लघुकथा
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अधूरा सच
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मैं अपने न्यूज चैनल मीडिया ग्रुप की तरफ से मसाले की खोज में किसान आन्दोलन का सच जानने जा पंहुचा था वार्डर पर बैठे किसानों के गाँव।
कुछ तो टेढ़े मेढ़े रास्तों और कुछ रास्तों में उमड़ी भीड़ के कारण वहाँ पंहुचने में रात हो गई थी।
देखा तो एक किसान रात में भी खेतों में व्यस्त था।
मुझे और क्या चाहिए था।
जा पंहुचा उसके पास।
"अरे भाई क्या आप किसान नहीं है?"
"खेती कर रहा हूँ तो किसान ही हूँ न..!"
"नहीं.. आप किसान आन्दोलन में हिस्सा नहीं ले रहे हैं न.. किसान तो सब बार्डर पर आन्दोलन पर बैठे हैं..।"
"वो अमीर किसान हैं मैं गरीब किसान हूँ।"
"अच्छा.. ये बतलाएं आप रात में खेत में क्यों हैं?"
"दिन में उन किसानों के खेत में काम करता हूँ। मेरे अपने खेत में तो मुझे रात में ही समय मिलता है काम करने का.."
"तो क्या आप इस किसान आन्दोलन के चलते रहने का समर्थन करते हैं ?"
"जी..बिलकुल करता हूँ।"
"क्या कारण है इस समर्थन का? क्या आपको लगता है इससे भविष्य में आपको बेहतर रोजगार उत्पादन में सहायता मिलेगी?"
"भविष्य का तो पता नहीं पर वर्तमान में मेरी रोजीरोटी का जुगाड़ इन किसानों के खेतों पर चौगुने दामों पर काम करने से हो रहा है।"
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नि:शब्द
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