शीर्षक - बंटवारा
"हाँ चली जा बुढ़िया! अब बच्चों की सुननी पड़ेगी। इतनी ताकत नहीं की हम एक दूसरे का ख्याल रख पाएंगे।"
"ऐसा ना कहो बुढऊ! मर जाऊँ अब इस उम्र में अपना बंटवारा देखूँ? जाने क्या क्या झेल गई पर तुमसे अलग ना हुई, अब मरने वक़्त यही बाकी रह गया? ये दिन के लिए सन्तान तो ना की थी जी? "
" छोड़ बुढ़िया! आश्रम जाकर अजनबियों मे रहने से बेहतर नाती पोतों में रहेंगे.. महीने दो महीने पर शकल भी देख लेंगे, जिनके लिए जिंदगी भर व्रत किए अब उनको ना कोस रे!"
©मधु तिवारी
वाराणसी
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