हां वो मेरे लिए बहुत खास हैं
हां वो मेरे दिल के बहुत पास हैं
हां मानता हूं रूठी हुए है मुझसे
मुझे नाराजगी खत्म होने की आस हैं।
अब छोड़ भी से ना मानना उसे
कब तक उसका इंतज़ार करेगा
वो चली गई है छोड़कर अकेला
तू कब तक उसकी राह तकेगा।
अभी तो वक़्त हैं वो मान जाएगी
वो लौटकर मेरे ही पास आएगी
इतनी यादें तो सजाई गई साथ में
उस कभी मेरी भी याद आएगी
चल मान लिया तेरी बात को
पर वजह क्या है इंतेज़ार की
दोस्त ही तो थीं और भी तो हैं
फिर उसमें क्या खास बात थीं।
क्या ख़ास था नहीं यह पूछो
की उसमे ख़ास क्या नहीं था।
उसने मुझे फिर से जीना सिखाया
मुझे भटकते रास्ते से हटाया
छोड़ दिया मैंने सभी को तन्हा
उसने सबसे फिर जुड़ना सिखाया
जो इंसान नहीं जानता था करना कद्र
उस उस दोस्त ने कद्र करना बताया।
फिर क्यू चली गई वो इतना सब सिखाकर
अगर उसने तुझे कद्र करना सिखाया
तो क्यू ना के पाई वो तेरी कद्र
इस सवाल पर ही तो मैं भी अटका हूं,
आखिर ऐसा हुआ क्या
जो इंसान ही बदल गया
जो सबसे बात करते रहता
अब वो इंसान ही चुप हो गया।
आखिर ऐसा हुआ क्या?
Comments
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बहुत ही सुंदर ।
अच्छी है, इंतज़ार की घड़ी भले ही लंबी हो पर फल इसका मीठा हो सकता है।
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