मजबुर है साहब

मजबुर है साहब कब यह जिंदगी फिर से थोड़ा सही होगी

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Jyoti agrawal
Jyoti agrawal 02 Jun, 2020 | 0 mins read

दरख्तों की छांव में अब बसना चाहते हैं ,

हम मजबूर हैं साहब अब सवेरा चाहते हैं।

जो कहर पर कहर ढाए जा रही है जिंदगी ,

उनमें दो जून जितना गुजारा चाहते है ,

हम मजबूर है साहब अब सवेरा चाहते है।

छाले पांव में पड़े हैं, होठ प्यासे पड़े है ,

गहन अंधेरे में उम्मीद का उजाला चाहते हैं।

हम मजबूर हैं साहब अब सवेरा चाहते हैं।

हां हम थोड़े नासमझ हैं, नासमझी करते हैं

पर तकदीर यह मत समझ हम अंधेरा चाहते हैं।

हम मजबूर हैं साहब अब सवेरा चाहते हैं।


ज्योति अग्रवाल





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Jyoti agrawal

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