धीरे से गिरी एक नन्ही सी बूंद
छू गई गुलाब को , गुलाब खिल गया...
धीरे से गिरी एक नन्हीं सी बूंद झरने में
झरना सागर बन गया...
धीरे से गिरी एक नन्हीं सी बूंद मेरी आंखों से
मुझे जीवन मिल गया...
धीरे से गिरी एक नन्हीं सी बूंद रंगों में
और चित्र सज गया...
धीरे से गिरी एक नन्हीं सी बूंद मेरे होठों पर
मुस्कुराहट बन गई...
धीरे से गिरी एक नन्हीं सी बूंद धीरे धीरे खो कर
सृजन कर गई...।।।
Comments
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beautiful
Beautiful words
उम्दा कविता।
अहा! खूबसूरत कविता
प्यारी कविता
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