कोठे वाली

बंदी के दौरान काम सबका छीना छीना साथ ने उनका भी जो जिस्म बेच कर कमाती थी।

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Jyoti agrawal
Jyoti agrawal 09 Jul, 2020 | 1 min read



सुन री बता ये बीमारी अब कब हटेगी,

हमारी ये कोठी मयखाने सी कब सजेगी।


अरसा ही गुजर गया है इस्तकबाल हुए,

उन देश के सौदागरों का रात कब ढलेगी।


आंखो में काजल लगाए बालों में गजरा सजाए,

पहले जैसी रातो की मांगे फिर कब बढ़ेगी।


जिस कोखजने को पालने जिस्म का सौदा किया

भेड़ियों की भूख मिटा वो मां रंडी अब कब बनेगी।


ये जिस्म भी अब लगता है किसी काम का नहीं,

अब हम कोठेवालियों की भूख कैसे मिटेगी।


बचपन से ही इन्ही गलियों में भूख मिटाई है,

ये दिलदहलाने वाली भूखी शांति कब छटेगी।

ज्योति अग्रवाल



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Jyoti agrawal

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