'' गद्य विधा में एक संस्मरण ''
रिटायर्मेंट
मेरे बैंकिंग सेवा काल के अन्तिम कुछ मास..
माती कानपुर देहात जिले के मुख्यालय पर. मेरा रिटायर्मेंट नवम्बर मास में होना था, मैं इस विषय पर कुछ भी नहीं सोच रहा था. जैसे रिटायर्मेंट के बाद मेरा जीवन कैसा होगा आदि.
मैं पूर्ववत, शाखा के सारे काम अकेले ही कर रहा था, मेरी संयुक्त प्रबंधक कई महीनों से लंबी छुट्टी पर चल रही थीं .
जुलाई में शाखा का वार्षिक आन्तरिक निरीक्षण प्रारंभ हुआ, मैं अकेला अधिकारी था, स्टाफ़ के सहयोग से यह कुशलता से पूरा हो गया.
कुछ महीने बाद शाखा की संयुक्त प्रबंधक ने ज्वाइन कर लिया.
इस शाखा से मेरा कुछ विशेष लगाव हो गया था.
सेवानिवृत्ति का समय समीप आता जा रहा था.
मैं अपने स्तर के बचे हुए कार्य समाप्त करने में लग गया.
मेरे सेवाकाल का अन्तिम लीव ट्रैवेल कंसेशन भी बहुत समय से बाकी था. मैंने केवल एक सप्ताह की छुट्टी, रामेश्वरम जाने का, आवेदन एच आर एम के पोर्टल पर उच्चाधिकारियों की स्वीकृति के लिए डाल दिया.
मैं बचे हुए दिन भी इसी शाखा में बिताना चाह रहा था.
रविवार को हम लोग प्रायः प्रशासनिक कार्यालय में कुछ समय के लिए जाते थे, शाखा की कोई विवरणी पेंडिंग हो तो जानकारी आदि के लिए..
वहां एच आर मैनेजर ने आ कर बताया
कि आपका ट्रांसफर शहर की एक शाखा में कर दिया गया है और आपकी छुट्टी का आवेदन पत्र, रिजेक्ट कर दिया गया है,
उस शाखा के मैनेजर को एल एफ सी पर जाना है. उन्होंने पत्र की कापी भी प्रिंट कर के मुझे दे दी.
मैं हतप्रभ रह गया, मैंने तुरन्त क्षेत्रीय प्रमुख को फोन किया, वे वैसे मुझसे और शाखा के कार्य से प्रसन्न रहते थे. शाखा के सारे लक्ष्य भी पूरे रहते थे.
सर्विस के कुल 17-18 दिन ही बचे थे. एक सप्ताह की छुट्टी के लिए तो वह मान गये लेकिन ट्रांसफर कैंसिल करने के लिए नहीं..
मैं सेवाकाल के अन्तिम कुछ दिन माती शाखा में ही व्यतीत करना चाहता था.
पुनः आन लाइन एक सप्ताह की छुट्टी का आवेदन किया.
दूसरे दिन मैं अपनी शाखा में आ गया, बचे हुए जो कार्य समझ में आ रहे थे, करना प्रारंभ कर दिया, शाखा का बाकी काम बाकी लोग मिलजुल कर करते थे.
ट्रांसफर- पत्र की मूल प्रति भी प्राप्त हो गयी.
एक दो दिन बाद दोपहर को क्षेत्रीय कार्यालय से फोन आया कि आप तुरंत रिलीव हो कर आज ही शहर की हरजिंदर नगर की शाखा में ज्वाइन कर लीजिए.
मैने अपने साथियों बताया, विदा की बेला आ गयी थी.
की - रजिस्टर मंगाया, प्रभार ज्वाइंट मैनेजर विभा को सौंपा.. जल्दी से कुछ मिठाई मंगायी गयी, कुछ फोटो.
मन में कोई विचार भी नहीं था.
शाखा परिसर पर एक अन्तिम विहंगम द्रष्टि डाली.
स्टाफ़ सदस्य यूनुस के साथ मोटरसाइकिल पर अकबरपुर बस स्टैंड के लिए निकल पड़ा..
