"अरे राधिका! राधिका! तेरी अम्मा बगल वाली गली के मोड़ पर बेहोश पड़ी हुई है| " बगल वाली सन्नो चाची की आवाज़ सुन राधिका घर से निकल कर दौड़ती हुई वहां पहुंची|
आठ-दस लोग राधिका की मां चम्पा को घेरे खड़े थे, लेकिन किसी ने उसे अस्पताल ले जाने की तकलीफ़ नहीं उठाई| 13 साल की थी राधिका, जन्म से पहले ही सर से पिता का साया उठ गया था| इस बड़े शहर में वो और उसकी मां एक-दूसरे का सहारा थे| आस पड़ोस वालों ने तो बहुत बार चम्पा से कहा कि उम्र ही क्या है तेरी दूसरी शादी कर ले| लेकिन चम्पा ने मन में ठान लिया था कि वो अपनी बेटी पर सौतेले बाप का साया नहीं पड़ने देगी|
घर में झाड़ू पोंछा कर के चम्पा अपना और बेटी का गुजारा करती थी| बड़ा शहर था झाड़ू पोंछा, बर्तन के अच्छे पैसे मिल जाते थे| राधिका का दाखिला उसने के सरकारी स्कूल में करा दिया था|
सुबह काम पर जाते हुए स्कूल छोड़ना फिर काम से लौटते हुए वो राधिका को लेकर घर आ जाती थीं|
आज इतवार था इसलिए राधिका की छुट्टी थी, हर इतवार चम्पा की भी छुट्टी होती थी लेकिन आज खन्ना जी के यहां मेहमान आने वाले थे इसलिए चम्पा उनके घर गई थी| बहुत दिनों से चम्पा की तबियत ठीक नहीं लग रही थी| आज-कल कमज़ोर भी हो गई थी लेकिन काम नहीं छोड़ रही थी क्योंकि वही काम उसके दो जून की रोटी का सहारा था|
खन्ना परिवार जहां वो काम करती थी बहुत भले लोग थे| वे हमेशा चम्पा को खाने पीने के सामान से लेकर कपड़ों से भी मदद किया करते थे|
"चम्पा आज वहीं से काम कर के लौट रही थी कि अचानक गिर कर बेहोश हो गई| "
दौड़ती हुई राधिका अपनी अम्मा के पास पहुंची और बेहोश अम्मा का सर गोद में रखकर राधिका सबसे मदद की गुहार लगाने लगी| कोई आगे नहीं आया ; पीछे से दौड़ती हुई सन्नों चाची ही आई| सन्नो अपने पति की मदद से चम्पा को अस्पताल ले गई| अस्पताल में डॉक्टरों ने उसे मरा हुआ घोषित कर दिया| अकेली बच्ची का रो रोकर बुरा हाल हो गया था|
सन्नो चाची को भी कुछ नहीं सूझा था कि अब वो क्या करे| सन्नो ने अस्पताल वालों से कहा कि इस औरत के आगे पीछे कोई नहीं है| ये एक बेटी है जो अभी बहुत छोटी है, मैं इसकी पड़ोसी हूँ| मेरे पास इसका दाह संस्कार करने के लिए पैसे नहीं हैं|
चम्पा के मृत शरीर को अस्पताल में छोड़ सन्नो, राधिका को लेकर वापस आ गई| राधिका अकेली चाल में पड़ी रोती रहती| दो दिन बाद चम्पा की खबर लेते हुए खन्ना जी आए तो सन्नो ने उन्हें उस दिन की पूरी घटना बयां कर दी| राधिका फिर से बिलख बिलख कर रोने लगी| बच्ची को रोता बिलखता देखकर उन्हें उस पर दया आ गई|
खन्ना जी राधिका को अपने साथ घर ले आए| चम्पा के बारे में जानकर खन्ना जी की पत्नी सुनंदा ने राधिका को सीने से लगा लिया और कहा बेटी तू फ़िक्र मत कर, चम्पा के जाने के बाद हम तुम्हारा ध्यान रखेंगे|
खन्ना जी के दोनों बच्चे बड़े थे और विदेश में रह रहे थे| दोनों पति-पत्नी एक NGO से जुड़े हुए थे और जरूरतमंदों की मदद करते थे| उस दिन के बाद से राधिका खन्ना जी के यहां रहने लगी| उनके घर के छोटे-मोटे काम करती और साथ साथ पढ़ाई भी|
राधिका आज अठ्ठारह साल की हो गई थी| खन्ना दंपति को वो भगवान के समान समझती| इन पांच सालों में खन्ना दंपति ने माता पिता की तरह राधिका का ध्यान रखा था| राधिका अब घर के सारे काम सीख गई थी वो अब खाना भी बहुत अच्छा बना लेती थी| खन्ना दंपति की उम्र भी बढ़ती जा रही थी, उन्हें अब जवान होती राधिका की शादी की चिंता सताने लगी थी| राधिका आखिर थी तो लड़की ही| उनके जाने के बाद कौन इसे पनाह देगा? इससे अच्छा इसकी शादी कर देंगे तो इसे जीवन भर का सहारा मिल जाएगा|
खन्ना जी राधिका की शादी के लिए लड़का ढूंढने लगे| वो जिस NGO से जुड़े हुए थे वहां भी उन्होंने शादी की चर्चा की थी| एक दिन सामने से उसी NGO से जुड़े एक शख्स ने राधिका से शादी करने की इच्छा जताई|
खन्ना दंपति उस लड़के को जानते थे| राहुल नाम था उसका, उसके मां बाप नहीं थे| अनाथ था बेचारा.....NGO वालों ने राहुल को पनाह दिया और उसके पढ़ाई लिखाई का खर्च खन्ना जी ने उठाया था| बचपन से ही बहुत होशियार था राहुल, उसने हमेशा मन लगाकर पढ़ाई की और आज एक प्रतिष्ठित कंपनी में काम कर रहा है|
खन्ना दंपति ने राधिका और राहुल की शादी की मंजूरी दे दी और पन्द्रह दिन बाद मंदिर में शादी करा दी उसके बाद उन्होंने कोर्ट मैरिज भी की|
राधिका जब खन्ना जी के घर से विदा होने लगी तो, राधिका बार बार उन्हें खुद पर किए एहसान के लिए धन्यवाद कर रही थी|
आप दोनों मेरे लिए भगवान से भी बढ़कर है अगर आप नहीं होते तो शायद मैं इस बड़े शहर में सुरक्षित नहीं रह पाती| आप दोनों मुझे कभी मत भुलाना| आपके दो बच्चे बाहर रहते हैं लेकिन आपकी एक बेटी हमेशा आपके आस पास ही रहेगी| आपको जब भी जरूरत हो मुझे बुला लेना, मैं कभी मना नहीं करूंगी| फिर उनसे गले लिपट राधिका रोने लगी|
रोते रोते राधिका ने कहा "आप दोनों के साथ रहकर मैंने जीवन में यही सीखा की हमेशा दूसरों की हर सम्भव कोशिश के साथ मदद करनी चाहिए| हमारे द्वारा की गई मदद किसी की जिंदगी बदल सकती है| आपके द्वारा किया गया एहसान "मेरी जिंदगी की पहली सीख है" जिसे मैं अपने भीतर आत्मसात करती हूं| इसी सीख से मैं उस NGO से जुड़कर हर जरूरतमंदों की मदद करने की कोशिश करूंगी|
मन में हजारों ख्वाहिशें लिए राधिका, खन्ना जी के घर से विदा हो गई| एक नई ऊर्जा और विश्वास के साथ| उसने अपने नए जीवन में प्रवेश किया|
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