तुम्हारे जाने के बाद पहली बार तुम्हारे घर आई हूँ
चारों और से सन्नाटे की चीखें सुन रही हूँ
हर कोने से सिर्फ यादों की लहरें आती हैं
मेरे मनस पटल को झकझोर कर जाती हैं
इतने अरसे बाद भी लगता है की तुम अभी कही से निकल कर आओगी
फिर यह याद आता है की जहां तुम गयी हो वहाँ से न अब आ पाओगी
यह घर तो तुम्हारी राह देखता ही रह गया
हाथ बांधे खड़ा रहा, इसके प्राण कोई ले गया...
अब यह घर तो घर ना रहा
यादों का पिंजरा हो रहा
इस पिंजरे में तुम्हारी यादों के अवशेष हैं
बस अब इस घर में यही विशेष है....
#1000poems
- जूही प्रकाश सिंह
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