रास्ते में मैं जिला न्यायालय, पुलिस अधीक्षक आदि के नये बने कार्यालय देख रहा था, जो शहर से यहां शिफ्ट होने की प्रक्रिया में थे,
बैंक का स्थानीय प्रशिक्षण केंद्र था, जिसमें कभी-कभी वहां के निदेशक मुझे प्रमाणपत्र वितरण के लिए बुलाया करते थे.
शाम से पहले ही मैंने शहर की शाखा ज्वाइन कर ली, जिसमें एक महिला अधिकारी कार्यरत थीं, मैनेजर छुट्टी पर थे.
मुझे एक कम्प्यूटर मिल गया, पूर्वशाखा माती की शाखा - प्रमुख की शक्तियां अभी भी मेरे पास थीं, मैं वहीं की प्रविष्टियों का रिकन्सिलिएशन आदि करता रहता था. वर्तमान शाखा का कोई काम मेरे पास नहीं था..
दोपहर का भोजन सब लोग साथ ही करते थे.
एक दो दिन में मैं रामेश्वरम जाने के लिए, एक सप्ताह के अवकाश पर चला गया.
लौट कर आने तक वहां के मैनेजर असीम भी वापस आ चुके थे.. सबके साथ अच्छा समय बीतता था.
रिटायर्मेंट का दिन समीप आता जा रहा था. हालांकि मैं विचार रहित सा था, पहले की तरह ही दिन बीत रहे थे.
रिटायर्मेंट का दिन भी आ गया, यह एक शनिवार था, तब शनिवार, हाफ़ डे होता था.. 2 बजे तक. का बैंक.
मैं पूर्ववत अपने कम्प्यूटर पर काम कर रहा था.. 1.45 के लगभग समय होगा.. मन में मिश्रित भावनाएं थीं.. 41 वर्षों का साथ छूट रहा था..
अचानक मैंने देखा मेरा पासवर्ड सैक हो गया, यह कभी-कभी अचानक भी हो जाता था.. या, '' बैंक की ओर से किया गया है.? ''
आंसुओं एक प्रबल वेग सा, घुमड़ रहा था..! गला अवरुद्ध सा हो गया..
उसे किसी तरह रोका
मन ने कहा, " 15 मिनट और इन्तज़ार कर लिया होता..!" ". जा तो रहा ही था..!!
सोचा ब्रांच फ़ोन करूं.. सामान्य रूप से यदि किसी के साथ ऐसा हो जाता था.. तो अन्य अधिकारी उसे ठीक कर देते थे,. रिटायर्मेंट पर यदि, डेटासेंटर से किया गया है, तो अलग बात है. अब मैं '' फ़िनैकिल '' पर काम नहीं कर सकता था.
'' रिपोर्ट सर्वर '' अभी भी उपलब्ध था, जिसमें मैं केवल डेटा देख सकता था. उसी का आश्रय लिया..!
सामान्य होने का प्रयास किया. 41 वर्षों की लम्बी यात्रा का समापन हो चुका था..!
ब्रांच - मैनेजर असीम ने '' फ़ेयरवेल '' का आयोजन किया, माल्यार्पण, प्रसन्न भाव में, सभी के साथ फ़ोटो, मिठाई आदि..
बाद में सबके
साथ समीप के रेस्ट्रां में लंच आदि. फिर 40 मिनट की यात्रा के बाद उन्होंने, मुझे घर पर छोड़ दिया..
अगले दिन रविवार को माती के स्टाफ़ द्वारा, रेस्तरां में लंच का आयोजन. केक, माला, , गिफ्ट आदि.. चिरस्ममरणीय पल, कैमरे में क़ैद हो गये..
मन आगे का कुछ भी नहीं सोच रहा था.
देर देर तक काम करने का समय, कभी-कभी छुट्टियों में या रविवार को आफ़िस जाना, अप्रैल में आडिट के कारण अक्सर छुट्टियों में, क्षेत्रीय कार्यालय जाना ही पड़ता था.
सब कुछ समाप्त हो गया..
कुछ दिन बाद, बैंक के पोर्टल पर देखा, अधिकारियों की '' विवेकाधीन शक्तियां '' समाप्त करने की नई सूची में मेरा नाम है, मेरे नाम आगे ' रिटायर्मेंट' लिखा है.
मैं दर्शक मात्र था..
