बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद..... !!!
मेरे आंगन धूप मिली थी
बहुत दिनों के बाद.... !!!
सूखी डाली कली खिली थी
बहुत दिनों के बाद.... !!!
दस्तक दे पुरवाई ने खोले
घर के मुंदे किवाड़ ,
बहुत दिनों के बाद.... !!!
बन्द पलक पर बीते सपने
करते थे खिलवाड़ ,
बहुत दिनों के बाद.... !!!
खुली आंख देखा था सपना
बहुत दिनों के बाद.... !!!
जैसे बाहों में कोई अपना
बहुत दिनों के बाद .... !!!
मन में कोई ग़ज़ल जगी थी
लेकर मीठी चाह ,
बहुत दिनों के बाद.... !!!
पथ भूला फिर लौटा कोई
शायद घर की राह ,
बहुत दिनों के बाद.... !!!
कनक हरलालका
Paperwiff
by kanakharlalka