"अरे रमा आज बेटी की बारात आने वाली है और तुम यहां कमरे में उदास बैठी हो। क्या हुआ ? किसी ने कुछ कहा क्या?" सुनील जी ने पत्नी रमा से पूछा।
"नहीं"! रमा जी ने एक टूक जवाब दिया।
"फिर अकेले क्यों बैठी हो? जाओ मेहमानों का ध्यान रखो"|
"उन्हीं मेहमानों के पास से तो आ रही हूं। सबके मुंह पर बस एक ही सवाल? बेटी का ब्याह भी कर रही हो, अब अपना घर कब खरीदोगी? बेटी की बारात भी किराए के मकान में ही आएगी।" रमा जी ने दुःखी मन से कहा|
"अरे रमा, कहां तुम उनकी बातों पर इतनी गौर कर रही हो, छोड़ो और चलो बेटी की शादी है। बेटी के साथ अपना अनमोल पल बिताओ, बेकार की बातों में अपना खून मत जलाओ।"
कहने को तो सुनील जी ने रमा से बड़ी बड़ी बाते कह दी लेकिन अपना घर ना होने का दर्द उनके सीने में भी था।उस दिन की बात आई गई हो गई। बारात दरवाजे पर आ चुकी थी। रमा और सुनील जी की बेटी सिया की शादी अच्छे से संपन्न हुई। बिटिया विदा होकर ससुराल चली गई और बाबुल के घर को सुना कर गई।
सुनील जी जो प्राइवेट कंपनी में काम करते थे । पत्नी और दो बेटियों संग दिल्ली में रहते थे। पढ़ाई के बाद जब उनकी नौकरी लगी तो वो दिल्ली आ गए। नौकरी करने के तुरंत बाद रमा से उनकी शादी हो गई| शादी के एक साल बाद घर में नए सदस्य ने कदम रखा और प्रिया का जन्म हुआ| सुनील जी किराए के मकान में रहते थे, शुरू शुरू में उनकी तनख्वाह ज्यादा नहीं थी।
घर खर्च के लिए पैसे कम तो नहीं पड़ते थे पर बचता भी कुछ नहीं था।प्रिया के जन्म के तीन साल बाद सिया का जन्म हुआ। सुनील जी की तनख्वाह पहले से बढ़ गई थी और साथ - साथ घर खर्च भी|
दिल्ली जैसे शहर में सुनील जी ने अपनी दोनों बेटियों की पढ़ाई पर बहुत ध्यान देते। घर में जितना जरूरी होता उतना ही खर्च करते। रमा जी भी हाथ बांध कर ही खर्च करती। दोनों पति-पत्नी भली भांति जानते थे कि आज के युग में शिक्षित होना बहुत जरूरी है।
बेटियों की पढ़ाई लिखाई को ही वो ज्यादा जरूरी मानते थे। इस दौरान रमा जी का बहुत मन होता था कि अपने लिए अपने सपनों का घर 'अपना पहला घर 'खरीदे लेकिन बेटियों की पढ़ाई के आगे उन्होंने अपनी इस खुशी को नजरंदाज कर दिया।
बेटियों की स्कूल तक की पढ़ाई तो अच्छे से हो गई, आगे की पढ़ाई के लिए सुनील जी ने लोन लिया था ताकि दोनों बच्चे अच्छे से पढ़ सकें।
बड़ी बेटी प्रिया को MBA पूरा करने के बाद अच्छी नौकरी मिल गई थी| प्रिया की तनख्वाह भी अच्छी थी। प्रिया की नौकरी लगने के बाद प्रिया अपनी छोटी बहन सिया की पढ़ाई के खर्चे उठाने लगी।
सुनील जी और रमा दोनों बहुत खुश थे। एक साल बाद उनकी छोटी बेटी भी अपने पैरो पर खड़ी हो जाएगी। दोनों अपनी बेटियों के मंगल भविष्य की कामना कर रहे थे, यही तो चाहते थे वो, कि उनकी दोनों बेटियां पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए। फिर अच्छे घर में उनकी शादी।
इसी खुशी के लिए उन्होंने अपनी सारी खुशियों का त्याग कर दिया था। प्रिया अपने पैरों पर खड़ी हो गई थी तो उन दोनों को प्रिया की शादी की चिंता होने लगी।
प्रिया अपने साथ ही काम करने वाले सहकर्मी अंगद से प्रेम करती थी और उससे शादी करना चाहती थी। अंगद का घर परिवार अच्छा था इसलिए सुनील जी को भी कोई आपत्ति नहीं हुई। सबकी रजामंदी से दोनों की शादी हो गई।
प्रिया विदा हो ससुराल चली गई। तब तक सिया को भी नौकरी मिल गई और आज सिया भी इस किराए के घर से विदा हो कर ससुराल चली गई। अकेले उस किराए के मकान में रह गए सुनील जी और उनकी पत्नी रमा।
दोनों पति-पत्नी अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए थे और दोनों बेटियां अपनी अपनी जिंदगी में रच बस गई थी।
आज सुनील और रमा जी की शादी की पचासवीं वर्षगांठ थी। आज दोनों बेटियां अपने अपने काम से छुट्टी लेकर आ गई थी। घर में छोटी सी पार्टी रखी गई थी जिसमें कुछ करीबी रिश्तेदार ही आमंत्रित थे।
रात को जब सब लोग इकठ्ठा हुए तो केक काटने के बाद दोनों बेटियों ने मिलकर अपने मम्मी पापा को तोहफा दिया और तुरंत तोहफा खोलने को भी कहा।
जब सुनील जी ने तोहफा खोला तो उसमें चाबी थी। वे दोनों कुछ समझ नहीं पा रहे थे । दोनों बेटी को आश्चर्य भरी नजरों से देख रहे थे।
तब प्रिया ने कहा, मम्मी पापा ये तोहफा मेरी और सिया की तरफ से है इसे स्वीकार करो। हमने आपके लिए घर खरीदा है और कल से आप दोनों उसमें ही रहेगें।
पर! बेटा ये सब तुम दोनों ने क्यों किया, सब क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा कि सुनील जी ने अब अपनी बेटियों के...
सुनील जी की बात पूरी होने से पहले ही सिया ने उनकी बात काटते हुए कहा...पापा आप किसी की चिंता मत करिए। आप हमारे मम्मी पापा है आपने जो हम दोनों के लिए त्याग किया है ना उसे कोई दूसरा नहीं समझ सकता।
और ये क्या बोल रहे हैं आप कि बेटियां.... अगर बेटा होता और अगर वो आपको नया घर खरीद कर देता तो क्या आप मना करते ? और आपने तो कभी हमारे लिए ऐसा नहीं सोचा... हमें भी तो आपने वही परवरिश और वही शिक्षा दी जो एक बेटे को देते।
है ना, तो फिर हम बेटियां ऐसा नहीं कर सकती क्या? हमारा भी तो उतना ही हक़ है जितना बेटों का अपने माता-पिता पर होता है।
मम्मी पापा आप दोनों के लिए "सपनों का घर" हमारी तरफ़ से। आप दोनों स्वीकार करिए। सुनील जी और रमा जी ने अपनी दोनों बेटियों को गले से लगा लिया| आज वो खुद को दुनिया के खुशनसीब माता-पिता समझ रहे थे।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.