अगले दिन से ' एन सी आर' यात्रा की तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं.. कुछ ही दिन में पैकर्स आ कर सामान पैक कर देंगे..
और जिस शहर में मेरा बचपन बीता, शिक्षा दीक्षा हुयी, माता-पिता का साथ रहा, गंगा जी थीं, वह हमेशा के लिए छूट जायेगा..!
मैं एक दिन लंबी दूरी की, पैदल यात्रा करता हूं, अपने विद्यालय, आदि को देखता हुआ, माल रोड के चिरपरिचित '' यूनिवर्सल बुक स्टाल '' पर, जहां मैं विद्यार्थी जीवन से आता रहा हूं.. काफ़ी समय व्यतीत करता हूं, पुरानी यादों को ताज़ा करता हूं.., बगल में रीगल टाकीज़ है..
26 दिसंबर के करीब हम घर छोड़ने के लिए तैयारी करते हैं, सभी सामान एक दिन पहले ही जा चुके है.
पड़ोसी बिस्तर आदि का इंतज़ाम करते हैं, सुबह की चाय... के बाद,
'' इस्लाम '' आटो ड्राइवर, खूब सवेरे आ जाता है.
हम 6 बजे सुबह की '' नई दिल्ली जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस से यात्रा करते हैं..
अपने बचपन का शहर, कार्य - स्थल हमेशा के लिए छूट रहा.. है. अक्सर विश्वास ही नहीं होता..!
नया, अनजान शहर, बैंक की शाखाएं.. मैं एक अजनबी की तरह यहां घूमता हूं..
अपने बैंक की शाखा में जब जाता हूँ तो '' फ़िनैकिल ''कम्प्यूटर्स देख कर एक अनजान, सम्मोहन सा महसूस करता हूं, काम करने का मन करता है..!
लेकिन इनसे नाता अब टूट चुका है..!
मेरे सपनों में '' फ़िनैकिल '' अक्सर आते रहते हैं..
मैं अपने बैंकिंग कैरियर के विचारों में डूबा हुआ, फ्लैट की बाल्कनी की धूप में बैठ कर रोज़, किताबें पढ़ता रहता हूं.
20 जुलाई को, बैंक के स्थापना दिवस पर मैं हर वर्ष की तरह, अपने बैंक की निकट की शाखा में जाता हूँ, शाखा में खूब सजावट की गयी है, एकाउंटेंट के पास मिठाई का एक डिब्बा खुला हुआ रक्खा है, उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं हैं, कुछ ग्राहक डिब्बे से एक पीस ले लेते हैं.
मैं शाखा का एक चक्कर लगाता हूं, कोई परिचित नहीं है,
बैंक के नोटिस बोर्ड के पास, शहर का, एक मात्र परिचित, मुस्कराता हुआ चेहरा, दिल्ली के अंचल प्रमुख का है, मैं वहां पर ठहर कर, फोटो पर एक निगाह डाल कर, बाहर आ जाता हूँ..
पूर्व स्थानों पर, इस अवसर पर मनाये गये अनेक भव्य समारोह याद आ जाते हैं..!
'' फ़िनैकिल '' अभी भी सपनों अक्सर आता रहता है. '' बैंक की शाखाएं और रोज के साथी.. ''
मैं सोशल मीडिया पर कुछ पढ़ने - लिखने का प्रयास करता हूं..
किताबों, पत्रिकाओं में मन लगाने का प्रयास करता हूं.
समय व्यतीत होता रहता है, कभी-कभी कुछ महीनों के लिए बैंगलोर चला जाता हूँ.
सपनों में अब अक्सर '' फ़िनैकिल '' का स्थान बैंकिंग के पुराने, बड़े-बड़े लेजर भी ले लेते हैं.
दफ़्ती की जिल्द वाले रजिस्टर.. जब बैंकिंग अधिकांशतः मैनुअल होती थी, पेन से लिख कर प्रविष्टियां की जाती थी.. '' कपूर '' के छपे हुए कैल्कुलेटर की सहायता से बचत - खातों में ब्याज की गणना की जाती थी..
समय इसी तरह अनेक परिवर्तनों के साथ, बहता चला जा रहा है...
जो कभी वर्तमान था वह भूतकाल में परिवर्तित हो चुका है..
कमलेश वाजपेयी
.
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.