"उठो सुबह हो गई, दिवाली का दिन आ गया, बाजार से कुछ तो ले आओ, लोगों के घरों में लाइट लग गई है, साज सज्जा का सामान भी आ गया है, लोगों ने अपने घरों को सजा लिया, तुम क्या कर रहे हो, अभी तक सो रहे हो, ना मिठाई लाए ना पटाखे लाए, क्या सोते रहोगे"
मैं सुबह से परेशान थी, पतिदेव उठने का नाम नहीं ले रहे थे, किसी ना किसी बहाने से सामान ना लाना पड़े, इसके बहाने ढूंढ रहे थे, कभी ऐसा नहीं करते थे, आज पता नहीं क्या हुआ, मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी, बार-बार कुछ ना कुछ बहाना मारते इधर उधर हो जाते, बाजार नहीं जा रहे थे धीरे-धीरे शाम हो गई, मुझे गुस्सा आने लगा, यह बाहर खड़े होकर मोहल्ले में अपने दोस्तों से बातें कर रहे थे, घर पर फोन चार्जिंग में लगा था, तभी एक मैसेज आया मैं गुस्से में थी, फोन में मैसेज आया तो उठाकर पड़ने लगी|
धन्यवाद सर, आपने जो आज मेरी मदद की शायद कोई अपना भी नहीं करता, मेरी मां को अस्पताल भर्ती करने का पैसा नहीं था, पत्नी और बेटा पहले से ही भर्ती थे, सभी को करोना जो हुआ है, ठेकेदार से तनख्वाह नहीं मिली थी, प्राइवेट आदमी का यही हाल है, सर आज आप ना होते तो पता नहीं मैं मां को लेकर कहां जाता, घर में ₹100 भी नहीं थे, आपने अपनी पूरी तनखा दे दी, भगवान आपको इस तनखा की 100 गुना ज्यादा तनखा दे, यही एक गरीब की पुकार है, एक बार फिर धन्यवाद|
आपका रमेश
मेरी आंखें भर आई, रमेश इन के कार्यालय में प्राइवेट सफाई कर्मी था, पिछले हफ्ते ही उसके बच्चों को करोना हुआ था, और उसकी पत्नी भी अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में थी, उसकी मां का ऑपरेशन होना था, अपेंडिक्स का, मैं जानती हूं, ऐसे ही यह सुबह से बेवकूफ नहीं बना रहे थे, उनके पास पैसे नहीं थे, मैंने इन्हें अंदर बुलाया, आंखों के आंसू पूछते हुए अपनी जमा पूंजी
से दो हजार दिए, और पूजा का सामान मंगवाया और दीपावली मनाई, आंखें भरी थी, मगर सीना गर्व से फूला था, मेरे "पतिदेव का दिल" बहुत बड़ा था|
( लेखिका - कीर्ति सक्सेना)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
bhavuk karti rachna
Please Login or Create a free account to comment.