श्यामली

आख़िर ऐसा क्या हुआ कि, श्यामली ने खुद की हथेलियों को नवीन हथेलियों में बेफ़िक्री से सौंप दिया और हल्का सा रोमांच महसूस करने लगी सूखी हुई रेत पर पानी की कुछ बूँदे पड़ी तो ठंढक देने को मचल उठी।

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Jyotsana Singh
Jyotsana Singh 14 Sep, 2021 | 1 min read
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​सर्द हवा का झोंका श्यामली की अधपकी जुल्फों से जैसे ही टकराया उसके रेशमी बाल उसके चेहरे पर बिखर गये। 

उसने अपने आपको शाल में थोड़ा सा कसकर लपेट लिया और खुशनुमा मौसम को निहारने लगी। पहाड़ों पर शाम ज़रा जल्दी ही गहरा जाती हैI देखते ही देखते पूरा मसूरी अंधेरे की आगोश में समां गया और बिजली की रौशनी से पूरा शहर जगमगाने लगा I 

श्यामली सेन, डाक्टर गुप्ता के हॉस्पिटल में एक काउंसलर थी। 

अपने काम में उसने अच्छी ख्याति बटोरी थी। चालीस पार कर चुकी श्यामली को मसूरी बेहद पसंद थाI

 विश्वास राय,के साथ उसका पंद्रह साल का वैवाहिक जीवन रहा पर संतान की प्राप्ति न हुयी थी।

विश्वास को एक बड़ा ऑफर मिला और उसे जापान जाना पड़ा। श्यामली को देश और मसूरी दोनों ही नहीं छोड़ने थे इसलिए आपसी सहमति से दोनों अलग होकर अपना-अपना जीवन अपने हिसाब से जीने लगेI 

श्यामली मनोवैज्ञानिक डाक्टर होने के साथ ही साथ हिंदी,अंग्रेज़ी दोनों ही साहित्य में विशेष रूचि रखती थी। हिंदी के लेखकों और कवियों की तो वो मुरीद थी I 

बहुत ज़्यादा लोगो से मिलना या बहुत सारे दोस्त बनाना उसे कोई खास पसंद भी ना था। वह अपने एकाकी पलों में क़िताबें पढ़ना और संगीत सुनना पसंद करती थी। जब वह बहुत खुशनुमा मूड में होती तब उसे पंजाबी छोले-भटूरे खाना बेहद पसंद था। जो उसकी काम वाली “जस्सी” बहुत ही स्वादिष्ट बनाती थी।

एक छोटा सा फ्लैट था।जो विश्वास उसी के नाम पर कर गए थे। उसके ऊपर के दो कमरे खाली ही रहते थे I 

एक दिन डॉक्टर गुप्ता के कहने पर उसने कमरा किराये पर देने के लिए एक इश्तहार पेपर में दे दिया।

​सुबह नौ बजे ही डोरबेल बजी तो श्यामली ने जस्सी से कहा -

 “ इतवार के दिन इतनी सुबह कौन है? देख तो जरा!” जस्सी ने आकर बताया- “एक लड़का है। आपसे मिलना चाहता है। कह रहा है कमरा किराये पर लेना है।”

“अरे हाँ! मैंने ही पेपर में विज्ञापन दिया था। कह दे जा के कि बारह बजे के बाद आ कर मिले।”  कह कर उसने पेपर पर अपनी नज़रे टिका दीं और ताज़ा समाचारों से रूबरू होने लगी। तभी जस्सी की तेज़ आवाज़ उसके कानों में पड़ी-  “कहा ना! अभी मेम साब नहीं मिल सकती हैं।”

दूसरी आवाज़ उतनी ही विनम्र थी-  “प्लीज! आप एक बार मिलवा दीजिए मैं बस बात करके चला जाऊँगा।” जस्सी और उस आवाज़ की चक-चक सुनकर  वह स्वयं ही गैलरी में आकर बोली-  “आप बारह बजे के बाद आकर मिलिए मैं बात करती हूँ I”  

अपने सामान के साथ खड़ा वो सत्ताईस-अट्ठाइस साल का लड़का उससे मिन्नतें करने लगा- “प्लीज! आप अभी मुझे टाईम दे दो।”

उसके विनती भरे शब्दों को सुन  श्यामली ओवरकोट पहनकर ड्राइंग रूम में आ गयी और जस्सी से बोली- “आने दो उसको।”

“हेल्लो मैम! मैं नवीन, नवीन नाम है मेरा।नीचे देहरादून से आया हूँ। मुझे फ़ोटोग्राफ़ी का शौक है। उसी से जुड़े कोर्स को पूरा करने के लिए मैं मसूरी आया हूँ। मुझे दो-तीन महीने के लिए कमरा चाहिए। यह मेरा एड्रेस प्रूफ है। आप यहाँ से कन्फर्म कर सकती हैं।मैं रेंट भी समय पर दे दिया करूँगा।”

वह इतनी फटाफट सब बोले जा रहा था कि उसकी रफ़्तार को देखकर श्यामली बोल ही पड़ी-  “किसी जल्दी में हैं आप?”

