ये मुहावरे, होते हैं बड़े नतखट बावरे,
हैं ये लज़ीज़ पकवानों की चर्चा से भरे- पूरे
कभी ये बात करते हैं मीठे रसीले फलों की,
तो कभी खिचड़ी , आटे व दालों की
कोई मुहावरा मीठे की महिमा गाता है,
तो कोई मसालों का चटकारा दे जाता है
कभी तो डेढ़ चावल की खिचड़ी पकती है,
तो वहीँ किसी को दाल में काला दिखाई दे जाता है
घर का निकम्मा घर की रोटी मुफ्त में तोड़ता नज़र आता है
तो कभी कोई किसी की दाल भात में मूसरचंद बन जाता है
वहीं कभी कोई किसी के कबाब में हड्डी बन सारा मज़ा छीन ले जाता है
औऱ अगर कहीं गरीबी में आटा गीला हो गया ,
तब वाकई आटे दाल का भाव समझ में आ जाता है
चलिए हम अब हम फलों की भी बात करते हैं
एक के बाद एक को लेकर मौज मस्ती से आगे बढ़ते हैं
आम के आम औऱ अगर साथ मिल जाये गुठलियों के भी दाम तो है क्या बात !
बात न बनी तो अंगूर खट्टे हो गए , भला यह भी है कोई बात ?
ख़रबूज़े को देख ख़रबूज़े ने बदले रंग , दे दिया हमें एक तेज़ झटका,
अरे आप आम खाइये आपको गुठली से क्या है करना, है न ये सही लटका-झटका ?
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है
क्यूंकि सहयोग, संगठन से ही मिलती सफलता है
सफलता पाने के लिए पर पापड़ बेलने पड़ते है
तो कभी लोहे के चने तक चबाने पड़ सकते हैं
सफलता पाने की दौड़ में कभी कभी अनहोनी भी हो जाती है
जैसे कई बार गेहूं के साथ घुन भी पिस जाती है
ये ज़िन्दगी भी अक्सर इम्तिहान ले ही लेती है
एक के बाद एक मुसीबतों के पहाड़ जब टूटते हैं
तब आसमान से टपक कर खजूर में जा फसते हैं
अक्सर हम चीज़ों की असलीयत पहचानने में चूक जाते हैं
अंतर की अच्छाई न पहचान ऊपरी सादगी देख बहुमूल्य का मूल नहीं जान पाते हैं
बिल्कुल वैसे ही जैसे बन्दर नहीं जान पाता अदरक का स्वाद क्या है
अध्यापक, अफसर औऱ नेता से काम जब अटकता है
तब हम उन्हें मस्का-मक्खन खूब लगाते हैं
पर जब मन मुआफ़िक काम नहीं बनता है
तब दाल नहीं गली कहकर रूठ जाते हैं
बचपन में मास्टर का खूब मज़ाक बनाते हैं
पीठ पीछे मुँह बनाकर चिढ़ाते हैं
पर जब वे पलटकर सामने आते हैं
तो कुशल अभिनेता की तरह दूध के धुले बन जाते हैं
बचपन में मामा-बुआ जब मिलने आते थे
साथ में मीठा औऱ कुछ उपहार वे ज़रूर लाते थे
लेकिन भतीजे- भांजों की फ़ौज के सामने
ये उपहार ऊँट के मुँह में जीरा बनकर रह जाते थे
मन की कामना पूरी करने के लिए भगवान को मोतीचूर के लड्डू चढ़ाते हैं
कामना पूरी हो गयी तो घी के दिए जलाते हैं
लेकिन अगर सीधी ऊँगली से बात नहीं बनती है
तब ऊँगली टेढ़ी कर घी निकाल ही लाते हैं
जब कोई बहुत कोशिश के बाद भी आपकी बात नहीं समझता है
तब तो मानो दिमाग का दही ही बन जाता है
औऱ भेजा फ्राई करने पर भी जब बात नहीं बन पाती है
तब तो सारा रायता ही फैला नज़र आता है
बीवी चाहे जितनी सुन्दर व सर्वगुण संपन्न क्यों न हो
फूटी आँखों नहीं सुहाती है
दूसरे की हो तो आपको वह हूर नज़र आती है
तब घर की मुर्गी दाल बराबर हो जाती है औऱ बाहरवाली भाभी जी बन जाती है
जब बनता काम बिगड़ जाता है
औऱ सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है
तब बेचारा दूध का जला पानी भी फूंक-फूंककर पीता है
कहते हैं कि एक झूठ हज़ार झूठ बुलवाता है
लेकिन तब भी सच को ज़्यादा समय नहीं छिपा पाता है
सच जब सामने आता है तो दूध का दूध औऱ पानी का पानी अपने आप हो जाता है
बड़ों का आशीर्वाद हम उनके पैरों को छूकर पा लेते हैं
औऱ वे खुश होकर दूधों नहाओ पूतों फलो का अचूक आशीर्वाद अक्सर ही दे जाते हैं
देश व परिवार जब उन्नति के पथ पर आगे बढ़ते हैं
तब पेट में ख़ुशी के लड्डू जमकर फूटते हैं
औऱ चारों ओर दूध की नदियाँ बहती प्रतीत होती हैं
मीठी वाणी जिसकी है वो अक्सर लफ़्ज़ों को चाशनी में लपेटकर परोसता है
पर जब सिर्फ लफ्ज़ मीठे हों औऱ करनी नहीं तो वे मीठी छुरी कहलाते हैं
है न हमारी हिंदी भाषा हमारे पकवानों की तरह अत्यंत रुचिकर ?
हैं इसमें मिठाइयों की चाशनी से लबरेज़ मुहावरे व लोकोक्तियाँ एक से एक बढ़कर
इन्हें पढ़ खो जाते हैं ख्यालों में हलवाई की दुकान में सब कोई अक्सर
यह अद्भुत भाषा है हमारी मात्र भाषा इस तथ्य को जानकर
चौड़ी हो जाती है हमारी छाती गौरव से फूलकर
इसकी इस अतुल्य मनोरमता को करते हैं हम सब सलाम नत-मस्तक होकर
-©️जूही प्रकाश सिंह
Insta id: juhi.prakashsingh
Website: www.oneverythingunderthesun
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