आज मैं पापा के साथ पास के गांव में बने हुए मंदिर में गई जहां पर एक गौशाला बनी हुई थी। जहां पर पापा अक्सर गायों का चारा वगैरह भेजते थे पापा ने उस मंदिर के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था वह मानते थे वहां के पुजारी को।
मंदिर में दर्शन करने के बाद पापा ने मुझे कहा कि चल! तुझे गौशाला दिखा कर लाता हूं तो मैं पापा के साथ गोशाला देखने गई वह सब कुछ अच्छा था पापा की नजर अचानक से कम करने वाले लड़के पर पड़ी को लड़का बिना छना हुआ चारा गायों को डाल रहा था तो पापा ने उस लड़के को पा बुलाया और कहा कि जब घोड़ी (छानने का यंत्र ) भिजवाई है तो फिर बिना छना चारा क्यों डाल रहा है तो लड़का जवाब देता है।
सेठ! मैं तो ऐसे ही डालूंगा फिर पापा ने आसपास और नजर डाली तो देखा की बारिश की मौसम की वजह से बाजरे में धूप नहीं लगाई गई थी तो वह हरा होने लगा था जो कि चारे में जहर का काम कर सकता था पापा गुस्से में आ गए और उससे बोलने लगे गायों को मारने का सोच रहा है क्या जो ऐसा चारा और बाजरे की कुट्टी खिला रहा है पापा बहुत ज्यादा गुस्से में आ गए फिर वह मंदिर के पुजारी के पास गए और उनको जाकर बोले।
बाबा ! आपको पता भी है क्या हो रहा है यह गायों को कैसा खाना को दिया जा रहा है अगर ऐसा ही देना होता तो मैं बढ़िया बाजरा क्यों भेजता मैं भी भेज देता खराब , यह कोई बात थोड़ी होती है आप लोगों को अगर ऐसे ही लापरवाही करनी थी तो गौशाला ही क्यों बनाई आपने 200 से 300 गायों की जिंदगी के साथ क्यों खेल रहे हो फिर मंदिर का पुजारी बोलता है कि सेठ इतना गरम मत हो बाहर का मौसम ठीक नहीं है तो धूप नहीं लगा पा रहे है और यह बाजरा किसी और ने भेजा था तो गीला ही भेज दिया शायद भरके और वह सिर्फ वहां पर रखा हुआ हम ने मना कर दिया है उस इस्तेमाल करने से चिंता मत करें हम लोग सिर्फ नाम के लिए गौशाला नहीं बनाए हम लोग उसका ध्यान भी रखते हैं चिंता ना करो।
( जरूरी नहीं है कि जो दिखता है सिर्फ वही सच हो कई बार हालत ही कुछ ऐसे बन जाते है तो हमे गलत सोचने पर मजबूत करते है)
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