ग़ज़ल

यह सौंदर्य की दुनिया का ही खेल है सारा

Originally published in hi
Reactions 0
663
Jyoti agrawal
Jyoti agrawal 10 Jul, 2020 | 1 min read

बिखरे थे बाल मेरे और तन मेरा काला था।

तब कोई भी ना था यहां जिसने मुझे संभाला था।


आज जब रंगत मेरी चमकती है सोने सी

सबकी नज़रों में मेरा हुस्न देखने वाला था।


तुम अब कहते हो कि मुहब्बत हुई है तुमसे 

तुमने ही मेरी काली रंगत देख निकाला था।


नयन नक्श तो खूबसूरत थे जो नजर ना आए,

अख़बार के पन्नों में आज उसी का हवाला था।


लिबास मेरा उम्दा बदन शबनम सा दमकता 

हुस्न के सौदागरों के लिए यह घोटाला था।


ज्योति अग्रवाल


0 likes

Published By

Jyoti agrawal

jyotiagrawal_m

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.