बन्धनमुक्ति

Dreams of human future

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Kanak Harlalka
Kanak Harlalka 15 Apr, 2021 | 1 min read
#summershortstoriea

लघुकथा

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बन्धन मुक्ति

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गहरी नींद में मानव एक सपना देख रहा था । उसे लग रहा था जैसे लम्बी बेहोशी के बाद उसने आंखें खोली हो। अब उसे हल्का हल्का होश आने लगा था। चारों ओर अन्धकार, गर्मी, प्यास से सूखता गला।

"कौन है..? कोई है यहाँ...? सुन रहे हो..?"

"हां , मैं हूँ न , तुम्हारे पास।"

"कौन हो तुम, और मैं कहाँ हूँ।"

"मैं.... मैं हूँ तुम्हारा भविष्य काल..।"

"पर यहाँ.. इतना अंधेरा इतनी गर्मी क्यों है... ? मैं प्यासा हूँ, मेरा गला सूख रहा है..। मुझे पानी दो.।"

"तुम गहरे कुंए मे हो। पानी तो तुमने कबका खत्म कर दिया।"

"मैं यहाँ कैसे पंहुचा और बाहर क्यों नहीं निकल पा रहा..?"

"तुमने अपने चारों ओर कितनी जंजीरें लपेट रखी हैं--धर्म की, लिप्सा की, स्वार्थ की, प्रगति के नाम पर अन्धानुकरण की, लालसा के लिए प्रकृति के निर्मम दोहन की, युद्ध के भयंकर विनाश की... इन बेड़ियों का बन्धन और वजन..तुम्हें यहां आना ही था।"

दोनों हाथों से कान बन्द कर मानव चिल्लाया। "बस करो.., मेरी मुक्ति का  कोई मार्ग.. तुम मेरा भविष्य हो ... तुम्हारे पास अवश्य होगा।"

"सबसे बड़ी आशा की किरण तो यह है कि तुमने इतनी लम्बी बेहोशी के बाद आंखें खोली है तो जरूर तुम कल सूरज देख सकोगे। " 

"आह, तुम्हारी ये बातें...। बताओ मुझे राह बताओ..।"

"बस ,तुम्हें और कुछ नहीं करना है.उठो और अपनी ये बेड़ियां एक एक कर तीव्र प्रहार से तोड़ते जाओ।"


तभी खिड़की से आते सूरज के तीखे प्रकाश में अंगड़ाई लेकर नींद से उठते मानव को उज्जवल सुरक्षित भविष्य का मार्ग दिख गया था।

नहीं नहीं.. उसे अंधे कूंए की गहराई में नहीं डूबना है।


कनक हरलालका

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Kanak Harlalka

kanakharlalka

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Ankita Bhargava · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुंदर रचना

  • anil makariya · 3 years ago last edited 3 years ago

    अनुभवी कलम से निकली बहुत ही उम्दा रचना।

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