जाने कितनी बार,कदम मेरे है डगमगाए हैं पैरो में छाले पड़े फिर भी,मंजिल तक चलते चले है आज यहाँ तो कल वहां,मेरा न कोई ठिकाना है एकदिन छोड़कर यह देह बस उड़ जाना है। जीते जी सबके सपने हैं ,मरने के बाद ही अपने है ©️®️ममता गुप्ता✍🏻

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by mamtagupta

15 Dec, 2020

True life by mamta gupta

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