ग्रीष्म ऋतू अपनी चरम सीमा पर है
धरती की तपन बुलंदियों पर है
बसंती की शीतल हवा में अब जेठ की जलती अगन है
लू के थपेड़ों से हर तरफ सुलगती जलन है
अमराई को पर इस लू का बेसब्री से इंतज़ार है
कच्ची कैरियों को रसीले आम में जो यह बदल देती है
कोयल भी अमराई में यही ख़ुशी बनाती है
वृक्ष- वृक्ष टहनी टहनी पर बैठकर अपनी कुहू- कुहू से हमें यही जताती है
बागों में सूरजमुखी इसी लू में लहलहा रहे हैं
अपने हँसमुख चेहरे सूर्य देवता को दिखा रहे हैं
यह हमें चुपचाप कुछ बता रहे हैं
मुश्किल दौर में भी अपना सर ऊंचा करके जीना सिखा रहे हैं
जीवन की घूप- छांव में एक सा रहने का गुण दिखा रहे हैं
लू, आंधी- तूफ़ान में भी डटकर खड़े रहना है यह बता रहे हैं
ख़ुशी ओर ग़म के पलटते पन्ने ही तो ज़िन्दगी की कहानी है
हँसमुख सूरजमुखी की तरह हँसते हुए इनको पढ़ते जाना है
सूरजमुखी सा रहिए एकसार ओर मगन चाहे हो घूप या हो छाया
जीवन को अपने सुखमय है इस ' जूही' ने इसी प्रकार बनाया
- जूही प्रकाश सिंह
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