“जी!” 

कहकर वह श्यामली के चेहरे को देखने लगा I 

एक बार में ही श्यामली का आकर्षक व्यक्तित्व नवीन के मन को सहला गया। खींच कर बांधे हुए उसके अधपके बाल, उसके  सांवले गोल चेहरे को और भी दमका रहे थे।वह फिर बोला-

“मैम! एक्चुली मेरा पूरा ग्रुप है। वो सब आगे किसी होटल में रुकने के लिए गए हैं। उनका एक हफ्ते का कोर्स है। पर मैं यहाँ दो-तीन महीने रुकना चाहता हूँ। पहाड़ों की रानी को बहुत करीब से देखना चाहता हूँ। इतने दिनों के लिए होटल अफ्फोर्ड नहीं कर सकता हूँ। मुझे अपने रहने का इन्तज़ाम करके उन लोगो का साथ भी पकड़ना है। इसीलिए थोडा सा जल्दी में हूँ।आपके दिए विज्ञापन में पढ़ा भी था कि आप बारह के बाद मिलेंगी। बट आई एम सॉरी!”

नवीन से बातकर श्यामली को लगा दो-तीन महीने का ही किरायेदार है।कोई खास झंझट भी नही है। अकेला इंसान है I इसलिए ज़्यादा न सोचते हुए उसने कहा-  “ठीक है। पर कुछ कागज़ी कार्यवाही है। जो आप को पूरी करनी पड़ेगी।”

“मैम, मैं सब कर दूँगा पर वापस आकरI अभी बस आप मेरा सामान रखवा लीजिए मैं वापस आकर आपसे मिलता हूँ। यह मेरा नंबर और बाकी डिटेल्स हैं। यह रही मेरे आधार कार्ड की कॉपी,अभी मैं ज़रा जल्दी में हूँ I”

 कहते हुए सब कुछ टेबल पर रखकर  अपना दो बैग कोने में लगाकर वह तेज़ी से बहार निकल गया I

श्यामली को उसका तरीका कुछ अजीब लगा बहुत सोच-विचार के हर काम करने वाली श्यामली को नवीन की यह  रफ़्तार समझ न आई उसने फैसला किया कि शाम को जब नवीन आयेगा तो वह साफ़ मना कर देगी कि उसे कमरा किराये पर देना ही नहीं है।

​अलसाया इतवार अपने ही तरीके से ढल गया। संध्या का वक़्त आ गया। वह अपनी कॉफी की प्याली के साथ अपनी गैलरी में  बैठ “हेमंत दा” के गाने सुनने लगी और ढलते सूरज की लालिमा को धीरे- धीरे घने बादलों की गोद में समाते देख न जाने क्यों अनमयस्क सी हो गयी। ​रात के नौ बज गए पर अभी तक नवीन का पता नहीं था।

टाइम की पाबंद श्यामली सोने का मन बनाकर अपने कमरे में जाते हुए जस्सी से बोली- 

“जस्सी,वह लड़का आये तो उसे मना कर देना कह देना हमें कमरा किराए पर नहीं देना है।”

फिर ठिठककर बोली- 

“अच्छा! आज रात के लिए उसे गेस्ट रूम दे देना सुबह मना कर देंगे रात को कहाँ जाएगा वह।”

नीले रंग का रेशमी गाउन पहन वह  “शरदचंद्र” का उपन्यास लेकर उसके पन्ने पलटने लगी। दस बजते-बजते वह उनीदी सी होकर करवट बदल कर सो गयी।

​सुबह-सुबह श्यामली को ब्लैक कॉफ़ी पीने की आदत थी। यह आदत वह तब भी न बदल पाई थी जब विश्वास और वह साथ रहते थे। विश्वास ग्रीन टी पीना पसंद करते थे पर वह ब्लैक कॉफी ही पीती थी।  कहती भी की- “पूरे दिन का मूड बन जाता है ब्लैक कॉफ़ी से।” विश्वास बस मुस्कुरा देता।

