ऐलमोनी

मेरी ज़िंदगी का लेखा-जोखा तो बस इतना ही है।

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Jyotsana Singh
Jyotsana Singh 08 Jul, 2022 | 1 min read
Hindi Paperwiff

शायद तुम ज़िंदगी में आगे बढ़ भी जाओगी पर मैं दोबरा किसी का हो पाऊँगा मुझे नहीं लगता। कितने सालों से जानता हूँ तुम्हें किंतु आज सोच रहा हूँ कि क्या सच में मैं तुम्हें जानता हूँ?

सिर्फ़ तीन साल का ही तो रहा हमारा वैवाहिक जीवन उससे पहले के साल अगर मुड़कर देखता हूँ,तो खुद को तुम्हारे पीछे भागते ही देखता हूँ। किस तरह से तुम्हें एक नज़र देख लेने के लिये कभी घर में तो कभी स्कूल में झूठ बोलकर तुम्हारे इर्द-गिर्द चक्कर लगाता। तुम जानती भी थी, तुम क्या पूरा स्कूल जानता था कि मैं तुम पर मरता हूँ। इसके बावजूद तुम मुझे इग्नोर करती रहती थी।उम्र के उस पड़ाव पर मैं यह तो नहीं जानता था कि किसी को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे मिलाने के लिये एक जुट हो जाती है।पर मेरे प्रेम में वो तासीर थी कि मुझे तुम मिल गई।

वक्त ने करवट बदली और हम एक दूसरे से जुदा हो गये थे।तुम अपना कैरियर बनाने बड़े शहर चली गई और मैं अपने ही शहर में जीवन तलाशने लगा।मुझे आज भी याद है वह एक लंबा वक्त बीता और बचपन की बातों पर जवानी की झीनी चादर पड़ गई।मुझे लगा मैं तुम्हें भूल गया और तुमको तो मैं कभी याद रहा ही नहीं था।

ये वक्त भी अपनी ही रौ में बहता है।उस रोज फ़ेसबुक पर तुम्हारी फ़्रेंड रिक्वेस्ट देखकर मैं उछल पड़ा था।उसी दिन पहले मेसेंजर पर बात हुई फिर हमने नंबर एक्सचेंज कर लिये।याद करता हूँ तो अभी भी मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है।उस वक्त कितनी रंगीन दुनिया थी। तुम मुझमें दिलचस्पी लेने लगी थी।मेरे फ़ोन का, मेरे मैसेज का इंतज़ार तुम मुझसे कहीं ज़्यादा करती थी।हमारी रातें सिर्फ़ बातों में कटती थीं।एक रोज़ मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया था तुमसे-“मुझसे शादी करोगी?”

तुमने भी एक लंबी मुस्कान के साथ कहा था-“मेरी रिंग फ़िंगर बहुत पतली है।मेरे लिये रिंग बैंड ही लेना।” उफ़! उस रात मेरे आसमान के सारे सितारे मेरे आँगन में उतर आये थे।तुम्हारी हाँ के बाद दो साल लगे हमें शादी करने में तब तक हमने एक दूसरे से टूटकर प्यार किया।

शादी के तीसरे महीने से ही तुम्हें मुझमें कमियाँ नज़र आने लगी।मेरी जेब की लंबाई तुम्हारी पर्श के खाने से कहीं छोटी थी। तुम्हारे शौक़ मेरे महीने का बजट बिगाड़ने लगे।जब महँगी और बड़ी जगहों पर तुम्हारी ख़रीदारी मेरे लिये नामुमकिन होने लगी तब तुम अपनी क़ीमतों पर अपने शौक़ पूरे करती और ताने में लिपटा बिल मेरे सामने फाड़कर मुझे शर्मिंदा करती।मुझे इस सबसे बड़ी कोफ़्त होने लगी।अपने ज़मीर को बचाने के लिये मैंने अपनी ज़मीन बढ़ानी शुरू की उसके लिये मुझे अपना वक्त अपने काम को देना पड़ा।तुमने मुझे यहाँ पर भी सपोर्ट नहीं किया। अब तुम्हें मेरा वक्त कम पड़ने लगा।हमारे बीच का खिंचाव दिन पर दिन बढ़ने लगा।मैं तनाव में रहने लगा था।कुछ भी करके मुझे तुम्हें खुश रखना था।मेरी ज़िंदगी का लक्ष्य शुरू से तुम और तुम्हारी ख़ुशी ही तो थी।किसी भी क़ीमत पर मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता था। सब कुछ तो था तुम्हारे पास काश! तुमने मुझे भी समझा होता।अच्छी लगती थी तुम्हारी प्रगति तुम्हारा पैकेज पर क्या मेरी सेल्फ़ रिस्पेकट की भी तुम रिस्पेकट नहीं कर सकती थी? पहली बार तुमसे एक प्रश्न कर रहा हूँ क्या महँगी शिक्षा और आत्मनिर्भरता यह सिखाती है कि दूसरे की भावनाओं की कोई कद्र न करो? जनता हूँ मेरे किसी भी प्रश्न का जवाब आजतक तुमने नहीं दिया है।इसका भी नहीं दोगी।

अब मैं हार गया और एक बार फिर तुम जीत गई।तुम्हारे भेजे तलाक़ के पेपर साइन कर दिये हैं।तुम्हें देने के लिये मेरे पास ऐलमोनी में और कुछ नहीं है बस मेरे जीवन का लेखा-जोखा है जो तुमको भेज रहा हूँ। हो सके तो मुझे समझना।

एक तलाक शुदा प्रेमी बनाम पति।



ज्योत्सना सिंह

ओमेक्स,गोमती नगर 

लखनऊ।

7:18P.M.

8-7-22

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Jyotsana Singh

jyotsanasingh

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kanak Harlalka · 2 years ago last edited 2 years ago

    बहुत बढ़िया... प्रतियोगिता में व्यक्ति जीतने की दौड़ में क्या खो देता है उसे समझ में आने में कभी कभी बहुत देर हो जाती है ..

  • CHARU RISHI MEHRA · 2 years ago last edited 2 years ago

    बहुत सच लिखा है आपने... अछा लगा👍👏👏👏👏

  • anil makariya · 2 years ago last edited 2 years ago

    उम्दा रचना।

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