सुनो ओ मेरी प्यारी माँ !
मेरी पहली अध्यापिका थीं तुम मेरी प्यारी माँ
दुनिया को पहली बार मैंने देखा तुम्हारी प्यारी आंखों से ही मेरी प्यारी माँ
बेबस निरीह शिशु जब थी मैं तो मुझे सशक्त बनाया तुमने मेरी प्यारी माँ
पहला कदम मैंने जो रखा तो तुम्हारी कोमल उँगलियों का ही सहारा लेकर मेरी प्यारी माँ
अपने तन की सम्पूर्ण शक्ति से तुमने मुझको सींचा है मेरी प्यारी माँ
मुँह में पहला निवाला तुमने अपने स्नेहिल हाथों से ही तो डाला था मेरी प्यारी माँ
ज़िन्दगी को जीने का सलीका तुमने ही तो मुझे सिखाया मेरी प्यारी माँ
सुख में औऱ दुःख में एक सम रहना मैंने तुमसे ही तो सीखा मेरी प्यारी माँ
ईमानदारी, सत्य औऱ स्वशक्ति के सही मूल्यों से जीवन हमेशा है जीना तुमसे ही सीखा मैंने मेरी प्यारी माँ
किसी का बुरा न सोचना औऱ न करना यही सिखाया तुमने मुझे मेरी प्यारी माँ
बड़ा हो या छोटा चाहे उम्र में या औकात से करना सभी से इज़्ज़त से व्यौहार ये तुमसे ही सीखा मैंने मेरी प्यारी माँ
क्या ही मैंने तुमसे नहीं सीखा ओ मेरी प्यारी माँ
आज जो हूँ , जैसी भी हूँ , सब तुमसे ही तो हूँ मेरी प्यारी माँ
आज भले ही मुझे तुम्हारा स्नेहिल सान्निध्य अब प्राप्त नहीं
लेकिन तुम रहना आश्वस्त की मैं हमेशा जो तुमने मुझे सिखाया है करूंगी वैसा ही औऱ वही
तुम्हारा उपकार मुझपर रहेगा हमेशा व सदा
तुम कहती थीं की अपनी औलाद को सही जीवन मूल्य सिखा पाओगी जब तुम, तभी मेरा उपकार कर पाओगी तुम कुछ अदा
कोशिश तो मैं रोज़ करती हूँ मेरी प्यारी माँ
सफलता मिली मुझे ऎसा करने में तो सिर्फ समय ही बता पाएगा मुझे मेरी प्यारी माँ
जिस दिन ऎसा हो जाएगा
तब मैं मानूंगी की तुम्हारा कुछ उपकार जो मुझपर है, कुछ कम हो पायेगा
दे दो अब अपना स्नेह आसक्त आशीर्वाद जहां भी हो तुम, वहाँ से मेरी प्यारी माँ
मिला जो तुम्हारा यह आशीर्वाद तो मेरा जीवन होगा सदा ख़ुशहावार सफल ओ मेरी प्यारी माँ !
-©️जूही प्रकाश सिंह
Insta; juhi.prakashsingh
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