 सच तो यह था कि उन दोनों के जीवन में कोई वाद-विवाद था ही नहीं। दोनों अपनी-अपनी ज़िंदगी अपने-अपने हिसाब से एक ही छत के नीचे जी रहे थे।

 श्यामली किसी बात पर कोई मत रखती तो विश्वास कहता।

“अगर यह तुम्हारे “पॉइंट ऑफ़ व्यू” से ठीक है तो तुम देख लो मुझे कोई एतराज़ नहीं।”

बात वही खत्म हो जाती और यही तब होता जब विश्वास कुछ कहता। तो वह कहती- “ आप की सोच है आप अपने हिसाब से देख लो।” संबंधों में कहीं कोई कटुता नहीं थी। पर मधुरता भी सूखी खांड सी हो गयी थी I 

पास होते हुए भी दोनों एक दूसरे के साथ नही थे।ऐसे ही हालात में जब विश्वास को जापान जाने का ऑफर मिला तब राहें भी अलग-अलग हो गईं।

​वह आज भी अपनी ब्लैक कॉफी का मग लेकर गैलरी में बैठ पेपर पलट रही थी कि तभी उसे लगा जैसे कोई उसकी बोगनवेलिया के झुरमुट के पीछे है।

“कौन है वहाँ ?” 

तेज आवाज़ देकर वह उधर ही तीक्ष्ण दृष्टि से देखने लगी।

तभी झाड़ियों के बीच से नवीन अपने कैमरे के साथ बाहर आया और बोला-

 “गुड मोर्निंग मैंम! आपकी तेज़ आवाज़ ने मेरा आखिरी शूट ख़राब कर दिया। देखिये, मैंने गिरगिट के रंग बदलते हुए कितने पिक्चर निकाले हैं पर आपकी आवाज़ से आखिरी वाली पिक्चर हिल गयी और सारी मेहनत पर पानी फिर गयाI”

श्यामली कुछ कहती उससे पहले ही वह बोल पड़ा- 

“मैंम, क्या एक कप चाय मिल सकती है? इसी समय सारे पेपर  भी साइन कर दूँगा और आपके साथ चाय भी पी लूँगा।”

 कहते हुए वह सीढ़ियों की तरफ बढ़ने को हुआ कि उसने ने कहा- 

“आप ड्राइंगरूम में रूको जस्सी से चाय और पेपर भिजवाती हूँ।” नवीन के बेपरवाही से बढ़ते हुए कदम थम गए अगले ही क्षण में उसने अपना रुख सीढ़ियों से मोड़कर ड्राइंगरूम की तरफ कर लिया। फिर तेज़ी से सीढ़ियां चढ़ता हुआ आधे जीने को पार कर बोला-

“मैंम! मैं आपको अपना आज का फोटो शूट तो दिखा दूँ।” उसने कैमरा सीढ़ियों से ही श्यामली की तरफ बढ़ा दिया।”

श्यामली को ऐसी बेतकल्लुफ के व्यवहार की आदत नहीं थी।उसने आँखों को सिकोड़ते हुए नवीन को देखा। नवीन को लगा कि शायद उससे कहीं कोई गलती हो गयी है।

 “सॉरी” 

बोलकर वह वापस सीढ़ियां उतरने लगा I

थोड़ी देर में जस्सी चाय और पेपर लेकर नवीन के पास आई और बोली-  “तुम्हारा रूम पीछे से ऊपर वाला है। उसकी सीढ़ियां भी पीछे से ही हैं। तुम वहां जा कर अपना सब देख लो और हाँ,मैडम जी ने तुम्हारा कैमरा भी मंगवाया है।”

नवीन के गोर चिट्टे पहाड़ी चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी। उसने जस्सी को पेपर बिना शर्त पढ़े ही साइन करके दे दिए। साथ ही कैमरा भी। 

जल्दी से कमरे में जाकर अपना सामान सेट करने लगा। जस्सी कैमरा और पेपर लेकर श्यामली के रूम में गयी और बोली,- “मेम साहब, आप तो रूम देने को मना कर रही थीं फिर?” 

