वो एक दास्ताँ जो पूरा होना चाहती थी,
ना जाने क्यूँ कश्मकश में फंस गई।
वो एक दास्ताँ जो जिन्दा रहना चाहती थी,
ना जाने क्यूँ कुछ गलतफहमियों के तले दब गई।
वो एक दास्ताँ जो खुशियों का जरिया बनना चाहती थी,
ना जाने क्यूँ गमो के पीछे कही छिप गयी।
वो एक दास्ताँ जो जीने का अहसास दिलाती थी,
ना जाने क्यूँ हर घडी तिल-तिल कर मारने लगी।
वो एक दास्ताँ जो रहनुमा सी हुआ करती थी,
ना जाने क्यू रूसवा और खफा सी हो गयी।
वो एक दास्ताँ जो हम साथ में बुन रहे थे,
ना जाने क्यूँ अधूरी ही छूट गयी।।
ज्योति अग्रवाल
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
💐💐👌👌
Sukriya
Please Login or Create a free account to comment.