पाठकीय समीक्षा
' पाप पुण्य से परे ' (कहानी संग्रह)
लेखक :राजेन्द्र राव
प्रकाशक :किताब घर, नयी दिल्ली
1971 में '' साप्ताहिक हिन्दुस्तान " में राजेन्द्र राव जी की एक 'सिरीज़ प्रकाशित हुयी थी.." कोयला भई न राख " "मैंने संयोग से वे कहानियां, अनायास ही किसी सम्बन्धी के घर पढ़ी थीं. असफल प्रेम की अत्यंत मार्मिक, रोंगटे खड़ी करने वाली कहानियां थीं. मैं उन्हें कभी भी भूल नहीं सका..!वे बहुत ही सामान्य से परिवारों की कहानियां थीं.
अब मुझे पता लगा कि वे सत्य कथाएं सी थीं. उसके कुछ पात्र पहचान लिए गये और लेखक को, जो कानपुर निवासी हैं. बहुत सी धमकियां भी मिलीं. लेकिन पाठकों के असंख्य पत्र पसंद के लिए, भी पत्रिका को मिले.
श्रंखला बहुत पढ़ी गयी.
करीब एक वर्ष पहले फेसबुक पर झांसी के एक साहित्यकार और मित्र श्री ब्रजमोहन जी ने इस पुस्तक के विषय में लिखा. उन्हें भी वह श्रंखला याद थी. कुछ बातचीत भी हुयी, लिंक भी दिया. मैंने भी पुस्तक मंगवा कर, बहुत उत्कंठा से पढ़ी.! इतने वर्षों बाद की कुछ, स्मृतियाँ ताज़ा हो गयीं. मैं मन्त्रमुग्ध सा हो गया. इतने वर्षों के अन्तराल.. के बाद.. ". साप्ताहिक हिन्दुस्तान " का तब का चित्र आंखो के सामने आ गया..!
श्री राजेन्द्र राव जी मेकैनिकल इन्जीनियर हैं. इस समय 'दैनिक जागरण "में साहित्य संपादक हैं.
" मैत्रेयी पुष्पा "जी ने इसकी प्रस्तावना लिखते समय उद्घाटित, किया कि किस तरह से, अनेक वर्जनाओं के बीच उन्होंने, अथक प्रयास से" छिपाकर, किसी की सहायता से, साप्ताहिक हिन्दुस्तान "में वे कहानियां पढ़ीं थीं.
वे भी उसके पाठक वर्ग में थीं. वे लिखती हैं : प्रेम शाश्वत है, नहीं तो आज भी वे कहानियां मुझे याद क्यों आतीं, जो राजेन्द्र राव जी ने लिखी थीं - तथाकथित अनैतिक जुनून की शोक गाथाएं..... जैसे हम " पाप पुण्य से परे " की नायिका" श्री " के लिए प्रायश्चित कर रहे हों. हां तब इन कहानियों का ज़िक्र करना भी कुफ्र.. था..!
वे कहानियां पढ़ने का एक " जुनून" सा था
वह ज़माना '' पत्र-व्यवहार "का, और लैंडलाइन फोन का था.
यह " कहानी संग्रह" पढ़ने का अनुभव ही कुछ ख़ास है .
कमलेश वाजपेयी
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