श्यामली ने कैमरे में कैद तस्वीरों को सरसरी नज़रों से देखकर कैमरा जस्सी को पकडाते हुए कहा-

 “हूँ, ...कुछ महीनों की ही बात है देखती हूँ।”

अगले दिन सुबह श्यामली हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार होकर अपनी कार निकाल ही रही थी कि तभी नवीन नीचे आकर बोला- 

“ मैंम!  यहाँ से माल रोड जाने के लिए क्या कन्वेंस मिलेगा?”, श्यामली ने उसे बहुत ही थोड़े शब्दों में रास्ता बताया और अपनी कार स्टार्ट कर चली गयीI

आज का उसका पूरा दिन थकान भरा था। कई काउन्सलिंग लगी थी।

वह पूरा दिन व्यस्त रही। दिन भर की थकी-हारी शाम को घर वापस आकर अपने मैसेज और मेल चेक कर रही थी कि तभी डोरबेल दो-तीन बार एक-साथ बजी। इस तरह की हरकत से वह चौंक गई। जस्सी तेज़ी से दरवाज़े की तरफ बढ़ी। खोलते ही देखा तो नवीन था। वह कान पर मोबाइल और ऊँगली कॉलबेल पर रखे निरंतर उसे बजा रहा था। जस्सी कुछ बोलती उससे पहले ही वह बड़े ही बेतकल्लुफी से बोला- 

 “जस्सी दी !, एक बोतल पानी दे दो, नीचे से पानी की बोतल लाना भूल गया हूँ। अभी मेरे पास पीने को पानी नहीं है।”

 जस्सी का सारा गुस्सा तो “जस्सी दी”  सुनकर ही काफूर हो गया पर उसे पता था कि मैडम का क्रोध तो ज़रूर बढ़ा होगा इसलिए वह बोली- 

“कॉलबेल एक बार ही बजाया करीं बच्चे!”

 “ओह सॉरी! जस्सी दी यह मेरी बड़ी गंदी आदत है। घर पर भी डांट पड़ती थी आगे से ध्यान रखूँगा।” पानी लेकर वह वापस जाने लगा फिर मुड़कर श्यामली की ओर मुखतिब हो कर बोला- 

“मैम! आपको मेरी फ़ोटोग्राफ़ी कैसी लगी आपने बताया नहीं?”

“ हाँ अच्छी है।”

 कहकर उसने अपनी नज़र फ़ोन पर टिका दी। वह पहले थोडा आगे बढ़ा और फिर पीछे की तरफ आकर बोला।

“ गुड नाइट मैम!”

प्रित्युत्तर में उसने भी उसको देखते हुए- 

“गुड नाइट”  बोल दिया 

धीरे-धीरे एक महीना नवीन की छुटपुट हरकतों के साथ बीत गया I श्यामली को उसकी हरकत अजीब तो लगती पर बुरी नहीं लगती जिसकी वजह से वह नवीन को कुछ कह न पातीI

एक बारिश भरी सुबह जब श्यामली अपने हॉस्पिटल जाने के लिए निकली तो नवीन भी कैमरे और बैग के साथ तेजी से उतरता हुआ बोला- 

“श्यामली मैम! क्या आप मुझे ड्राप कर देंगी? बारिश तेज़ है।मेरा कैमरा भीग जायेगाI”

श्यामली ने अपनीं बड़ी-बड़ी आँखों से उसे कार में बैठने का इशारा किया I

 अब नवीन और श्यामली एक साथ रास्ता तय कर रहे थे I

 श्यामली की पसंद का मधुर संगीत गाड़ी में बहुत ही धीमी आवाज़ में बज रहा था। नवीन बोले जा रहा था- 

 “आपको संगीत का शौक है?”

 “ हाँ! किसे नहीं होता?” 

नवीन ने कहा-

 “नहीं ! बहुत से लोगों को नहीं होता।”

वह बोली- 

“नहीं, ऐसा नहीं है। धीमा,तेज़ या शोर से भरा या फिर क्लासिकल, नहीं तो भक्ति संगीत कुछ न कुछ तो सबको ही पसंद होता ही हैI”

 नवीन ने फिर जिरह करते हुए कहा-

 “मैं ऐसे कई लोगों से आपको मिलवा सकता हूँ, जिन्हें संगीत नहीं पसंद”I 

श्यामली ने कहा-

“मैं सायकॉलिजस्ट हूँ। मुझे पता है कि संगीत मन को कितनी राहत देता हैI”, 

नवीन ने फिर प्रत्युत्तर में कहा-

 “आप एक ही तरह के लोगों से मिलती हैं या यूँ कहिये की बीमार लोगो से मिलती हैं। तभी आपको नहीं पता। पर ऐसे भी कई लोग हैं जो संगीत सुनना पसंद ही नहीं करते।”

कहते-कहते नवीन का स्टॉप आ गया और वह-  

“थैक्स”  

बोलकर गाड़ी से उतर गया। फिर गाड़ी का शीशा नॉक करके बोला।

“क्या? आप, मुझसे दोस्ती करेंगी?” 

