Karn Bhardwaj

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मेरे कमरे की ख़ामोशी
उसकी बे-लौस हंसी से टूटे मेरे कमरे की खामोशी मुझ ही घर मानने लगी है मेरे कमरे की खामोशी रात हवस तका सा मुंह ले कर गई मेरे पास से परोसा गया बदन पर चुनी मैंने मेरे कमरे की खामोशी यक़ीनन बिला-शुब्हा ये जादू का इल्म रखती है कलम में श्याहीं बन उदासी लिखती है मेरे कमरे की ख़ामोशी एक रोज किसी को पसंद जो आई मेरी दमकती आंखे बुरी नज़र से बचाने आंखो में उतर आई मेरे कमरे की ख़ामोशी उसे जितने को बड़ा दिल ही नही भारी जेब भी चाहिए थी जेब से हाथ निकाला निकली बस मेरे कमरे की ख़ामोशी बेहिसाब लूटा रहा हूं जिस पर समय और शायरी अपनी उसे मसरूफ देख चिल्लाती है मुझ पर मेरे कमर की ख़ामोशी तुझे होश आएगा तलाशेगा खुद को बदहवासी में मगर तेरा तो नामोनिशान मिटा चुकी होगी मेरे कमरे की ख़ामोशी एक पुराना शॉल एक गर्दन उसे पे निशान एक पड़ा बदन आखिर में इस मंजर को लिखा मैने मेरे कमरे की ख़ामोशी

Paperwiff

by karnbhardwaj

#topicfree

16 Jan, 2023