आजाद ख्याल
“साथ निभा तो रही हूँ तुम्हारा!”
“हाँ, पर माँ चाहती है हम सात फेरे भी ले लें।”
“उफ़! फिर वही पुराने ख्यालात।”
“इसमें पुराना क्या है? यह परंपरा है हमारी।”
“देखो, मैं इन सब बातों में बिलीव नहीं करती।”
“बिना ब्याह के हम घर नहीं बना सकते।”
“क्यों?”
“क्यों कि वहां पवित्रता नहीं होगी।”
“यदि शादी के बाद हमारी नहीं बनी तब?”
“तुम मुझ पर यकीन रखना मैं तुम पर रखूँगा।”
“अच्छा! ऐसा क्या?”
“बिल्कुल ऐसा ही।”
“तुम मुझे और मेरे ख्याल को आजाद रहने दोगे?”
“हाँ!”
“मेरा साथ और सम्मान हमेशा दोगे ?”
“हमेशा।”
“मेरी इच्छा, मेरी चाहत को मन से पूरा करोगे?”
“पूरे मन से।”
दोनों हथेलियां मिलकर एक दूसरे में कसकर सिमटी ही थीं कि उसने उसके हृदय का सारा रक्त जमा दिया-
“ये सब वादे ठीक है किंतु मैं बेबी प्लान नहीं करूँगी।”
“तुम और तुम्हारे ख्याल के साथ मैं तुम्हें आजाद छोड़ता हूँ अलविदा!”
ज्योत्सना सिंह
गोमती नगर लखनऊ
11:25P.M.
25-421
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत बढ़िया लघुकथा
सुन्दर .. भावपूर्ण स्रजन..!!
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