ग़ज़ल

यह सौंदर्य की दुनिया का ही खेल है सारा

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Jyoti agrawal
Jyoti agrawal 10 Jul, 2020 | 1 min read

बिखरे थे बाल मेरे और तन मेरा काला था।

तब कोई भी ना था यहां जिसने मुझे संभाला था।


आज जब रंगत मेरी चमकती है सोने सी

सबकी नज़रों में मेरा हुस्न देखने वाला था।


तुम अब कहते हो कि मुहब्बत हुई है तुमसे 

तुमने ही मेरी काली रंगत देख निकाला था।


नयन नक्श तो खूबसूरत थे जो नजर ना आए,

अख़बार के पन्नों में आज उसी का हवाला था।


लिबास मेरा उम्दा बदन शबनम सा दमकता 

हुस्न के सौदागरों के लिए यह घोटाला था।


ज्योति अग्रवाल


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Jyoti agrawal

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