तुम तो चले गए अकेले ही सिंदूर तुमसे मंगाऊं भी कैसे?
सुहाग ही नहीं है मेरे पास तो अब मांग भरवाऊं भी कैसे?
तुम कहते थे की सज संवरी रहा करो,
बिना तेरे यह श्रृंगार सजाऊं भी कैसे?
तुम कहते थे की आंखो में काजल लगाया करो,
जब तू ही ना हो सामने तो लगाऊं भी कैसे?
तुम कहते थे की होठ बड़े ही सुन्दर है तुम्हारे
तेरा दीदार ही ना मिले तो रिझाऊं भी कैसे?
तुम कहते थे की मेहंदी नहीं रचाई तुमने ,
जब तक तेरा नाम ना मिले रचाऊं भी कैसे?
तुम कहते थे कि बदन में लचल है बड़ी तुम्हारी
बिन तुम्हारे एहसास अब बदन को गहनों से लदाऊं भी कैसे?
तुम कहते थे कि बिंदी बहुत जचती है तुम पर,
जब तू ही चला गया छोड़ तो जचाऊं भी कैसे?
तुम कहते थे कि पूरा श्रृंगार कर दुल्हन सी लगती हो
अब तुम है नहीं हो तो खुद को दुल्हन बनाऊं भी कैसे?
नाक की नथलि, पैरो की पायल, हाथो का चूड़ा,
तेरी यह निशानी खुद के हाथ से मिटाऊं भी कैसे?
देश की सेवा में तू जान देकर शहीद हो गया,
अब मुझे बस तू इतना बता दे तेरे पास आऊं भी कैसे?
ज्योति अग्रवाल
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
निःशब्द
Ji bhut sukriya inn sabdo ke liye 😊
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