श्यामली उसकी बेबाकी पर उसे निहारने लगी फिर एक हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर आयी और वह बोली- 

 “मेरी और तुम्हारी उम्र में बहुत फर्क है I”  कहते हुए उसने गाड़ी आगे बढ़ा दीI

आज श्यामली खुद को कुछ ज़्यादा ही फ्रेश फील कर रही थी।

शाम को नवीन अपने उसी सवाल के साथ एक बार फिर उसके सामने आ खड़ा हुआ-

“आपने बताया नहीं क्या आप मुझसे दोस्ती करेंगी?”, 

वह बोली-  “कहा तो था मेरी और तुम्हारी उम्र में बहुत फर्क है।”

“तो क्या आप उम्र से दोस्ती करती हैं?”

यह प्रश्न जब उसने किया तब वह निरुत्तर सी हो गयी फिर कुछ अचकचाते हुए बोली- “ऐसी बात नहीं है पर…?” “पर क्या?” 

नवीन ने बीच में ही टोका- 

 “आप मुझे अच्छी लगती हैं।मैं आपकी तस्वीरें लेना चाहता हूँ।  ‘दैट्स इट’, अब आप बताओ, आपको मुझमें  क्या कमी लगती है?, जो हम दोस्त नहीं बन सकते? दोस्ती के लिये हमउम्र होना जरूरी है यह कहाँ लिखा है?”

 “पर विचार तो मिलने ही चहिये।”

“आप गलत सोचती हैं जब एक ही जैसी विचारधारा वाले दोस्त होते हैं, तब उस दोस्ती में एकरसता आ जाती है।जीवन का रोमांच ही ख़त्म हो जाता है।

 हाँ में हाँ मिलाने से हमें एक दूसरे की जरूरत ही नहीं रह जाती।दोस्ती का मज़ा तो तब आता है जब विचारों का आदान-प्रदान हो और यदि हर बात में न सही तो दूसरी-तीसरी बात में मत अलग हों।”

नवीन कहे जा रहा था और श्यामली सोचने लगी- 

“ सच ही तो कह रहा है नवीन! यही तो हुआ था उसके और विश्वास के रिश्ते में। एकरसता ही तो अ गयी थी। रोमांच था ही नहीं वाद-विवाद तो बड़ी दूर की बात थी। उत्तर-प्रत्युत्तर भी नहीं बचा था। ‘बाल इन योर कोर्ट!’ वाला डिसीजन दोनों ही तरफ होता था।

श्यामली बिना कुछ जवाब दिये अपने कमरे में चली गयीI 

बारिश के बाद पहाड़ों की सुबह और भी खुशगवार हो जाती है।

श्यामली कॉफ़ी के साथ अपनी सुबह इंजॉय कर रही थी कि दो कप में कड़क चाय लेकर नवीन आ गया और बोला- 

 “दोस्ती न कबूल करिए, पर मेरी बनाई अदरक वाली चाय ज़रूर ट्राई करिए और हाँ! अब ये मत कहियेगा की आप चाय नहीं पीती।”

“हाँ! ये सच है, की मै चाय नहीं पीती.”

वह बोल ही रही थी कि नवीन ने उसके होंठो पर उंगली रख दी I एक अजीब सी सिहरन उसने महसूस की तेज़ी से उसका हाथ हटाते हुए उसने उसकी चाय का प्याला हाथ में थाम लिया। तभी नवीन ने उसे अपने कैमरे में कैद कर लिया।

उसकी हतप्रभ सी तस्वीर उसे दिखाते हुए वह बोला-“क्या आप मुझसे डरती हैं?”

“मैं क्यों डरूँगी?”

“तो मेरी चाय टेस्ट कीजिए।”

“पर मैं नहीं पीती!”

