रवि को ऑफिस की देरी हो रही थी,वह तेज कदमों से सीढ़ी की ओर भागा तभी उसका ध्यान उसी फ्लोर के चौथे फ्लैट में रहने वाले वर्मा जी के घर के तरफ गया।हां!उसे ध्यान आया कि आजकल वर्मा जी नहीं दिखाई देते हैं कभी कभार तो वीकेंड में या नीचे सोसाइटी के पार्क में सुबह टहलते हुए दिख जाते थे बस वही हाल चाल हो जाता था पर कुछ दिनों से वर्मा जी दिख ही नहीं रहे रवि ने सोचा आज ऑफिस से आकर जरूर उनके घर हाल पता लेने जाऊंगा दरअसल वर्मा जी और उनकी पत्नी घर में अकेले ही रहते थे वर्मा जी का इकलौता बेटा ही है वर्मा जी का बेटा पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहता था इसीलिए वर्मा जी ने अपनी जमा पूंजी लगाकर उसे अमेरिका पढ़ने भेज दिया। पढ़ाई खत्म होते ही वहीं पर अच्छी नौकरी भी लग गई।बीच-बीच में कभी कभी भारत मां बाप से मिलने तो आ ही जाता था पर बिजी होने कारण अब वह भी नहीं।
रवि का ध्यान आज ऑफिस में ना लगा और शाम को ऑफिस से आते ही वह सबसे पहले वर्मा जी के घर की ओर चल दिया।बेल बजाने के कुछ देर बाद वर्मा जी ने धीरे से दरवाजा खोला हमेशा चेहरे पर मुस्कान वाले वर्मा जी के चेहरे पर दुख और मायूसी रवि को साफ-साफ दिखाई पड़ी। वर्मा जी ने बड़े प्यार से रवि को अंदर बुलाया। रवि ने कहा "अंकल आप बहुत दिनों से दिखाई नहीं दे रहे थे,इसीलिए मन ना माना चला आया हाल-चाल लेने के लिए" रवि के इस अपनापन देख वर्मा जी के आंखों में आंसू निकल पड़े और ना चाहते हुए भी उन्होंने अपनी व्यथा रवि से बताई। दअरसल वर्मा जी के बेटे ने वही शादी कर ली है और वह अब भारत नहीं आना चाहता है। रवि ने वर्मा जी को गले लगाते हुए कहा
"अंकल मैं आपके बेटे समान हूं और यह पूरी सोसाइटी आपके परिवार जैसी है आपने अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर अपना कर्म किया पर आज वह अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहा है तो क्या उसके लिए आप अपनी जिंदगी क्यों खराब कर रहे हैं बाहर आइए और देखिए यहां पर पूरी सोसाइटी आपको अपने परिवार समान लगेगी हम आपके हर दुख सुख में साथ देंगे।"
वर्मा जी ने भी खुशी से रवि को गले लगाया अगले दिन वर्मा जी बाहर निकले तो दोगुनी खुशी और उमंग के साथ।
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