Mamata
23 Sep, 2025
प्रकृति का क्रोध
है प्रकृति का क्रोध ये आपदा का रूप
हे मानव क्यों न तू समझ पाया।
उसकी चलती राहों पर
क्यों तूने अपना घर है बसाया।
क्यों समझ न सका उसकी पीड़ा को
जो उसने तुम्हें यह रूप दिखाया।
जब उसको दुख तुम देते हो
तो क्यों तुमने उसको झुंझलाया।
अब झेलो उसके क्रोध को तुम
जब उसने अपना रौद्र रूप दिखलाया।
ना छेड़ो उसको बार बार
ना घेरो उसको बार बार
कहती है अपनी पीड़ा वह
आपदा बनकर बार बार।
Paperwiff
by mamata1
23 Sep, 2025
आपदा प्रकृति का रौद्र रूप
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