मुझे ऐसा लगा कि कोई मुझे सुन रहा है वरना उस विकट परिस्थिति से हमें कौन निकालता?? वह दिन मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी..
बात उन दिनों की है 1975 में मैं मम्मी पापा और तीन छोटे-छोटे भाई बहन बॉम्बे इस समय मुंबई घूमने गए। लोकल ट्रेन में दादर से मलाड जाना था... सामान काफी था ट्रेन कुछ सेकंड ही तो रूकती है कुली आया और कहने लगा मैं सब संभाल लूंगा आप सब को चढ़ा दूंगा। ट्रेन आई कुली ने सबसे पहले तीनों बच्चों को ट्रेन में खड़ा कर दिया दो ट्रंक ही चढ़ाए को और ट्रेन चल दी.... हम सब घबरा गए बच्चे रोने लगे......मम्मी!!!!पापा!!! दीदी !!!!!!! कुली से हम कहने लगे अब क्या होगा?कुली ने कुछ सोचा और कहा भगवान पर भरोसा रखो सब ठीक हो जाएगा और वहां झट से ट्रेन में बच्चों के साथ चढ़ गया ।हम तीनों भगवान को याद करने लगे। स्टेशन पर हमारी घबराहट देखकर लोग हमारे आसपास खड़े हो गए और सांत्वना देने के स्थान पर डराने लगे ना जाने कुली का क्या मतलब था वह बच्चों को गलत स्थान पर ना पहुंचा दे..
कुछ बोले आप टैक्सी से क्यों नहीं गए? कुछ बोले नहीं नहीं टैक्सी वाले बहुत बदमाश होते हैं नए लोगों को देखकर या तो पैसे ज्यादा लेते हैं या फिर भटका देते हैं.. हमारी घबराहट बढ़ती जा रही थी तभी एक वयोवृद्ध सज्जन जो पास ही खड़े थे पापा की पीठ पर हाथ रख कर बोले आप घबराएं नहीं आने वाली अगली ट्रेन से चढ़ जाएं मानो हमारी प्रार्थना सुनकर एक अदृश्य शक्ति हमें निर्देश देती जा रही थी। आपकी पत्नी और बेटी ट्रेन के एक तरफ के प्लेटफार्म पर ध्यान रखें और आप ट्रेन के दूसरे प्लेटफार्म की तरफ ध्यान रखें। अगली लोकल ट्रेन आई और मैं मम्मी पापा बचे सामान के साथ चढ़ गए। मैं और मम्मी ट्रेन के दाएं तरफ नजर गड़ाए थी और पापा बाई तरफ नजर जमाए थे। माहिम स्टेशन पर छोटी बहन की पिंक फ्रॉक देखकर मम्मी चिल्लाई ..
वो रहे बच्चे!!!हम झट से उतर गए हमे देखकर कुली को सब कुछ मानकर उससे चिपके खड़े भाई बहन हमारी तरफ भागे और लिपट लिपट कर रोने लगे।कुली हमारी तरफ आकर बोला मैंने अगले स्टेशन पर बच्चों को उतार लिया और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने जा रहा था कि आप लोग आ गए ईश्वर की कृपा!!!!सच में सच्चे दिल से पुकारो तो वह हमारी विनती जरूर सुनता है तभी तो इतनी कठिन परिस्थिति में भी हम कूल थे वयोवृद्ध सज्जन की आवाज़ हमारे कानों में पड़कर हमे हौसला दे रही थी कि वो परम शक्ति हमें सुन रही है ..
सब ठीक होगा। दादर से माहिम तक के सफर में दिमाग में फिल्मी कहानियां डराने लगी थी बच्चे परिवार से बिछड़ जाते हैं और गलत स्थानों में पहुंच जाते हैं...उस भले कुली को सधन्यवाद याद करते हुए आज भी हम डर जाते है।हम जब एक आस्था के साथ उस अदृश्य परम शक्ति को पूजते हैं तो वो हमारे हर संकट में किसी को माध्यम बनाकर हमारी रक्षा करती है।
उसका अस्तित्व ठीक उसी तरह है जैसे फूल की खुशबू महसूस होती है दिखाई नहीं देती.....…
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