खूब चहकती हुई खुशी से झूमती हुई चंचल अपना रिजल्ट लेकर घर आई सबसे ज्यादा खुशी तो उसको आगे की क्लास में जाने की थी बच्चों की खुशियां कहां से शुरू होती है हम बड़े तो इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते कुछ नया पाने की ललक कुछ नया करने का जुनून हर वक्त इस उम्र में रहता है ना तो उन्हें किसी से आगे बढ़ने की होड़ और ना ही किसी के लिए यह भावना के मैं उससे श्रेष्ठ हूं या वह मुझसे कम है। कितने निश्चल और सरल होते हैं बच्चे तभी तो कहा गया है
"बच्चे मन के सच्चे"
पर यह तो हुई बच्चों की बात लेकिन बड़े उन्हें क्या हो गया है कुछ समझ में नहीं आता जहां चंचल को शाबाशी मिलना चाहिए वही उसका स्वागत ढेर सारी डांट के साथ हुआ उस बेचारी को तो यह भी नहीं पता था कि उसे डांट किस बात की पड़ रही है। हां शायद 90% अंको की दौड़ में शामिल नहीं हो पाई थी इसीलिए डांटा जा रहा था।
उसके झर झर बहते आंसू एक पल में उसकी सारी खुशियों को बहा ले गए चंचल को उसके दादाजी खूब जोर-जोर से डांटे जा रहे थे । जबकि ऐसा नहीं था 89% भी शायद मेरी नजर में तो कम नहीं होता तो क्या उनको इतना भी एहसास नहीं हुआ की उस मासूम बच्ची के ऊपर क्या असर हो रहा होगा।
शायद कहीं ना कहीं बच्चों के अंदर जो डिप्रेशन और हीन भावना आ जाती है उसका कारण यही है।एक हमारा समय था जब 55% अंक लाने पर भी मां की रसोई से सोंधी सोंधी लड्डू की खुशबू आने लगती थी और पूरे मोहल्ले में बड़ी शान से बांटे जाते थे कि हमारे बच्चे का गुड सेकेंड आया है। खुशियां हमसे ज्यादा दूर नहीं रहती थी छोटी-छोटी बातों पर खुश हो जाया करते थे।पर आज के समय में हम कहां जा रहे हैं क्यों हमें इतनी बड़ी बड़ी उपलब्धियां भी खुश नहीं करती क्यों आज के बच्चों से हम सुपर पावर की कल्पना करते रहते हैं। सदैव 100% की दौड़ बच्चों से उनका बचपन छीनती जा रही है।मयस्सर भी नहीं होती जिन्हें आबोहवा फुर्सत कीउन्हें हम और क्यों हसरतों के दांव पर लगाते हैं
यह प्यारे बच्चे हैं अपने क्यों हम इनसे
उनका प्यारा बचपन छीन लेते हैं।
मेरा तो सभी अभिभावकों से यही आग्रह है कि हम आज के जमाने में बच्चों को अगर उस समय के जैसी शुद्ध हवा और वातावरण नहीं दे सकते तो कम से कम इतना तो दे ही सकते हैं कि शायद हमने जो बचपन जिया है बेफिक्री और निश्चिंतता वाला वह तो कम से कम दे सकें।
सर्वाधिकार सुरक्षित ( मौलिक)
कामिनी सजल सोनी
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