चारों ओर हाहाकार मचा था क्यों, किस लिए, ऐसा क्यों हुआ, इन सवालों के बीच अवधेश जी चुपचाप नमन कि तस्वीर को एकटक निहारते जा रहे थे (जिसका उनके शहर से दुर जहाँ वो काम से गया था वहाँ काटैज में शव मिला था कोई कहता आत्महत्या हैं, कोई कहता हत्या हैं, जितने मुहँ उतनी बातें) जैसे अपने हर सवाल का जवाब मांग रहे हो और वो उनके सभी सवालों का जवाब उसी तरह दे रहा था जैसे बचपन में देता आया था बस फर्क इतना था कि आज किसी ओर को इन दोनों की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थीं बस खामोशी थी जो इस भीड़ में भी सन्नाटे का अनुभव करवा रही थी.....अचानक एक आवाज़ ने तंद्रा तोड़ी" चलिए पापा अंदर आराम कर लिजिए कब तक ऐसे ही बैठे रहेंगे ये निर्मोही था सबको छलकर चला गया..." ये आवाज़ थी निधि कि जो उनकी बड़ी बेटी थी...पर " किसी ओर का नहीं बेटा वो मेरा गुनहगार हैं सबके लिए तो वो नकारा, बैकार और क्या कहते थे तुम लोग हा खोटा सिक्का था..".अवधेश जी बोल पड़े, निधि भारी कदमों से लज्जित भाव से कमरे से चली गईं..। क्योंकि उनके अन्य बच्चों में वही सबसे छोटा ओर भावुक था जहाँ बाकी बच्चे प्रेक्टिकल ओर आज की दुनियां के समझदार थें जो अपनी दुनियां बसाकर मस्त थे।
अवधेश जी फिर अतीत के गलियारों में पहुंच गए ये सब मेरी गलती हैं बचपन से वो अलग था सबसे अलग जहाँ बाकी बच्चे बाहर जाने,आगे बढ़ने की बात करते उस पगले कि दुनिया हम पति पत्नी के आसपास ही होती, हमेशा कहता "आप दोनों को छोड़कर दुर जाना हो ही नहीं सकता पापा मैं तो हमेशा आपके साथ रहूंगा" देखना, सच कभी नहीं गया हमें छोड़कर कैंसर से बीमार माँ के लिए दिन रात एक करता रहा उसके जाने के बाद कितने दिनों तक हम एक दूसरे से नजरे छुपाते रहते थे कहीं कमजोर न पड़ जाए, सब तो आए रस्म अदायगी करके चले गए वो मुझे सम्हाले बैठा रहा.... कहता था " पापा मत जाना मुझे छोड़कर प्लिज मैं नहीं रह पाऊंगा "...आँसुओं से भरी आँखों में फिर नमन ही था ओर कोई नहीं मुझे रोकता था और खुद चला गया ये कैसे सोच लिया तेरे पापा तेरे बिना रह पायेंगे नमन कैसे सोच लिया बोल.......नहीं अब तु कुछ नहीं बोलेगा बचपन से ऐसा ही है तु खुद की गलती पर चुप रहने की आदत जो हैं. .......सब कहते हैं कुछ गलत हुआ तेरे साथ जाँच पड़ताल करवाने का भी बोल रहे है मैं कहा शिकायत दर्ज करवाने जाँऊ ये तो कोई बताता ही नहीं है मेरे और तेरी मम्मी के सपनों का क्या जो तुझे लेकर देखें थे हमने तेरी शादी, तेरे बच्चे, और हाँ तेरे साथ घुमने जाना था तु हमेशा कहता था "आप दोनों को पूरी दुनियां घूमाने ले जाऊंगा......" अब क्या होगा कुछ नहीं मैं ही आऊँगा अब तेरे पास अपने अधूरे ख्वाबों का हिसाब लेने....क्योंकि मेरा नमन तो आएगा नहीं मुझे सम्हालने, ये कैसी सजा दी तुने मुझे बचपन में एक बार तुझे मारा था तीन दिन छुपकर रोया था मैं ,आज तुने बहुत बड़ी सजा दे दी मुझे बता क्या करूँ नहीं आता तेरे बिना जीना मुझे ,जिंदा लाश बनकर कैसे रहूँगा मैं बता.....बोल नहीं बोलता ले मैं भी आ रहा हूँ तेरे पास.......अचानक कमरे से आई तेज आवाज़ सेसब अंदर भागे अवधेश जी गहरी चिरनिद्रा में लीन हो गए..... पिछे थे बस सवाल...।
किरण तिवारी.
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