कर्मभूमि

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Jyotsana Singh
Jyotsana Singh 19 Jul, 2021 | 1 min read
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कर्मभूमि 


सुनहरी आभा वाली राधिका के मुख पर कान्हा की तिरछी चितवन पड़ते ही,आषाढ़ भीग गया। मानिनी राधा भी चिहुक उठी।छलिया मोह के खुद ठगे रह गए।अब कर्मभूमि के लिए जाना था।

किताब रख उसने बाहर देखा बारिस तेज थी। पर उसे जाना था। वह असहाय बुजुर्गों की नर्स थी।


ज्योत्सना सिंह 

गोमती नगर लखनऊ

6:00P.M.

19-7-21






 

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Jyotsana Singh

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