उसने प्याला उठकर श्यामली के होंठो तक लगाते हुए कहा-“एक चुस्की लीजिए बस मेरी ख़ुशी के लिए।”

उसे निहारते हुए श्यामली ने जब आधा कप चाय पी ली तब नवीन ने खुश होते हुए कहा-“अब हमारी दोस्ती भी पक्की।”

न जाने किस जादुई गिरफ़्त में थी वह कि इतनी धृष्टता के बावजूद वह उसे देखकर बस मुस्कुराती रही। न जाने क्यों उसके दिल को यह सब बुरा नहीं लग रहा था। 

अब रोज़ का ही नियम सा हो गया था। कभी चाय तो कभी कॉफ़ी के दौर के साथ बहुत सारी बातों पर वाद-विवाद और हंसी-मज़ाक में वक़्त बीतने लगा।

ना चाहते हुए भी श्यामली को नवीन की दोस्ती कबूल हो गयी थीI उसके शुष्क मन में ख़ुशी का एक अंकुर पल्लवित हो रहा थ। अब लगभग हर रविवार ही छोले-भटूरे बनते। नवीन को भी परोसा जाता और नवीन दिल खोलकर 'जस्सी दी' की पाक कला की तारीफ़ करता।

आज भी संध्या उतनी ही खुशगवार थी जितनी इन दिनों श्यामली को हर वो लम्हा लगता था जो वह नवीन के साथ बताती थी।

तभी नवीन ने उसके कस के बंधे बालों से उसकी क्लिप खोल दी और लपेटी हुई शाल को हौले से उसके शाने से खींच लिया। श्यामली ने उसे यह सब क्यों करने दिया यह वह खुद भी नहीं समझ पा रही थी। नवीन ने उसके बिलकुल करीब जाकर उसके कानों में कहा-  “मुझे मेरी सबसे खूबसूरत तस्वीर शूट करने का एक मौका दे दो प्लीज़।” 

उसके सर्द हो रहे गालों पर अपनी गर्म हथेलियों से नवीन ने हल्का सा  सहला दिया।

फिर एक साथ कई तस्वीरें खींचकर श्यामली के करीब जाकर बोला-

“आई एम इन लव विद यू!आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो!”

श्यामली ने नवीन को छिटकते हुये कहा- 

 “यह सब संभव नहीं तुम सोच भी कैसे सकते हो?” 

 “संभव क्यों नहीं है? फिर मैं सोच नहीं रहा हूँ मैं करता हूँ।आप भी मेरे जैसे अहसासों को जी रही हैं। पर अपनी शिक्षा और उन किताबों में लिखी बातों से बाहर नहीं आना चाह रहीं हैं जो आपको साईक्लोजिस्ट होने की वजह से पता हैंI  मुझे नहीं पता आपकी वो किताबें और आपकी उम्र बस मुझे ये पता है कि मैं....” 

वह और बोलता इससे पहले ही श्यामली ने उसके होंठो पर उंगली रख दी और काँपते शब्दों में कहने लगी-

 “जी तो मैं भी रही हूँ न इस अहसास को पर इनका कोई वजूद नहीं है।”

नवीन ने श्यामली को खुद में समेटते हुये कहा- 

"वजूद तो उस रिश्ते का भी नहीं था न जो आपने पंद्रह साल जिया। क्यों न हम आज को ही जी लें।” 

लोगों के दिल और दिमाग को पढ़ने वाली श्यामली का दिल और दिमाग इस वक्त नवीन पढ़ रहा था।

श्यामली ने खुद की हथेलियों को नवीन हथेलियों में बेफ़िक्री से सौंप दिया और हल्का सा रोमांच महसूस करने लगी सूखी हुई रेत पर पानी की कुछ बूँदे पड़ी तो ठंढक देने को मचल उठी।

शायद वह भी आज को जी लेने को आतुर हो उठी थी। बिना कल की सोचे हुए बिना किसी मनोविज्ञान को समझे।

  *** समाप्त ***

ज्योत्सना सिंह।

लखनऊ 

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Jyotsana Singh

jyotsanasingh

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • anil makariya · 3 years ago last edited 3 years ago

    मेरी नजर में आप एक बेहतरीन अफसानानिगार हैं। आप की हर कहानी एक प्रवाह में चलती है और बिना झटके के एक खूबसूरत मोड़ पर खत्म हो जाती है। मुझे लगता है कि आपको एक उपन्यास लिखना चाहिए और यकीनन उस उपन्यास का पहला खरीदार मैं होऊंगा । आप लाइक्स और कमेंट की ओर न देखें क्योंकि आपके लेखन को इसके सहारे की जरूरत नही।

  • Kamlesh Vajpeyi · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत सुन्दर, आकर्षक रचना..! श्रेष्ठ लेखन - कौशल..! 🙏🙏

  • Babita Kushwaha · 3 years ago last edited 3 years ago

    Bahut khub

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