कुछ चंचल सा तो कुछ शांत सा स्वभाव था,
पर उनके जाने के बाद सबका मन वीरान था,
करते थे वो सबकी मदद थोड़े स्वार्थी भी थे
स्वार्थ सबको पहले दिखा मदद का गुणगान था,
वो मोटी है वो छोटी है देखो वो कितना रोती है,
शिकायतें वो कहा गई जिनका ना अब निशान था।
अफसोस होता है कि काश होते अपनो के पास
ऐ खुदा ! यह तो बता मरना क्या इतना आसान था।
ज्योति अग्रवाल
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