यादें बनकर आंसू आँखों से बारिश बरसाती हैं
और अब तो बादल भी देखो इस बेमौसम बारिश में अपने अश्रु बरसाते हैं
मई के तपते महीने में ये बेमौसम बादल उमड़ घुमड़कर गरज रहे हैं
मानो तपते हृदयों की तपन मिटने की उम्मीद रख रहे हैं
ईश्वर का दिल भी शायद चारों ओर त्राहि त्राहि देख अब भर आया है
इसीलिए उसने इस बेमौसम वर्षा से अपना भी ग़म जताया है
इस बेमौसम बारिश ने सावन की उम्मीद अब जगा दी है
त्रस्त दिलों में सुकून मिलने की चाहत ला दी है
हे ईश्वर अब इन उम्मीदों को ज़रूर तू पूरा कर देना
सबके दिलों की इस प्रार्थना को मंज़ूर तू अवश्य कर लेना
इस महामारी से परेशान पीड़ित संसार को
मुक्ति अब तुम दे देना
लेकर वापिस इस श्राप को, हमारी सब गलतियां माफ़ कर देना
इस श्राप से देकर मुक्ति संसार को
बख्श देना फिर से नई खुशियों की सौगात समस्त मानव जन को
- जूही प्रकाश सिंह
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