कल,आज औऱ कल

समय का काल-चक्र अनंत।

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Juhi Prakash Singh
Juhi Prakash Singh 29 Mar, 2022 | 1 min read

दिन का अंत हुआ तो शुरू हो गयी रैना,

रैना का अंत हुआ तो खुल गए ये नैना।

बचपन गया तो यौवन का हुआ आगमन,

यौवन ढलने लगा तो हुआ प्रौढ़ावस्था को नमन।

प्रौढ़ावस्था कब बदलकर बनी वृद्धावस्था ये पता ही न लगा,

वृद्धावस्था का अंत हुआ तो एक नया जीवन चक्र शुरू हुआ।

बीज से बना पौधा औऱ फिर बना फल,

परिपक्व फल से फिर बना बीज औऱ शुरू हुआ एक नए पौधे का कल।

ग्रीष्म ऋतु का हुआ जब आगमन,

समुद्र, नदी, नालों के जल का तपकर हुआ वाष्पन।

वाष्प हुई ठंडी औऱ बने नीर से भरे घने मेघा,

हुई तपन ख़त्म जब हुई शुरू झमाझम मेघों से वर्षा।

वर्षा ऋतु ने जब करी पार समय की चौखट,

तो शिशिर ने दी दबे पाँव अपने आने की आहट।

गर्मी के वस्त्र हो गए सब बिस्तरबंद,

निकल आए गर्म कपड़े जब आयी हलकी गुलाबी ठण्ड।

हुआ अस्त सूरज आए चन्द्रमा तो कल हुआ आज औऱ आज हुआ कल,

एक वर्ष हुआ दूसरा औऱ दूसरा हुआ तीसरा औऱ यूँही चलती गयी जीवन की कल।

हर पल एक पल होता पुराना औऱ ले लेता उसका स्थान एक नया पल,

एक पल का दूसरे में विलीन होना ही तो कहलाता है आज औऱ कल।

कल आज औऱ कल हैं बदलाव के कथंत,

मिलकर बनाते जो समय का काल-चक्र अनंत।


- ©️जूही प्रकाश सिंह

Insta id; @juhi.prakashsingh







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